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स्त्री का दर्द

रोशनी दीक्षित
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)
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स्त्री हूँ,स्त्री का दर्द समझती हूँ,
दिखती हूँ फूल-सी
पर पाषाण-सा हृदय रखती हूँ,
मरती है,जब यह कोख में
मैं भी तड़पती हूँ,
इसकी अंतिम साँस में
मैं भी तो मरती हूँ।
स्त्री हूँ,स्त्री का दर्द समझती हूँ…

कहते हैं ये लुटेरे कपड़े छोटे हैं तेरे,
साड़ी नहीं है पहननी तूने!
जींस-टाॅप क्यों पहने ?
फिर क्यों इन भेड़ियों की नजरें,
डाइपर भी चीर देती हैं ?
तेरे साथ-साथ गुड़िया मेरी,
मैं भी तड़पती हूँ।
स्त्री हूँ,स्त्री का दर्द समझती हूँ…

जिस घर जन्मी! वहाँ परायी और जिस घर आयी,
वहाँ दूसरे घर से आयी कहलाती हूँ,
पिसती हूँ दोनों पाटों पर…
सबको अपना समझती हूँ।
स्त्री हूँ,स्त्री का दर्द समझती हूँ…

पिटती है जब,जलती है जब दहेज के नाम पर…
उठाई जाती है,
उँगली तेरे चरित्र के नाम पर।
अग्नि परीक्षा देती सीता-सी,
तेरे साथ-साथ मैं भी तो तपती हूँ।
स्त्री हूँ,स्त्री का दर्द समझती हूँ…

लुटती अपनों के हाथों से,छलती है प्यार से,
छिनती तेरी अस्मत जब सारे बाज़ार में
तेरे साथ-साथ ओ निर्भया,
मैं भी सिसकती हूँ।
स्त्री हूँ,स्त्री का दर्द समझती हूँ…

भू-धरा हूँ,गंगा जैसी मैं भी तो शांत हूँ,
सुधर जा…ऐ मानव
बदल दे अपनी प्रवृत्ति,
अति होने पर अब मैं भी ज्वालामुखी-सी धधकती हूँ।
पिघलती हूँ मोम-सी,पर अग्नि में जलती हूँ।
स्त्री हूँ,स्त्री का दर्द समझती हूँँ…॥

परिचय-रोशनी दीक्षित का जन्म १७ जनवरी १९८० को जबलपुर (मप्र)में हुआ है। वर्तमान बसेरा जिला बिलासपुर (छत्तीसगढ़) स्थित राजकिशोर नगर में है। स्नातक तक शिक्षित रोशनी दीक्षित ने एनटीटी सहित बी.एड. एवं हिंदी साहित्य से स्नातकोत्तर भी किया है। इनका कार्य क्षेत्र-शिक्षिका का है। लेखन विधा-कविता,कहानी,गज़ल है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी भाषा का प्रचार व विकास है।