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लगन,मेहनत और अभिनय से किरदार बनता सचिन

इदरीस खत्री
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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माना कि मेरी ज़ात सिकन्दर तो नही हैं, हारते रहना भी मुकद्दर तो नहीं है एक रोज पार कर जाऊँगा तुझे भी, तू मेरी ज़िंदगी का पहला समुन्दर तो नहीं हैl
दोस्तों आँखें होती छोटी हैं,पर सपने हमेशा बड़े देखती हैंl इन्हीं पंक्तियों को चरितार्थ किया सागर(मप्र) के सचिन नायक नेl सामान्य कद-काठी वाले सचिन बहुत सहज होने के साथ अनुशासन के भी पक्के हैं,क्योंकि उनके अभिनय की पृष्ठभूमि रंगमंच रही है,और रंगमंच अभिनय के साथ अनुशासन-दृढ़ संकल्प भी सिखाता हैl सचिन ने नाटक में एम.ए. किया हैl इनसे मेरी दोस्ती अन्तर्विश्वविद्यालयीन युवा महोत्सव के दौरान हुई थीl तब हम दोनों ही अभिनय सीखने की प्रक्रिया में थेl हम दोनों के बीच एक अहम सूत्र थे अभिनय के गुरु राकेश सोनीl खैर,सचिन मुम्बई नगरी पहुंचे,तो यहां से सचिन के संघर्ष के दिनों की शुरूआत हुई, लेकिन सचिन ने मद्धम-मद्धम अपने लक्ष्य की ओर बढ़ना जारी रखाl जब भी मौका मिलता,खुद को साबित करता रहाl
शुरूआत में कुछ टी.वी. धारावाहिक में १-२ दिन का काम भी कियाl २००५ में एक विज्ञापन मिला हेप्पीडेन्ट का,जिससे सचिन को नाम और शोहरत मिलीl इस विज्ञापन फ़िल्म को मुख्तलिफ सम्मानों से नवाजा गयाl एक अवार्ड जिसका जिक्र ज़रूरी भी है,२१वीं सदी के 10 वैश्विक मुख्य विज्ञापनों में इसे जगह मिली हुई हैl अब टी.वी. पर काम मिलना तय हुआ तो क्राईम पेट्रोल, राजा की आएगी बारात,हीरो नामक धारावाहिक में खलनायक के किरदार को जीवंत बनायाl फिर बहुतेरे धारावाहिकों में काम कियाl बड़े पर्दे के साथ सफर शुरू हुआ २००६ से माय नेम इस एंथोनी सेl किरदार छोटा,परन्तु सचिन की लगन और मेहनत के साथ अभिनय की दक्षता ने किरदार को यादगार बनायाl

सिद्धार्थ प्रिजनर्स में २ किरदार रजत कपूर और सचिन ने जीवंत बनाएl यह किरदार बड़ा था और सचिन की अभिनय क्षमताओं का शानदार प्रस्तुतिकरण भी थाl इस फ़िल्म को ऑस्ट्रेलिया में ग्रेंड ज्यूरी सम्मान से नवाजा गयाl फिर तो सिंघम रिटर्न(अजय देवगन),फ्रूट एंड नट(दीया मिर्ज़ा),स्पेशल- २६(अक्षय कुमार) सहित मीरा नायर की लघु फ़िल्म माइग्रेशन(इरफान के साथ) में भी अभिनय कियाl कड़वी हवा में भी एक अहम किरदार निभाया,इस फ़िल्म को राष्ट्रीय सम्मान भी मिलाl
सचिन के खाते में लगभग १८ फीचर फिल्में ,१५० से ज्यादा विज्ञापन फिल्म,८ टी.वी. धारावाहिक हैंl अब अगली पेशकश है लूटकेस-एक ब्लैक हास्य,सनसनीखेज फ़िल्म हैl इसमें कुणाल खेमू,विजय राज मुख्य भूमिकाओं में हैंl इस फ़िल्म में एक बड़ा और उम्दा किरदार निभा रहे सचिन इतने सहज और शालीन हैं कि,जब छोटे कलाकारों से मुखातिब होते हैं तो उनके संस्कार और संस्कृति आचरण में दिखती हैl उनके अभिनय की इस यात्रा पर उनसे मेरे कुछ सवाल-

अभिनय,साधना है-

-आप कैसे दिखते हैं,यह मायने नहीं रखताl आप अपने चेहरे से काम कैसे लेते हैं-भाव कैसे प्रकट करते हैं,यह अभिनय में मायने रखता हैl

रंगमंच-

-पहला प्यार है,संघर्ष करना सिखाता हैl अभिनय के हर आयाम से रूबरू करवाता हैl

फ़िल्म-पैसा-शोहरत-

-अभिनय का चरम हैl

फ़िल्म जगत-

-आप जो करना चाहते हैं,उससे नाम और पैसा मिल जाए तो स्वांत: सुखाय चरम सुख देता हैl
सचिन की आँखें छोटी है,लेकिन सपने बड़े देखे,और उनको पूरा करने के लिए निष्ठा से समर्पित होकर साधना में लीन हो जाना ही अभिनय आंदोलन में खुद की आहूति देना होता है,जो सचिन कर चुके हैंl

परिचय : इंदौर शहर के अभिनय जगत में १९९३ से सतत रंगकर्म में इदरीस खत्री सक्रिय हैं,इसलिए किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। परिचय यही है कि,इन्होंने लगभग १३० नाटक और १००० से ज्यादा शो में काम किया है। देअविवि के नाट्य दल को बतौर निर्देशक ११ बार राष्ट्रीय प्रतिनिधित्व नाट्य निर्देशक के रूप में देने के साथ ही लगभग ३५ कार्यशालाएं,१० लघु फिल्म और ३ हिन्दी फीचर फिल्म भी इनके खाते में है। आपने एलएलएम सहित एमबीए भी किया है। आप इसी शहर में ही रहकर अभिनय अकादमी संचालित करते हैं,जहाँ प्रशिक्षण देते हैं। करीब दस साल से एक नाट्य समूह में मुम्बई,गोवा और इंदौर में अभिनय अकादमी में लगातार अभिनय प्रशिक्षण दे रहे श्री खत्री धारावाहिकों और फिल्म लेखन में सतत कार्यरत हैं। फिलहाल श्री खत्री मुम्बई के एक प्रोडक्शन हाउस में अभिनय प्रशिक्षक हैंl आप टीवी धारावाहिकों तथा फ़िल्म लेखन में सक्रिय हैंl १९ लघु फिल्मों में अभिनय कर चुके श्री खत्री का निवास इसी शहर में हैl आप वर्तमान में एक दैनिक समाचार-पत्र एवं पोर्टल में फ़िल्म सम्पादक के रूप में कार्यरत हैंl

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