कुल पृष्ठ दर्शन : 208

You are currently viewing समाज संस्कारक रहे राजा राममोहन राय

समाज संस्कारक रहे राजा राममोहन राय

गोपाल चन्द्र मुखर्जी
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
************************************************************

२२ मई जयंती विशेष…………..
हिन्दीभाषा के विशेष प्रेमी व तत्कालीन अखण्ड भारतवर्ष के सुपुत तथा अनेक भाषाओं में प्रखर विद्वान, निर्भिक मानव दरदी,समाज सुधारक राजा राममोहन राय के जयंती के शुभ अवसर पर श्री चरणों में प्रणाम करते हुए श्रद्धार्घ अर्पण..।
आज से हजारों वर्ष पूर्व में भारतवर्ष एक अखण्ड एवं विशाल देश रहा, जिस देश में बिना कोई विरोध या रोक- टोक से चल रहा था अराजकता व कुसंस्कारों का सिलसिला। उस समय समाज की कुछ क्षमतावान गोष्ठी, ब्राह्मण या उच्च कुल में जन्मे लोग ख़ुद को ईश्वर का सर्वश्रेष्ठ कृत्व या ईश्वर का प्रतिनिधि या समाज का एकमात्र सक्षम प्रशासक या अधिकारी बता कर निम्न कुल में जन्मे गरीब तथा अशिक्षित निरक्षर लोगों को भयभीत करते हुए अपना अपना स्वार्थ को सिद्ध करने के लिए कुसंस्कार का जाल बिछवाकर स्वरचित या स्वयं द्वारा बनाए गए अनैतिक व कूट नियमों में फंसाकर अत्याचार किया करते थे। ऐसे निर्दयी व प्रभावशाली लोगों के कारण तत्कालीन विचार व्यवस्था नीरव दर्शक रहा। ठीक उस समय में २२ मई १७७२ में उच्च ब्राह्मण जमींदार ‘राजा’ उपाधि धारण करनेवाले कुल में जन्म हुआ राममोहन राय का,जिसके कारण राममोहन राय के नाम के साथ वंश परम्परा के अनुसार ‘राजा’ उपाधि लगाकर लोग सम्बोधित किया करते थे। आप हिंदी,अंग्रेजी,संस्कृत,उर्दू,फारसी आदि भाषा के प्रखर विद्वान व दखल रखने वाले रहे। हिन्दी भाषा के प्रेमी राजा राममोहन राय एवं नवीन मानवतावाद या नए भारत के कल्पनाकार कुसंस्कारों या कुरीतिओं से मुक्त करके धर्म व न्याय को पुनः प्रतिष्ठित कर समाज या सामाजिक त्रुटिपूर्ण या दोषपूर्ण कुसंस्काराच्छन्न नियमों को सुधार कराने के अग्रदुत राजा राममोहन राय रहे।
निर्भीक राजा राममोहन जी ने समाज से कुरीति व अन्धविश्वास को निर्मूल कराकर समाज व्यवस्था को कुसंस्कार मुक्त करने के लिए ब्रह्म समाज की प्रतिष्ठा की। तत्कालीन समाज व्यवस्था के प्रचण्ड विरोध व आपत्ति की परवाह न करते हुए अंग्रेज सरकार से कानून पारित करा कर ‘सती दाह प्रथा’ को बंद कराया।
आप भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन में अग्रणी व्यक्ति रहे। समाचार-पत्र में पत्रकारिता को स्वतंत्र,प्रखर,मुखर,निर्भीक एवं शक्तिशाली करने के लिए ‘प्रेस’ की प्रतिष्ठा की थी।

परिचय-गोपाल चन्द्र मुखर्जी का बसेरा जिला -बिलासपुर (छत्तीसगढ़)में है। आपका जन्म २ जून १९५४ को कोलकाता में हुआ है। स्थाई रुप से छत्तीसगढ़ में ही निवासरत श्री मुखर्जी को बंगला,हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। पूर्णतः शिक्षित गोपाल जी का कार्यक्षेत्र-नागरिकों के हित में विभिन्न मुद्दों पर समाजसेवा है,जबकि सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत सामाजिक उन्नयन में सक्रियता हैं। लेखन विधा आलेख व कविता है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में साहित्य के क्षेत्र में ‘साहित्य श्री’ सम्मान,सेरा (श्रेष्ठ) साहित्यिक सम्मान,जातीय कवि परिषद(ढाका) से २ बार सेरा सम्मान प्राप्त हुआ है। इसके अलावा देश-विदेश की विभिन्न संस्थाओं से प्रशस्ति-पत्र एवं सम्मान और छग शासन से २०१६ में गणतंत्र दिवस पर उत्कृष्ट समाज सेवा मूलक कार्यों के लिए प्रशस्ति-पत्र एवं सम्मान मिला है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-समाज और भविष्य की पीढ़ी को देश की उन विभूतियों से अवगत कराना है,जिन्होंने देश या समाज के लिए कीर्ति प्राप्त की है। मुंशी प्रेमचंद को पसंदीदा हिन्दी लेखक और उत्साह को ही प्रेरणापुंज मानने वाले श्री मुखर्जी के देश व हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिंदी भाषा एक बेहद सहजबोध,सरल एवं सर्वजन प्रिय भाषा है। अंग्रेज शासन के पूर्व से ही बंगाल में भी हिंदी भाषा का आदर है। सम्पूर्ण देश में अधिक बोलने एवं समझने वाली भाषा हिंदी है, जिसे सम्मान और अधिक प्रचारित करना सबकी जिम्मेवारी है।” आपका जीवन लक्ष्य-सामाजिक उन्नयन है।

Leave a Reply