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तस्वीर और तकदीर में फर्क

रौशनी अरोड़ा ‘रश्मि’ 

दिल्ली

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तस्वीर बहुत ही खूबसूरत लगती है। वो सिर्फ शांत रहती है,मुस्कुराती है और अपनी शांति से हमें भी खुशी देती है,हमारे मन को सूकून देती है। तस्वीर को देख-देख कर,उसमें खो कर हम अपने हसीन ख़्वाब संजोने लगते हैं और उन्हीं ख़्वाबों में समा जाते हैंl परम आनंद की अनुभूति करते हैं,यानी खुद को जन्नत में पहुँच गए हैं,ऐसा महसूस करते हैं,किन्तु जो कुछ भी हमें किसी की,सिर्फ तस्वीर मात्र से मिलता है,वो सब तकदीर हमें नहीं देती। तकदीर का आईना और उसकी हकीकत तो उस तस्वीर से मिले हसीन ख़्वाबों और जन्नत से विपरीत होता है। तकदीर हमें वो सब कभी नहीं देती,जिसकी हम सदैव कल्पना करते हैं,चाहत रखते हैं। तकदीर जो भी देती है हमारी चाहतों,आकांक्षाओं के विपरीत ही देती है। इस पर शेर अर्ज़ है-

“तकदीर तो हमें सिर्फ और सिर्फ दर्द-ए-रुसवाई देती है,आँसू देती है और तनहाई देती है,वो तो बस हमें यारों ता-उम्र,सिर्फ और सिर्फ ग़मे-ज़िन्दगी देती है।” यही फर्क होता है तस्वीर और तकदीर में।

परिचय-रौशनी अरोड़ा का साहित्यिक नाम ‘रश्मि’ है। दिल्ली में ही निवासरत रश्मि की जन्म तारीख ६ दिसम्बर १९७८ है। लेखिका और गायिका रश्मि को दिल्ली में संगीत कार्यक्रम में गायिकी के लिए सम्मान प्राप्त हुआ है। आपकी रचनाएं दैनिक अखबारों-पत्रिका में प्रकाशित होती रहती हैं। आपको दिल्ली के कवि सम्मेलन तथा नोएडा से बज़्म-ए-हिंद संग्रह से भी सम्मानित किया गया है।

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