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अहंकार

मनोरमा चन्द्रा
रायपुर(छत्तीसगढ़)
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सारे जग से प्रेम कर,
दंभ कपट कर त्याग।
अहंकार को नित तजो,
कर जीवन बेदाग॥

तेरा अपना कुछ नहीं,
दिया तुझे श्रीनाथ।
अहंभाव सब व्यर्थ है,
कर्म चले नित साथ॥

अहंकार से तन जले,
होता हृदय अशांत।
सत्य कथन है जान यह,
मान नहीं तू भ्रांत॥

धन वैभव सुख संपदा,
क्षणभंगुर है जान।
अहंकार की आड़ में,
मत खोना पहचान॥

अहंकार से यश घटे,
है जीवन अभिशाप।
कहे रमा ये सर्वदा,
देता पश्चाताप॥

परिचय-श्रीमति मनोरमा चन्द्रा का जन्म स्थान जिला रायगढ़(छग)स्थित खुड़बेना (सारंगढ़) तथा तारीख २५ मई १९८५ है। वर्तमान में रायपुर स्थित कैपिटल सिटी (फेस-३) सड्डू में निवासरत हैं,जबकि स्थाई पता-जैजैपुर (बाराद्वार-जिला जांजगीर चाम्पा,छग) है। छत्तीसगढ़ राज्य निवासी श्रीमती चंद्रा ने एम.ए.(हिंदी),एम.फिल.,सेट (हिंदी)सी.जी.(व्यापमं)की शिक्षा हासिल की है। वर्तमान में पी-एच.डी. की शोधार्थी(हिंदी व्यंग्य साहित्य) हैं। गृहिणी व साहित्य लेखन ही इनका कार्यक्षेत्र है। लेखनविधा-कहानी, कविता,हाइकु,लेख(हिंदी,छत्तीसगढ़ी)और निबन्ध है। विविध रचनाओं का प्रकाशन कई प्रतिष्ठित दैनिक पत्र-पत्रिकाओं में छत्तीसगढ़ सहित अन्य में हुआ है। आप ब्लॉग पर भी अपनी बात रखती हैं। इनकी विशेष उपलब्धि -विभिन्न साहित्यिक राष्ट्रीय संगोष्ठियों में भागीदारी,शोध-पत्र,राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में १३ शोध-पत्र प्रकाशन व साहित्यिक समूहों में सतत साहित्यिक लेखन है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा को लोगों तक पहुँचाना व साहित्य का विकास करना है।

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