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प्रकृति-एक सोच

गोपाल मोहन मिश्र
दरभंगा (बिहार)
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प्रकृति और मानव स्पर्धा विशेष……..


प्रकृति धरा पर कुछ भी अपने लिए नहीं करती,
नदियाँ पहाड़ों से अपने लिए नहीं उतरती।

चाँद सूरज भी कहाँ अपने लिए चमकते हैं ?
प्यार भरे दिल भी दूसरों के लिए धड़कते हैं।

फूल-वृक्ष की डाली अपने लिए नहीं फलती,
प्रकृति धरा पर कुछ भी अपने लिए नहीं करतीI

मनुज तू ही क्यूं फिर अपने में लगा रहता है?
इस धरा की धारा में तू क्यूं नहीं बहता है ?

यह एक बात है मेरे गले से नहीं उतरती,
प्रकृति तू हमको भी क्यूं अपना-सा नहीं करती ?

प्रकृति धरा पर कुछ भी अपने लिए नहीं करती,
नदियाँ पहाड़ों से अपने लिए नहीं उतरती I

बहे पवन फिर महके उपवन सभी के वास्ते,
चले गगन फिर बरसे जल-धन सभी के वास्ते।

दिखाती राह,सच्चाई बने खुशी की परछाई,
करे प्रकाश लौ दीपक की सभी के वास्ते।

रोशन आग,काले अँधेरों के लिए ही होती,
चमक सितारों की भी अपनी लिए नहीं होतीI

रात तेरे बाद सुबह होने से नहीं मुकरती,
प्रकृति धरा पर कुछ भी अपने लिए नहीं करती॥

परिचय-गोपाल मोहन मिश्र की जन्म तारीख २८ जुलाई १९५५ व जन्म स्थान मुजफ्फरपुर (बिहार)है। वर्तमान में आप लहेरिया सराय (दरभंगा,बिहार)में निवासरत हैं,जबकि स्थाई पता-ग्राम सोती सलेमपुर(जिला समस्तीपुर-बिहार)है। हिंदी,मैथिली तथा अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले बिहारवासी श्री मिश्र की पूर्ण शिक्षा स्नातकोत्तर है। कार्यक्षेत्र में सेवानिवृत्त(बैंक प्रबंधक)हैं। आपकी लेखन विधा-कहानी, लघुकथा,लेख एवं कविता है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। ब्लॉग पर भी भावनाएँ व्यक्त करने वाले श्री मिश्र की लेखनी का उद्देश्य-साहित्य सेवा है। इनके लिए पसंदीदा हिन्दी लेखक- फणीश्वरनाथ ‘रेणु’,रामधारी सिंह ‘दिनकर’, गोपाल दास ‘नीरज’, हरिवंश राय बच्चन एवं प्रेरणापुंज-फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“भारत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शानदार नेतृत्व में बहुमुखी विकास और दुनियाभर में पहचान बना रहा है I हिंदी,हिंदू,हिंदुस्तान की प्रबल धारा बह रही हैI”

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