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मानव का प्रकृति से आत्मसमर्पण

गीतांजली वार्ष्णेय ‘ गीतू’
बरेली(उत्तर प्रदेश)
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प्रकृति और मानव स्पर्धा विशेष……..


प्रकृति है तो मानव है,वरना मानव अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। प्रकृति से प्राणवायु,जीवनयापन के साधन,औषधि और रत्नों का भंडार सभी कुछ तो मिलता है। कहते हैं कि हर वस्तु की हर काम की एक सीमा होती है,जब कोई भी वस्तु या कर्म हद से ऊपर हो जाता है तो विडम्बनाएं शुरू हो जाती हैं। तब प्रकृति अति भार,अति दोहन,अति प्रदूषण से त्रस्त होकर बाढ़, तूफान,भूकम्प,महामारी जैसी आपदाओं से मानव को आगाह करती है,और अपना संतुलन बनाती है। इन्हीं सबको ध्यान में रखकर मनुष्य को आत्मसमर्पण करना होगा-
करुँ क्या समर्पित माँ,तेरा कर्जदार हूँ मैं,
तेरे घावों का जिम्मेदार हूँ मैं।

रख सीने पर पाँव तेरे,मैंने चलना सीखा है,
आहत है तू अगर आज,तेरा गुनाहगार हूँ मैं।
तेरा कर्जदार हूँ मैं…॥

कर आहार अन्न का तेरे,मैंने उदर को पाला है,
शांत करने को क्षुधा अपनी,तेरा तलबगार हूँ मैं।
तेरा कर्जदार हूँ मैं…॥

पड़ती बूंदें मिट्टी पर,खुशबू सौंधी आती है,
उस मिट्टी के दोहन का,बस एक औजार हूँ मैं।
तेरा कर्जदार हूँ मैं…॥

कर छाया वृक्षों की,तू राही को सुलाती है,
उन वृक्षों के काटने का,बस एक विचार हूँ मैं।
तेरा कर्जदार हूँ मैं…॥

खोद-खोद कर खानें,हृदय में तेरे घाव किए,
उन घावों का तेरे माँ,जिम्मेदार हूँ मैं।
तेरा कर्जदार हूँ मैं…॥

मेरे भवन,कारखानों का तू क्यों इतना बोझ सहे,
तू तपे क्रोध से,तेरे क्रोध का हकदार हूँ मैं।
तेरा कर्जदार हूँ मैं…॥

कर गंदगी,मोटरकारों से बढ़ा प्रदूषण,अपनी शान बढ़ाई है,
वैश्विक तपन से हिम श्रृंखला पिघलाई है।
बाढ़,भूकम्प,तूफानों का जिम्मेदार हूँ मैं,
तेरा कर्जदार हूँ मैं…॥

परिचय–गीतांजली वार्ष्णेय का साहित्यिक उपनामगीतू` है। जन्म तारीख २९ अक्तूबर १९७३ और जन्म स्थान-हाथरस है। वर्तमान में आपका बसेरा बरेली(उत्तर प्रदेश) में स्थाई रूप से है। हिन्दी-अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाली गीतांजली वार्ष्णेय ने एम.ए.,बी.एड. सहित विशेष बी.टी.सी. की शिक्षा हासिल की है। कार्यक्षेत्र में अध्यापन से जुड़ी होकर सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत महिला संगठन समूह का सहयोग करती हैं। इनकी लेखन विधा-कविता,लेख,कहानी तथा गीत है। ‘नर्मदा के रत्न’ एवं ‘साया’ सहित कईं सांझा संकलन में आपकी रचनाएँ आ चुकी हैं। इस क्षेत्र में आपको ५ सम्मान और पुरस्कार मिले हैं। गीतू की उपलब्धि-शहीद रत्न प्राप्ति है। लेखनी का उद्देश्य-साहित्यिक रुचि है। इनके पसंदीदा हिंदी लेखक-महादेवी वर्मा,जयशंकर प्रसाद,कबीर, तथा मैथिलीशरण गुप्त हैं। लेखन में प्रेरणापुंज-पापा हैं। विशेषज्ञता-कविता(मुक्त) है। हिंदी के लिए विचार-“हिंदी भाषा हमारी पहचान है,हमें हिंदी बोलने पर गर्व होना चाहिए,किन्तु आज हम अपने बच्चों को हिंदी के बजाय इंग्लिश बोलने पर जोर देते हैं।”

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