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नहीं सरल जीवन सखे

शिवेन्द्र मिश्र ‘शिव’
लखीमपुर खीरी(उप्र)
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कभी दर्द में आह! तो,कभी खुशी में वाह।
नहीं सरल जीवन सखे,बहुत कठिन है राह॥

मत पालो आस्तीन में,तुम जहरीले साँप।
दूध पिलाओगे अगर,होगा पश्चाताप॥

छूमंतर हर दर्द को,करती माँ की फूंक।
माँ का हर नुस्खा,दुआ,दोनों बहुत अचूक॥

संघर्षों में जिंदगी,जीने को मजबूर।
भौतिक संसाधन जिन्हें,मिले नहीं भरपूर॥

मेरे जीवन का मुझे,धूमिल लगता रंग।
शायद किस्मत में नहीं,मित्र तुम्हारा संग॥

मोबाइल का हो गया,बहुत अहम अब रोल।
रिश्ते-नातों में रहे,विष नफरत का घोल॥

हर सम्भव करते जतन,बचा सके जन प्रान।
तभी चिकित्सक को कहें,धरती के भगवान॥

कटी हुईं शा़खें कभी,दे पाईं क्या छाँव।
उम्मीदों ने दर्द के,सिर्फ़ बसाए गाँव॥

होता है माँ-बाप का,जहाँ खूब सम्मान।
बहती सुरसरि प्रेम की,गृह वह स्वर्ग समान॥

द्वेष भाव शिकवे गिले,दो निकाल सब शूल।
लगे महकने ‘शिव’ हृदय,ज्यों गुलाब का फूल॥

परिचय- शिवेन्द्र मिश्र का साहित्यिक उपनाम ‘शिव’ है। १० अप्रैल १९८९ को सीतापुर(उप्र)में जन्मे शिवेन्द्र मिश्र का स्थाई व वर्तमान बसेरा मैगलगंज (खीरी,उप्र)में है। इन्हें हिन्दी व अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। जिला-लखीमपुर खीरी निवासी शिवेन्द्र मिश्र ने परास्नातक (हिन्दी व अंग्रेजी साहित्य) तथा शिक्षा निष्णात् (एम.एड.)की पढ़ाई की है,इसलिए कार्यक्षेत्र-अध्यापक(निजी विद्यालय)का है। आपकी लेखन विधा-मुक्तक,दोहा व कुंडलिया है। इनकी रचनाएँ ५ सांझा संकलन(काव्य दर्पण,ज्ञान का प्रतीक व नई काव्यधारा आदि) में प्रकाशित हुई है। इसी तरह दैनिक समाचार पत्र व विभिन्न पत्रिकाओं में भी प्रकाशित हैं। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार देखें तो विशिष्ट रचना सम्मान,श्रेष्ठ दोहाकार सम्मान विशेष रुप से मिले हैं। श्री मिश्र की लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा की सेवा करना है। आप पसंदीदा हिन्दी लेखक कुंडलियाकार श्री ठकुरैला व कुमार विश्वास को मानते हैं,जबकि कई श्रेष्ठ रचनाकारों को पढ़ कर सीखने का प्रयास करते हैं। विशेषज्ञता-दोहा और कुंडलिया केA अल्प ज्ञान की है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार(दोहा)-
‘हिन्दी मानस में बसी,हिन्दी से ही मान।
हिन्दी भाषा प्रेम की,हिन्दी से पहचान॥’

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