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नेपाली राजनीति अधर में

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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नेपाल की सरकार और संसद एक बार फिर अधर में लटक गई है। राष्ट्रपति विद्यादेवी भंडारी ने अब वही किया है,जो उन्होंने पहले २० दिसंबर को किया था,याने संसद भंग कर दी है और ६ माह बाद नवंबर में चुनावों की घोषणा कर दी है। याने प्रधानमंत्री के.पी. ओली को कुर्सी में टिके रहने के लिए अतिरिक्त ६ माह मिल गए हैं। जब पिछले २० दिसंबर को संसद भंग हुई थी तो नेपाल के सर्वोच्च न्यायालय ने इस निर्णय को गलत बताया और संसद को फरवरी में पुनर्जीवित कर दिया था लेकिन ओली उसमें अपना बहुमत सिद्ध नहीं कर सके। पिछले ३ महीने में काफी जोड़-तोड़ चलती रही। काठमांडो जोड़-तोड़ और लेन-देन की मंडी बनकर रह गया। कई दलों के गुटों में फूट पड़ गई और सांसद अपनी मनचाही पार्टियों में आने और जाने लगे। इसके बावजूद ओली ने अभी तक संसद में विश्वास का प्रसताव नहीं जीता और अपना बहुमत सिद्ध नहीं किया। संसद में जब विश्वास का प्रस्ताव आया तो ओली हार गए। राष्ट्रपति ने फिर नेताओं को मौका दिया कि वे अपना बहुमत सिद्ध करें लेकिन सांसदों की जो सूचियां ओली और नेपाली कांग्रेस के नेता शेर बहादुर देउबा ने राष्ट्रपति को दीं,उनमें दर्जनों नाम एक-जैसे थे। याने बहुमत किसी का नहीं था। सारा मामा विवादास्पद था। ऐसे में राष्ट्रपति विद्यादेवी भंडारी किसे शपथ दिलातीं ? उन्होंने संसद भंग कर दी और नवंबर में चुनावों की घोषणा कर दी। अब विरोधी दलों के नेता दुबारा सर्वोच्च न्यायालय की शरण लेंगे। उन्हें पूरा विश्वास है कि न्यायालय दुबारा इसी संसद को फिर से जीवित कर देगा। उनकी राय है कि यदि सर्वोच्च न्यायालय दुबारा संसद को जीवित नहीं करेगा और ओली सरकार इस्तीफा नहीं देगी तो उसके खिलाफ वे जन-आंदोलन चलाएंगे। दूसरे शब्दों में अगले ५-६ महीनों तक नेपाल में कोहराम मचा रहेगा, जबकि ‘कोरोना’ से हजारों लोग रोज पीड़ित हो रहे हैं। नेपाल की अर्थ-व्यवस्था भी आजकल डांवा-डोल है। वे मांग कर रहे हैं कि नेपाल की राष्ट्रपति को या तो नया प्रधानमंत्री नियुक्त करके संसद में उससे बहुमत सिद्ध करने के लिए कहना था या कोई संयुक्त सरकार बना देनी थी,जो निष्पक्ष चुनाव करवा सकती थी। अब कार्यवाहक प्रधानमंत्री की तौर पर ओली चुनाव आयोग को भी काबू करने की कोशिश करेंगे। विपक्ष के नेता राष्ट्रपति और ओली पर मिलीभगत का आरोप लगा रहे हैं। ओली की कृपा से ही वे अपने पद पर विराजमान हुई हैं। इसीलिए वे ओली के इशारे पर सबको नचा रही हैं। इस आरोप में कुछ सत्यता हो सकती है लेकिन सवाल यह भी है कि यदि विपक्ष की सरकार बन भी जाती तो वह जोड़-तोड़ की सरकार कितने दिन चलती ? इससे बेहतर तो यही है कि चुनाव हो जाएं और नेपाली जनता जिसे पसंद करे,उसी दल को सत्तारुढ़ करवा दे। कोरोना के इस संकट के दौरान चुनाव हो पाएंगें या नहीं,यह भी पक्की तौर पर नहीं कहा जा सकता। नेपाली राजनीति बड़ी मुश्किल में फंस गई है

परिचय– डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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