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नहीं बनेगा भारत मोहरा ?

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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भारत,अमेरिका,जापान और आस्ट्रेलिया-इन चार राष्ट्रों के चौगुटे का जो पहला शिखर-सम्मेलन हुआ, उसमें सबसे ध्यान देनेवाली बात यह हुई कि किसी भी नेता ने चीन के विरुद्ध एक शब्द भी नहीं बोला, जबकि माना जा रहा है कि यह चौगुटा बना ही चीन को टक्कर देने के लिए है। इसका नाम है-क्वाड याने ‘क्वाड्रीलेटरल सिक्यूरिटी डाॅयलाग’(चौतरफा सुरक्षात्मक संवाद)अर्थात सामरिक समीकरण ही इसका लक्ष्य है,लेकिन इसमें भाग ले रहे भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी,अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन,जापान के प्रधानमंत्री योशिहिदे सुगा और आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्काॅट मोरिसन ने अपना ध्यान केन्द्रित किया-कोरोना महामारी से लड़ने पर। पिछले माह जब इसके विदेश मंत्रियों का सम्मेलन हुआ था,तब भी चाहे अमेरिकी विदेश मंत्री ने चीन के विरुद्ध जब-तब कुछ बयान दिए थे लेकिन चारों विदेश मंत्रियों का कोई संयुक्त वक्तव्य जारी नहीं हो सका,क्योंकि भारत नहीं चाहता था कि यह चौगुटा चीन-विरोधी मोर्चा बन जाए। भारत आज तक किसी भी सैनिक गुट में शामिल नहीं हुआ। शीत-युद्ध के दौरान वह सोवियत संघ के नजदीक जरुर रहा,लेकिन वह किसी ‘सेन्टो’ या ‘नाटो’ के सैनिक गुट में शामिल नहीं हुआ। चीन ने इस चौगुटे को पहले ही ‘एशियाई नाटो’ घोषित किया हुआ है। इसमें शक नहीं है कि पिछले १०-१५ साल में चीन की चुनौती से अमेरिका प्रकंपित है,इसीलिए उसने प्रशांत-क्षेत्र को भारत-प्रशांत क्षेत्र (इंडो-पेसिफिक) घोषित किया,लेकिन भारत के नेता इतने कच्चे नहीं हैं कि वे अमेरिकी गोली को निगल जाएंगे। वे अमेरिका की खातिर चीन से दुश्मनी नहीं बांधेंगे। खुद बाइडन का अमेरिका चीन के साथ टक्कर जरुर ले रहा है,लेकिन वह ट्रम्प की तरह बेलगाम नहीं है। इसके अलावा उसे पता है कि जापान और आस्ट्रेलिया का चीन सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है। अमेरिका के यूरोपीय साथी फ्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन की अर्थ व्यवस्थाओं का चीन एक बड़ा सहारा है,इसीलिए इस शिखर सम्मेलन के संयुक्त वक्तव्य में चारों देशों ने कहा है कि यह चौगुटा समान विचारवाले देशों का लचीला संगठन है,इसमें कुछ नए देश भी जुड़ सकते हैं। यह ठीक है कि प्रशांत और हिंद महासागर क्षेत्र में अमेरिका, जापान और आस्ट्रेलिया ने अपने-अपने सामरिक अड्डे बना रखे हैं और चीन व उनके हितों में सामरिक प्रतिस्पर्धा भी है,लेकिन भारत किसी भी राष्ट्र या गुट का मोहरा क्यों बनेगा ? भारत और चीन के बीच सीमांत को लेकर आजकल तनाव जरुर बना हुआ है,लेकिन उस पर वार्ता चल रही है। इसके अलावा भारत व चीन ‘ब्रिक्स’ और ‘एससीओ’,इन २ संगठनों के सहभागी सदस्य भी हैं। चीन से आपस में निपटने में भारत सक्षम है, इसलिए भारत इस चौगुटे का फायदा उठाते हुए भी किसी का मोहरा क्यों बनेगा ?

परिचय– डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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