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साहब,मजदूर की चिन्ता कीजिए

शिवांकित तिवारी’शिवा’
जबलपुर (मध्यप्रदेश)

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श्रमिक हमारे समाज की एक ऐसी मजबूत रीढ़ है, जिस पर समस्त आर्थिक उन्नति टिकी होती है जो मानवीय श्रम का सबसे आदर्श उदाहरण है। हमारे सभी प्रकार के क्रियाकलापों की वह सबसे विशेष धुरी होता है जिसके द्वारा हमारे समस्त कार्य पूरे किए जाते हैं।
आज के आधुनिकीकरण एवं मशीनी युग में भी उसकी महत्वता कहीं भी कम नहीं हुई है। आज भी उद्योग,व्यापार,कृषि,भवन निर्माण, पुल एवं सड़कों के निर्माण आदि समस्त कार्यों में विशेष रूप से मजदूरों के परिश्रम की आवश्यकता होती है और उनके महत्वपूर्ण योगदान से ही सारे कार्य अंज़ाम तक पहुंच पाते हैं।
श्रमिक अपना श्रम बेचता है और उसके बदले में वह न्यूनतम मजदूरी प्राप्त करता है। उसका जीवन-यापन भी दैनिक मजदूरी के आधार पर होता है। जब तक वह श्रम कर पाने में सक्षम होता है,तब तक उसका गुजारा होता रहता है,पर जिस दिन वह अशक्त होकर काम छोड़ देता है,उस दिन से वह दूसरों पर निर्भर हो जाता है। भारत देश में कम से कम असंगिठत क्षेत्र के मजदूरों की तो यही स्थिति है साहब। असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की ना केवल मजदूरी कम होती है,बल्कि उन्हें किसी भी प्रकार की कोई सामाजिक सुरक्षा भी प्राप्त नहीं होती।
‘तालाबंदी’ में मजदूरों की वर्तमान हालत यह है कि,पहले खूब पसीना बहाते थे। मेहनत और ईमानदारी से कमाते थे। तब घर का चूल्हा जलता था और जाकर पेट की भूख मिटती थी,लेकिन आज बस मुसीबत से जूझ रहे हैं। कोई मीलों पैदल चल रहा है,कोई बीच में ही टूट कर बिखर रहा है। कोई भूख से लड़ रहा है,कोई तंत्र से हार रहा है,किसी की नौकरी छूट गई,किसी के सपने टूट गए,तो कोई सड़क पर भूख की खातिर रोटी मांग रहा है,कोई ठेले पर सब्जी बेच रहा है। जी हाँ,कोरोना के प्रहार ने मजदूरों को बिल्कुल बेजार कर दिया है। जिंदगी को चौराहे पर खड़ा कर दिया है।
महामारी की मार ने पारम्परिक हुनर के दम पर रोजी-रोटी कमा रहे श्रमिकों को खुद को बदलने पर मजबूर कर दिया है। काम-धंधा ठप होने से बाजार में न तो इनकी कोई जरूरत बची है,न ही इनके हुनर की कोई कीमत। अब ज़िंदगी इस की जंग में खुद को बचाए रखने के लिए इस महामारी में भी मजदूर भूख से जंग लड़ रहे हैं। ऐसे हार कर बैठ जाने के बजाय नई राह भी निकाल रहे हैं। कुछ अब कर्ज लेकर सब्जी बेच रहे हैं,तो कुछ दूध और कुछ अख़बार बेच कर भी अपना एवं परिवार का भरण-पोषण कर रहे हैं। करें भी तो क्या करें पेशे से ठहरे मजदूर और वर्तमान हालत से पूरी तरह मजबूर।
फिर भी बेचारे स्वाभिमानी और ईमानदारी से जिंदा रहने के लिए कुछ ना कुछ करके अपना और परिवार का गुजारा कर रहे हैं।
यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के आँकड़ों के अनुसार इस तालाबंदी का सबसे गहरा असर करीब ४० करोड़ मजदूरों पर,जिनका देश की अर्थव्यवस्था में सबसे महत्वपूर्ण योगदान है,प्रमुखतया पड़ेगा और वे फिर से त्रासद गरीबी के गर्त में धीरे- धीरे धंसते चले जाएंगे।
हालांकि,यह भी सच है कि भारत सरकार की सीमित क्षमताओं की वजह से सभी प्रवासी एवं दिहाड़ी मजदूरों पर ध्यान दे पाना इतना आसान भी नहीं है,मगर सरकार को इनके लिए व इनके जीवन को सुरक्षित रखने हेतु अब जल्द से जल्द विशेष कदम उठाने चाहिए। इन्हें इनकी जरूरत के मुताबिक समस्त चीजें भरपूर मात्रा में उपलब्ध कराने के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए,ताकि इस वैश्विक महामारी के दौर में इनका और परिवार का जीवन सुरक्षित रह सके।

परिचय–शिवांकित तिवारी का उपनाम ‘शिवा’ है। जन्म तारीख १ जनवरी १९९९ और जन्म स्थान-ग्राम-बिधुई खुर्द (जिला-सतना,म.प्र.)है। वर्तमान में जबलपुर (मध्यप्रदेश)में बसेरा है। मध्यप्रदेश के श्री तिवारी ने कक्षा १२वीं प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की है,और जबलपुर से आयुर्वेद चिकित्सक की पढ़ाई जारी है। विद्यार्थी के रुप में कार्यरत होकर सामाजिक गतिविधि के निमित्त कुछ मित्रों के साथ संस्था शुरू की है,जो गरीब बच्चों की पढ़ाई,प्रबंधन,असहायों को रोजगार के अवसर,गरीब बहनों के विवाह में सहयोग, बुजुर्गों को आश्रय स्थान एवं रखरखाव की जिम्मेदारी आदि कार्य में सक्रिय हैं। आपकी लेखन विधा मूलतः काव्य तथा लेख है,जबकि ग़ज़ल लेखन पर प्रयासरत हैं। भाषा ज्ञान हिन्दी का है,और यही इनका सर्वस्व है। प्रकाशन के अंतर्गत किताब का कार्य जारी है। शौकिया लेखक होकर हिन्दी से प्यार निभाने वाले शिवा की रचनाओं को कई क्षेत्रीय पत्र-पत्रिकाओं तथा ऑनलाइन पत्रिकाओं में भी स्थान मिला है। इनको प्राप्त सम्मान में-‘हिन्दी का भक्त’ सर्वोच्च सम्मान एवं ‘हिन्दुस्तान महान है’ प्रथम सम्मान प्रमुख है। यह ब्लॉग पर भी लिखते हैं। इनकी विशेष उपलब्धि-भारत भूमि में पैदा होकर माँ हिन्दी का आश्रय पाना ही है। शिवांकित तिवारी की लेखनी का उद्देश्य-बस हिन्दी को वैश्विक स्तर पर सर्वश्रेष्ठता की श्रेणी में पहला स्थान दिलाना एवं माँ हिन्दी को ही आराध्यता के साथ व्यक्त कराना है। इनके लिए प्रेरणा पुंज-माँ हिन्दी,माँ शारदे,और बड़े भाई पं. अभिलाष तिवारी है। इनकी विशेषज्ञता-प्रेरणास्पद वक्ता,युवा कवि,सूत्रधार और हास्य अभिनय में है। बात की जाए रुचि की तो,कविता,लेख,पत्र-पत्रिकाएँ पढ़ना, प्रेरणादायी व्याख्यान देना,कवि सम्मेलन में शामिल करना,और आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति पर ध्यान देना है।

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