संदीप सृजन
उज्जैन (मध्यप्रदेश)
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समन्वय और समरसता की मिसाल रहे भारत के १३वें राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी अपने जीवन के ८४ वर्ष पूरे कर अनन्त की यात्रा पर निकल गए। २१०२ से २०१८ तक इस पद पर रहे प्रणब दा भारत के राष्ट्रपति बनने से पहले भारत सरकार के वित्त मंत्री भी रहे। भारत के आर्थिक मामलों,संसदीय कार्य,बुनियादी सुविधाएँ व सुरक्षा समिति में वे वरिष्ठ नेता रहे रहे। उन्होंने विश्व व्यापार संगठन व भारतीय विशिष्ठ पहचान प्राधिकरण क्षेत्र में भी कार्य किया था,जिसका अनुभव उन्हें भारत के राजनीतिक सफ़र में बहुत काम आया। गत वर्ष २६ जनवरी को उन्हें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा भारत रत्न
से सम्मानित भी किया गया था।
प्रणब मुखर्जी के घर में राजनीतिक माहौल होने से बचपन से ही प्रणब दा का मन राजनीति में आने का था। प्रणब मुखर्जी के राजनीतिक सफ़र की शुरुवात १९६९ में हुई,जब वे कांग्रेस का टिकट प्राप्त कर राज्यसभा के सदस्य बन गए,४ बार वे इस पद के लिए चयनित हुए। वे थोड़े ही समय में इंदिरा गांधी के चहेते बन गए थे। सन १९७३ में इंदिरा जी के कार्यकाल के दौरान वे औद्योगिक विकास मंत्रालय में उप-मंत्री बन गए। १९७५-१९७७ में आपातकालीन स्थिति के दौरान प्रणब मुखर्जी पर बहुत से आरोप भी लगाये गए,लेकिन इंदिरा गांधी के सत्ता आने के बाद उन्हें ‘क्लीन चिट’ मिल गई। इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री के कार्यकाल के दौरान प्रणब जी वित्त मंत्री रहे थे।
इंदिरा गांधी की हत्या के पश्चात् राजीव गाँधी से प्रणब जी के संबंध कुछ ठीक नहीं रहे,फिर भी राजीव गाँधी ने अपने कैबिनेट मंत्रालय में प्रणब दा को वित्त मंत्री बनाया था,लेकिन राजीव गाँधी से मतभेद के चलते प्रणब दा ने अपनी अलग ‘राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस’ पार्टी गठित कर दी थी। बाद में वे एक बार फिर कांग्रेस से जुड़ गए। कुछ लोग इसके पीछे की वजह ये बोलते थे कि इंदिरा गाँधी की मौत के बाद प्रणब जी खुद को प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में देखते थे,लेकिन उनकी मौत के बाद सब राजीव गाँधी से ये उम्मीद करने लगे।
पी.वी. नरसिम्हाराव का प्रणब दा के राजनीतिक जीवन को आगे बढ़ाने में बहुत बड़ा योगदान है। नरसिम्हाराव जब प्रधानमंत्री थे,तब उन्होंने प्रणब दा को योजना आयोग का प्रमुख बना दिया। थोड़े समय बाद उन्हें केन्द्रीय कैबिनेट मंत्री और विदेश मंत्रालय का कार्य भी सौंपा गया। प्रणब मुखर्जी केन्द्रीय चुनाव आयोग के अध्यक्ष भी रहे। १९९७में प्रणब मुखर्जी को भारतीय संसद समूह द्वारा उत्कृष्ट सांसद का ख़िताब दिया गया।
सोनिया गाँधी को कांग्रेस प्रमुख बनाने में प्रणब दा का बहुत बड़ा हाथ है। राजनीति के सारे दाव-पेंच सोनिया गांधी को प्रणब दा ने ही सिखाये थे। ऐसा माना जाता है कि,प्रणब जी के परामर्श के बिना सोनिया जी कुछ नहीं करती थी।
लोकसभा सदस्य बन कर उन्होंने रक्षा मंत्री,विदेश मंत्री,वित्त मंत्री और लोकसभा में कांग्रेस पार्टी के नेता के रूप में सराहनीय काम किए। इस दौरान डॉ.मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाया गया। कहते हैं कि अगर उस समय प्रणब मुखर्जी को प्रधानमंत्री बनाया जाता तो आज देश विकास के क्षेत्र में बहुत आगे होता।
फिर प्रणब मुखर्जी पी.ए. संगमा को हराकर राष्ट्रपति पद पर आसीन हुए। ये पहले बंगाली थे,जो राष्ट्रपति बने थे। प्रणब दा का राष्ट्रपति बनने तक का सफ़र आसान नहीं रहा,उन्हें काफी उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ा। प्रणब दा ने अपने जीवन के ४० साल भारतीय राजनीति को दिए,जो महत्वपूर्ण योगदान है। उम्र के इस पड़ाव में आकर जहाँ लोग हार मान जाते हैं,और आपा खो बैठते हैं,वहीं प्रणब दा ने संयम,धैर्य से अपने राजनीतिक जीवन को एक दिशा प्रदान की थी।
प्रणब दा को पढ़ने,लिखने,बागवानी और संगीत का बहुत शौक था। इनके द्वारा कई किताबें लिखी गई। प्रणब दा को ‘भारत रत्न’ से नवाजा गया। इसके पहले पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया जा चुका था। विश्व के सबसे अच्छे वित्त मंत्री के रूप में उन्हें उपलब्धि मिली थी।
प्रणब मुखर्जी के राष्ट्रपति बनने के पश्चात कई दया याचिका प्राप्त हुई,जिनमें से उन्होंने याचिकाओं को पूरी तरह से रद्द कर दिया। इसमें मुंबई हमले के आतंकवादी कसाब की दया याचिका भी शामिल थी। प्रणब मुखर्जी ने भारत की राजनीति में अहम योगदान दिया है,उनके कार्यों को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता है। देश के लिए समर्पित रहे राजनेताओं की अग्रपंक्ति में उनका नाम और काम रहेंगे। विनम्र श्रद्धंजलि।