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आदर्श जीवन की मिसाल गांधी और शास्त्री जी

संदीप सृजन
उज्जैन (मध्यप्रदेश) 
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गांधी जयंती विशेष…………..

महात्मा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री ऐसे दो महामानव जो भारत के भाग्य विधाता रहे,जिनकी विचारधारा एक-दूसरे की पूरक रही। जो देश के लिए जिए और देश के हित में ही काल के ग्रास बने। देश और समाज के प्रति दोनों की समर्पण भावना में किंचित मात्र भी संदेह नहीं किया जा सकता है। ऐसे दोनों महापुरुषों का जन्मदिन एकसाथ होना भी किसी महान संयोग से कम नहीं है।

गांधी जी अहिंसा के प्रबल समर्थक,शांति के अग्रदूत‌ रहे,तो शास्त्री जी दृढ़ इच्छा शक्ति के व्यक्तित्व बनकर समाज में उभरे। गांधी जी के जीवन ने न केवल भारतीय समाज को प्रभावित किया,वरन विश्व के तमाम देशों में उनके जीवन को आदर्श जीवन का आधार माना जाता है,तो शास्त्री जी की नैतिक कार्यशैली और दूरदर्शिता का कोई सानी नहीं है। वर्तमान समय में बढ़ती भुखमरी,बेरोजगारी,विश्व हिंसा,वैश्विक आर्थिक मंदी और आपसी वैमनस्यता जैसी समस्याओं से सारा विश्व आहत है। ऐसे समय में महात्मा गांधी और शास्त्री जी के विचारों की प्रासंगिकता और अधिक हो जाती है।

गांधी जी अपने समय के तमाम महापुरुषों में बिरले थे,क्योंकि उन्होंने सत्य और नैतिक जीवन को सिर्फ जीया ही नहीं,लिखने का साहस भी किया। अपने जीवन की बुराइयों को छुपाने की कोशिश भी नहीं की,यह उनकी सत्यनिष्ठा को दर्शाता है।

गांधी जी को वैष्णव संस्कार अपनी माँ से जनम घुट्टी के साथ मिले थे। गांधी जी के जीवन में नरसी मेहता के भजन वैष्णव जन तो तेने कहिये का बहुत प्रभाव रहा। इस भजन को ही गांधीजी ने अपने जीवन में अंगीकार किया। इस भजन में उल्लेखित गुण परोपकार,निंदा न करना,छल-कपट रहित जीवन और इंद्रियों पर नियंत्रण आदि को जीवनपर्यंत अपनाया और इन्हीं के द्वारा भारत में राम राज की स्थापना की संकल्पना की। ये गुण ही मोहनदास गांधी को महात्मा गांधी बनाते हैं।

लाल बहादुर शास्त्री बचपन से अभावों में पले और बड़े हुए,लेकिन अपने मितव्ययी और आत्मनिर्भर स्वभाव के चलते हर हाल में खुश रहने वाले व्यक्तियों में थे। बड़े होने के साथ ही लाल बहादुर शास्त्री विदेशी दासता से आजादी के लिए देश के संघर्ष में अधिक रुचि रखने लगे। वे महात्मा गांधी द्वारा चलाए जा रहे स्वाधीनता आंदोलन से प्रभावित थे। लाल बहादुर शास्त्री जब केवल ११ वर्ष के थे,तब से ही उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर कुछ करने का मन बना लिया था।

गांधी जी ने असहयोग आंदोलन में शामिल होने के लिए अपने देशवासियों से आह्वान किया था,इस समय लाल बहादुर शास्त्री केवल १६ वर्ष के थे। उन्होंने इस आह्वान पर पढ़ाई छोड़ देने का निर्णय कर लिया था। इस निर्णय ने उनकी माँ की उम्मीदें तोड़ दीं। उनके परिवार ने रोकने की बहुत कोशिश की,लेकिन असफल रहे। उनके सभी करीबी लोगों को यह पता था कि एक बार मन बना लेने के बाद वे अपना निर्णय कभी नहीं बदलेंगें,क्योंकि बाहर से विनम्र दिखने वाले लाल बहादुर अन्दर से चट्टान की तरह दृढ़ हैं।

गांधीजी आधुनिक भारत के अकेले नेता थे,जो किसी एक वर्ग एक विषय एक लक्ष्य को लेकर नहीं चले,जन-जन के नेता थे,करोड़ों लोगों के हृदय पर राज करते थेl साम्राज्यवाद,जातिय सांप्रदायिक समस्या,भाषा नीति और सामाजिक सुधार पर अपने व्यक्तिगत और राष्ट्रीय सरोकार ही गांधी को महान विभूति बनाते हैं।

शास्त्री जी ने भी स्वतंत्रता के पहले गांधी जी के साथ नमक कानून को तोड़ते हुए दांडी यात्रा की। इस प्रतीकात्मक सन्देश ने पूरे देश में एक तरह की क्रांति ला दी। लाल बहादुर शास्त्री विह्वल ऊर्जा के साथ स्वतंत्रता के इस संघर्ष में शामिल हो गए। उन्होंने कई विद्रोही अभियानों का नेतृत्व किया एवं कुल ७ वर्ष तक ब्रिटिश जेलों में रहे। बाद में स्वतंत्र भारत में शास्त्री जी ने केन्द्रीय मंत्रिमंडल के कई विभागों का प्रभार संभालाl

सारे विश्व के लिए समरसता,सद्भाव,अहिंसा और सत्य की बात करने वाले गांधी जी भारतीय स्वतंत्रता संगाम के वो चमत्कारिक नायक बने,जिनके एक आव्हान पर भारत का समूचा जनमानस एकत्रित और संगठित रूप में ब्रिटिश शासकों के विरुद्ध खड़ा हो गया था। गांधी जी ने नस्लभेद मिटाने के साथ हिंदु समाज के अविभाज्य अंग को हरिजन नाम दिया और हिन्दू-मुस्लिम में एकता स्थापित करने के कई प्रयास भी किए।

३० से अधिक वर्षों तक अपनी समर्पित सेवा के दौरान लाल बहादुर शास्त्री अपनी उदात्त निष्ठा एवं क्षमता के लिए लोगों के बीच प्रसिद्ध हो गए थे। विनम्र,दृढ़,सहिष्णु एवं जबर्दस्त आंतरिक शक्ति वाले शास्त्री जी लोगों के बीच ऐसे व्यक्ति बनकर उभरे,जिन्होंने लोगों की भावनाओं को समझा। वे दूरदर्शी थे,जो देश को प्रगति के मार्ग पर लेकर आए। शास्त्री जी,महात्मा गांधी की राजनीतिक शिक्षाओं से अत्यंत प्रभावित थे।

२ अक्टूबर १९६९ को गांधी जी और २ अक्टूबर १९०४ को लाल बहादुर शास्त्री का जन्म हुआ,तथा दोनों महामानवों के विचार और वैचारिक दृढ़ता में अद्भूत सामंजस्य था। दोनों ने भारत को आजादी दिलाने के लिए तन-मन-धन से लोगों को जोड़ा,साथ ही स्वावलंबी समाज की ओर प्रवृत किया। नैतिक जीवन जी कर समाज को संदेश दिया,जो सामान्य मनुष्य के लिए संभव नहीं होता है। यही वजह रही होगी कि,उस समय महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने गांधी जी के बारे में बिलकुल सटीक कहा था कि-“भविष्य की पीढ़ियों को इस बात पर विश्वास करने में मुश्किल होगी कि हाड़-माँस से बना ऐसा कोई व्यक्ति भी कभी धरती पर आया था।” वही लाल बहादुर शास्त्री के बारे में कहा जाता है कि,वे छोटे कद के बड़े व्यक्ति थे। दोनों महापुरुषों को सादर नमन।

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