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सड़क-२: महेश भट्ट को ताजगी की ज़रुरत

इदरीस खत्री
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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निर्देशक महेश भट्ट और अदाकार-संजय दत्त ,आलिया भट्ट,आदित्य रॉय कपूर,मकरंद देशपांडे,गुलशन ग्रोवर,जिशू सेनगुप्ता तथा अक्षय आनन्द हैं।
संगीत-संदीप चोटा,अंकित तिवारी,जीत गांगुली,पिल्लई,सुनील जीत का है। यह फ़िल्म डिज्नी और हॉटस्टार ओटीटी पर प्रदर्शित हुई है।

फ़िल्म से पहले चर्चा-

अभिनेता सुशांत राजपूत की आत्महत्या ने पूरे मुम्बई फ़िल्म जगत पर भाई-भतीजावाद पर उंगली तान रखी है। देश की जनता का गुस्सा फ़िल्म के ट्रेलर पर ही दिखा कि देश में
१ करोड़ से ज्यादा लोगो ने इसको नापसन्द करके नाराजगी भी दिखाई,साथ ही फ़िल्म के ट्रेलर का बहिष्कार आज तक जारी है। यह नापसन्द विश्व में पांचवे क्रम पर सबसे ज्यादा नापसन्द की श्रेणी में है।
खैर,फ़िल्म ‘सड़क-२’ में संजय- आलिया-आदित्य तीनों भाई-भतीजा वाद के ज्वलंत उदाहरणों में से है,पर उनके जुड़े किरदारों-निजी गुनाहों पर फैसला कानून करेगा।

कहानी-

फ़िल्म को महेश भट्ट की पुरानी ‘सड़क’ (१९९१)से ही आगे बढ़ाया गया है-योगेश देसाई (जिशू सेन गुप्ता)अपनी पहली पत्नी को खो चुके हैं,जिसकी करोड़ों की जायदाद
(देसाई ग्रुप ऑफ कम्पनीज) की इकलौती वारिस आरीया देसाई (आलिया भट्ट) जब तक २१ बरस की न हो जाए,तब तक उसे पिता सम्भालेंगे। आरिया एनजीओ और जागरूकता अभियान चलाती है,जिसका उद्देश्य धर्म में हो रहे आडम्बर का पर्दाफाश करना है। इसका मुख्य ध्येय बाबा ज्ञान प्रकाश(मकरंद देशपांडे) के झूठे धार्मिक आडम्बर से जनता को रूबरू कराना है।
आरिया पूजा टूर्स एंड ट्रेवल्स से कैलाश पर्वत जाने के लिए टैक्सी बुक करती है,इधर टूर्स का मालिक रवि वर्मा (संजय दत्त) अपनी मुहब्बत को खो चुका है,और ज़िंदगी खत्म करके अपनी मुहब्बत और पत्नी पूजा वर्मा (पूजा भट्ट) के पास चले जाना चाहता है, लेकिन इसी बीच वहां आलिया पहुँचती हैं और बुकिंग की रसीद दिखाती है। रवि काम बंद कर देने की बात करता है,लेकिन आरिया उसे दिवंगत मुहब्बत और पत्नी पूजा की बुक की हुई टैक्सी की रसीद दिखाती है। तब रवि उसे अपनी बेटी के प्रतीक रूप में स्वीकार कर छोड़ने को तैयार हो जाता है। इधर,बाबा ज्ञानप्रकाश के खिलाफ सोशल मीडिया पर आरिया के खोले मोर्चे से बाबा परेशान हो चुका है और वह उसे मारने के लिए अलग-अलग हथकंडे अपनाता है। फिर भी आरिया बच जाती है तो बाबा अपने खूबसूरत नौजवान गुर्गे विशाल(आदित्य रॉय) को भेजता है,जो पूजा को प्यार के झांसे में फंसाने में कामयाब होकर बाबा तक ले जाकर मौत की नींद सुला देना चाहता है। अब रवि,आरिया और विशाल को लेकर कैलाश पर्वत के लिए निकल जाता है,तो बाबा का विशाल,आरिया को मौत देने के करीब पहुँच जाता है,लेकिन रवि उसे बचा लेता है।
बीच में ही विशाल का हृदय परिवर्तन हो जाता है और वह सच कुबूल कर लेता है कि वह बाबा का गुर्गा है। अब क्या आरिया धर्म के आडम्बर का खेल,खेल रहे बाबा का पर्दाफाश कर पाएगी..क्या महज़ बाबा आरिया की जान लेना चाहता है..क्या रवि आरिया की हिफाज़त कर पाता है..? इन सवालों के जवाब के लिए ‘सड़क-२ से रुबरु हुआ जा सकता है।

निर्देशन कमजोर-

महेश भट्ट किसी पुराने मोबाइल की तरह हो चले है,उन्हें अब ताजगी (अपडेशन) की ज़रूरत है। फ़िल्म देखते-देखते आप फ़िल्म की आगे की स्थितियों को आंक लेते हो, मतलब महेश भट्ट अभी भी १९८० के दशक में ही जी रहे हैं, जबकि अब फोन,मोबाईल, टी.वी. सब स्मार्ट हो चुके हैं।

अदाकारी-

संजय दत्त ने अपने समकालीन अभिनेताओं में सबसे लंबी फिल्मी पारी खेल ली है। १९७१ में बाल कलाकार फिर १९८१ में ‘रॉकी’ फ़िल्म से विधिवत शुरूआत की। आज ३९ साल के फिल्मी सफर में संजय अभिनय के चरम पर है। आलिया ने जिस संजीदगी से किरदार को पकड़ कर सज़ा कर पेश किया,उससे उनकी अभिनय की बुलंदी नज़र आती है।
आदित्य को जितना काम मिला,ईमानदारी से किया। मकरंद को बिना दाढ़ी के पहली बार देखा,जो उनके अभिनय के आगे गौंण लगा। गुलशन को भी लंबे वक्त के बाद देखकर अच्छा लगा। सेनगुप्ता बंगाली सिनेमा का स्थापित नाम है,उनकी अभिनय क्षमताओं को देखते हुए पूर्णता का एहसास होता है।

संगीत-

कुल ६ संगीतकारों से काम लिया गया है। फ़िल्म में कुल ७ में से ‘शुक्रिया’ गाना २ बार लिया गया है। गाना लाजवाब बना है इश्क कमाल लाजवाब बना है जिसे बार-बार सुना जा सकता है। इस गाने को सुनील जीत ने स्वरबद्ध किया हैतो जावेद ने आवाज़ दी है। नया गाना ‘दिल की पुरानी सड़क पर…’ के.के. की आवाज़ में शानदार बन गया है। ‘तुमसे ही…’ गाना भी कर्णप्रिय बना है। कुल मिलकर महेश ने गीत-संगीत पर अपने अनुभव का लाभ उठाया है, और बाजी मार गए हैं।

बजट-

फ़िल्म का बजट ६०-७० करोड़ रखा गया है,लेकिन बहिष्कार के चलते पहले दिन की कमाई ६ से ९ करोड़ जाने की उम्मीद है। सप्ताहांत में २० करोड़ तक जाने की उम्मीद है। यदि फ़िल्म को सफल होना है तो ९० करोड़ की कमाई करनी होगी,जो मुश्किल लगती है।

अंत में-

महेश भट्ट,सुभाष घई ८०-९० के दशक में ही जी रहे हैं शायद। अब जबकि फिल्मों के विषय अतिआधुनिकता से भर चुके हैं तो भी महेश आज भी वहीं घिसे-पिटे विषयों पर अटके पड़े हैं। इस फिल्म को ढाई सितारे ही बेहतर है,जिसमें १ तो गीत-संगीत के लिए बढ़ाया गया है।

परिचय : इंदौर शहर के अभिनय जगत में १९९३ से सतत रंगकर्म में इदरीस खत्री सक्रिय हैं,इसलिए किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। परिचय यही है कि,इन्होंने लगभग १३० नाटक और १००० से ज्यादा शो में काम किया है। देअविवि के नाट्य दल को बतौर निर्देशक ११ बार राष्ट्रीय प्रतिनिधित्व नाट्य निर्देशक के रूप में देने के साथ ही लगभग ३५ कार्यशालाएं,१० लघु फिल्म और ३ हिन्दी फीचर फिल्म भी इनके खाते में है। आपने एलएलएम सहित एमबीए भी किया है। आप इसी शहर में ही रहकर अभिनय अकादमी संचालित करते हैं,जहाँ प्रशिक्षण देते हैं। करीब दस साल से एक नाट्य समूह में मुम्बई,गोवा और इंदौर में अभिनय अकादमी में लगातार अभिनय प्रशिक्षण दे रहे श्री खत्री धारावाहिकों और फिल्म लेखन में सतत कार्यरत हैं। फिलहाल श्री खत्री मुम्बई के एक प्रोडक्शन हाउस में अभिनय प्रशिक्षक हैंL आप टीवी धारावाहिकों तथा फ़िल्म लेखन में सक्रिय हैंL १९ लघु फिल्मों में अभिनय कर चुके श्री खत्री का निवास इसी शहर में हैL आप वर्तमान में एक दैनिक समाचार-पत्र एवं पोर्टल में फ़िल्म सम्पादक के रूप में कार्यरत हैंL

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