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नववर्ष:अपेक्षाएं रखें,पर उत्तरदायित्व भी निभाएं

गोवर्धन दास बिन्नाणी ‘राजा बाबू’
बीकानेर(राजस्थान)
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सभी जानते हैं कि,पूरे विश्व में धर्मानुसार अलग-अलग दिन नव वर्ष मनाते हैं। अब यदि हम भारत की बात करें तो यहाँ भी अलग-अलग राज्यों में नव वर्ष चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा,गुड़ी पड़वा,उगादी आदि नामों से आरंभ होता है। इसी तरह ईसाई धर्म के लोग १ जनवरी को नव वर्ष का प्रारम्भ मानते हैं और यह दिन लगभग दुनिया भर में सबसे ज्यादा प्रचलित नव वर्ष का प्रथम दिन बन चुका है। अब यह दिन विभिन्न त्यौहारों की तरह बड़ी धूमधाम,उत्साह और हर्षोल्लास के साथ पूरे विश्व में मनाया जाने लगा है।
जैसे विभिन्न त्यौहारों के बाद हम उम्मीद करते हैं कि आने वाले दिन खुशहाली में बीतेंगें,उसी तरह १ जनवरी को आरम्भ होने वाले नए साल में भी इसी तरह की कुछ उम्मीदें भी हैं और उसे पाने के लिए हमारे उत्तरदायित्व भी। अब हम इन दोनों मुद्दों पर ध्यान दें। वैसे तो नए साल से बहुत उम्मीदें हैं,लेकिन कुछ प्रमुख उम्मीदें हैं-
सबसे पहले कोरोना महामारी से मुक्ति,हम सभी को टीका सहजता से उपलब्ध हो जाए,देश में वे सब सामान बनें जिसकी खपत ज्यादा है,ताकि आयात को कम किया जा सके,ग्रामीण इलाकों में उद्योगों की स्थापना द्रुतगति से हो,ग्रामीण स्तर पर ही रोज़गार के अत्यधिक अवसर उत्पन्न होंं,उत्पादों की गुणवत्ता में सुधारात्मक कदम में सरकार पूरा पूरा सहयोग करे,उत्पादकता में वृद्धि का प्रयास में भी सरकार पूरा-पूरा सहयोग करे,देश में उत्पादित वस्तुओं के उपयोग करने के लिए सरकार प्रेरित करे,अच्छी गुणवत्ता वाले सामान ही देश में उत्पादित हों,सरकार द्रुत गति से हर क्षेत्र में आवश्यक सुधारात्मक कदम पर पहल कर लागू करे,सरकार समाज के हर तबके के लोगों को उपरोक्त सभी प्रयासों में शामिल करने के लिए योजनाबद्ध तरीका अपनाए,चीन के साथ शांतिपूर्वक सीमा समस्या का समाधान हो जाए,कश्मीर में अमन व शांति कायम हो जाए और विश्व में भारत का दबदबा और बढ़े।
अब कुछ मह्त्वपूर्ण उत्तरदायित्वों पर भी ध्यान दें-
जब तक ‘कोरोना’ का प्रकोप है,तब तक सावधानियों में ढिलाई नहीं करनी है। यानि २ गज की दूरी,मास्क पहनना व साबुन से हाथ धोते रहना है। कोरोना ने हम सभी को अनुशासित के साथ साथ स्वावलम्बी बना दिया,जिसे बरकरार रखना है। हमें आयातित वस्तुओं का उपयोग कम करना है। हमें अच्छी गुणवत्ता वाले सामान ही उपयोग में लेना है। हम सभी नागरिकों को मिलकर आपस में एक-दूसरे के भले के लिए काम करते हुए आगे बढ़ते रहना है। इस बार कोरोना के चलते हमने निमंत्रण पत्र के बदले ई-निमंत्रण को अपनाया,जिसे ही चालू रखना है ताकि अप्रत्यक्ष रूप से पर्यावरण सरंक्षण में सहभागिता हो जाए। सामाजिक सुधार की दृष्टि से जिस तरह कोरोना काल में हम सभी ने सभी तरह के पारिवारिक आयोजनों में सीमित लोगों की उपस्थिति से सारे रीति-रिवाज सम्पन्न किए,उसे भी प्रोत्साहित कर बढ़ावा देना है। इसी तरह सारे सामाजिक आयोजन भी आभासी तरीके से चालू रखना है,ताकि समय,श्रम व पैसे की बचत हो और सहभागिता भी बढ़े। कोरोना काल में हमने जो मितव्ययिता अपनाई,उसे छोड़ना नहीं है।कोरोना काल में प्रतिरोधकता का जो महत्व देखने में आया,उसे अपना लेना है यानि इसे हमेशा मजबूत रखने का प्रयास रखना है।
उपरोक्त सभी की सफलता के लिए हम देशवासियों को सभी के साथ यानि केवल सरकार से ही नहीं, बल्कि आपस में भी भरपूर सहयोग करना अत्यंत आवश्यक है, जैसे जापान के नागरिकों ने १९४५ के न्यूक्लियर बम काण्ड के बाद किया।
सभी से यही निवेदन कि,मजबूत इच्छाशक्ति और आत्मबल से हम स्वयं में बदलाव लाकर ‘परिवार, समाज ,देश’ को दीर्घकालीन लाभप्रद स्थिति प्रदान कर सकते हैं,तो उस पर दृढ़ निश्चय से हम सभी को प्रयत्न अवश्य करना चाहिए।

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