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रोटियाँ

ओम अग्रवाल ‘बबुआ’
मुंबई(महाराष्ट्र)
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भूख का श्रृंगार तो,होती हैं रोटियाँ,
और माँ का प्यार भी,होती हैं रोटियाँ।
जिंदगी बेशक लहू की, कर्जदार हो,
रक्त का आधार तो, होती हैं रोटियाँ॥

भूप हो या भूप की सी,शान-ओ-शौकत ही सही,
किन्तु उसने शाम को,मांगी थी रोटियाँ।
मैं रहा मुजरिम मगर थे,वे जरा हाकिम बड़े,
किन्तु सबने ही,खाईं थी रोटियाँ॥

थी कोई छोटी बड़ी या,गोल या बेडौल-सी,
किन्तु सारी ही सकीं, तावे पे रोटियाँ।
एक भी टुकड़ा मुझे तो,था मयस्सर ही नहीं,
किन्तु संसद में सिकीं,सत्ता की रोटियाँ॥

हो कोई शाही महल या,जेल की दीवार हो,
किन्तु सबकी नींव में थीं,एक सी ही रोटियाँ।
हो कोई दंगा कि या फिर,संत का सम्मान हो,
हर किसी के मूल में, होती हैं रोटियाँ॥

हो जनम का जश्न या फिर,दावतें शादी की हों,
मौत के भी भोज में,होती हैं रोटियाँ।
हो वो चालक यान का या,डोम हो शमशान का,
हर किसी के काम में,होती हैं रोटियाँ॥

एक थी मण्डी रतन फिर,एक तन मण्डी रही,
कीमतें थीं बस वही,दो वक्त की ही रोटियाँ।
हम बुरे हों या भले हों,रंक या राजा सही,
भूख में तो हम सभी को,याद आती रोटियाँ॥

परिचय-ओमप्रकाश अग्रवाल का साहित्यिक उपनाम ‘बबुआ’ है।आप लगभग सभी विधाओं (गीत, ग़ज़ल, दोहा, चौपाई, छंद आदि) में लिखते हैं,परन्तु काव्य सृजन के साहित्यिक व्याकरण की न कभी औपचारिक शिक्षा ली,न ही मात्रा विधान आदि का तकनीकी ज्ञान है।आप वर्तमान में मुंबई में स्थाई रूप से सपरिवार निवासरत हैं ,पर बैंगलोर  में भी  निवास है। आप संस्कार,परम्परा और मानवीय मूल्यों के प्रति सजग व आस्थावान तथा देश-धरा से अपने प्राणों से ज्यादा प्यार है। आपका मूल तो राजस्थान का झूंझनू जिला और मारवाड़ी वैश्य है,परन्तु लगभग ७० वर्ष पूर्व परिवार उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में आकर बस गया था। आपका जन्म १ जुलाई को १९६२ में प्रतापगढ़ में और शिक्षा दीक्षा-बी.कॉम.भी वहीं हुई है। आप ४० वर्ष से सतत लिख रहे हैं।काव्य आपका शौक है,पेशा नहीं,इसलिए यदा-कदा ही कवि मित्रों के विशेष अनुरोध पर मंचों पर जाते हैं। लगभग २००० से अधिक रचनाएं आपने लिखी होंगी,जिसमें से लगभग ७०० का शीघ्र ही पाँच खण्डों मे प्रकाशन होगा। स्थानीय स्तर पर आप कई बार सम्मानित और पुरस्कृत होते रहे हैं। आप आजीविका की दृष्टि से बैंगलोर की निजी बड़ी कम्पनी में विपणन प्रबंधक (वरिष्ठ) के पद पर कार्यरत हैं। कर्नाटक राज्य के बैंगलोर निवासी श्री  अग्रवाल की रचनाएं प्रायः पत्र-पत्रिकाओं और काव्य पुस्तकों में  प्रकाशित होती रहती हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-जन चेतना है।

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