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प्रकृति को बचाना सबसे बड़ा कर्तव्य

उषा शर्मा ‘मन’
जयपुर (राजस्थान)
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प्रकृति और मानव स्पर्धा विशेष……..


मचाया प्रकृति ने जब हाहाकार,
सारे उपाय हुए मानव के बेकार।
संभल जा ओ! मानव…

ऐ! मानव मत सताया करो इस प्रकृति को,
इसी की गोद में बैठ कर मत करो बर्बाद इसे।
उठ जा अभी भी समय है तेरे पास,
यह भी तेरी माँ है,मत सता तेरी इस माँ को।

कहने को तो प्रकृति एक छोटा-सा शब्द है,
पर इसकी सार्थकता में संपूर्ण पृथ्वी समाई है।
देख इसके बलिदान को,देख इसके त्याग को,
जो सब कुछ अर्पण कर तुझे मानव बनाती है।

मचाया प्रकृति ने जब हाहाकार,
सारे उपाय हुए मानव के बेकार।
संभल जा ओ! मानव…

मत कर ऐसे काम बचा ले इसे दूषित होने से,
जिसने तुझको पाला-पोसा,जीवन दिया जिसने।
स्वयं दर्द सहकर भरी झोली खुशियों से तेरी,
संभल जाओ वक्त के रहते,अपना ले इस माँ को।

ना हो कभी ऐसा कि तेरी ये माँ कहर बन टूटे तुझ पर,
ओ! मानव देख अपनी इस जननी-माँ को।
जिसने तुझे खून पसीने से सींच के आज का मानव बनाया,
मत कर ऐसा कि तुझे कोई कल का मानव ना कह सके।

मचाया प्रकृति ने जब हाहाकार,
सारे उपाय हुए मानव के बेकार…
संभल जा ओ! मानव…॥

परिचय-उषा शर्मा का साहित्यिक उपनाम ‘मन’ है। जन्म तारीख २२ जुलाई १९९७ एवं स्थान-मानपूर नांगल्या(जयपुर) है। राजस्थान निवासी उषा शर्मा ‘मन’ का वर्तमान निवास बाड़ा पदमपुरा( जयपुर)में ही है। इनको राष्ट्रभाषा हिंदी सहित स्थानीय भाषा का भी ज्ञान है। ‘मन’ की पूर्ण शिक्षा-बी.एड.एवं एम. ए.(हिंदी साहित्य)है। कार्यक्षेत्र में फिलहाल अध्ययन जारी है। आपकी लेखन विधा-लेख कविता,संस्मरण व कहानी है। पसंदीदा हिंदी लेखक जयशंकर प्रसाद को मानने वाली उषा शर्मा ‘मन के देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-
“हिंदी भारत देश के लिए
गौरवमयी भाषा है,
देश की माला का स्वरूप,
भारत माँ का मान है हिंदी।
साहित्य की मन आत्मा का,
जन्मों-जन्मों का साथ है हिंदी।
कवि लेखकों की शान ही हिंदी,
हिंदुस्तान के नाम में है हिंदी॥”

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