जसवीर सिंह ‘हलधर’
देहरादून( उत्तराखंड)
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बागों के माली रखवाले,अब से नहीं जमाने से हैं।
कलियों पर काँटों के ताले,अब से नहीं जमाने से हैं।
मिली कहाँ पूरी आजादी,खंडित हिंदुस्तान मिला है,
सरहद पर शोणित के नाले,अब से नहीं जमाने से हैं।
वातावरण आज भारत का,घुटन भरा बतलाते हैं जो,
विषधर असली वो ही काले,अब से नहीं जमाने से हैं।
बँटवारे की पढ़ो कहानी,लाखों जलकर बुझीं जवानी,
हिन्दू-मुस्लिम रटने वाले,अब से नहीं जमाने से हैं।
पानी दवा हवा हरियाली,पैसे वालों ने चर डाली,
बेबस को आँखों में जाले,अब से नहीं जमाने से हैं।
मेरी वाणी तो दर्पण है,असली सूरत दिखलाएगी,
कवियों के छंदों में भाले,अब से नहीं जमाने से हैं।
द्वापर से कलयुग तक देखा,अंधे राजाओं का लेखा,
संसद में जीजा औ साले,अब से नहीं जमाने से हैं।
दागी-बागी सदा रहे हैं देता है इतिहास गवाही,
अँधियारों में दीप उजाले,अब से नहीं जमाने से हैं।
एक महामारी ने ‘हलधर’,तंत्र-यंत्र सारे परखे हैं,
नेताओं के ढंग निराले,अब से नहीं जमाने से हैं॥
परिचय-जसवीर सिंह का साहित्यिक नाम ‘हलधर’ है। १ जनवरी १९६७ को गहना (जिला बुलंद शहर,उत्तर प्रदेश)में जन्मे और वर्तमान निवास देहरादून (उत्तराखंड)में है। शिक्षा -बी.एस-सी.(कृषि-ऑनर्स) व एम.ए.(समाज शास्त्र)है। भारतीय जीवन बीमा निगम में कार्यरत श्री सिंह की प्रकाशित पुस्तकें-शंखनाद,अंतर्नाद व वतन के रखवाले(सांझा संग्रह) आदि है। आपको राष्ट्रीय कवि संगम,हिंदी समिति,ओएनजीसी सहित शिखर सम्मान(पूर्वोत्तर हिंदी अकादमी,मेघालय),छंद शिरोमणी,साहित्यश्री एवं राष्ट्रीय गौरव सम्मान से भी सम्मानित किया गया है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविताओं का प्रकाशन हुआ है तो टी.वी.चैनलों-मंचों पर कविता पाठ भी किया है।