कुल पृष्ठ दर्शन : 307

You are currently viewing सुरभित वतन

सुरभित वतन

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

********************************************************

हो मंगलमय अरुणिमा,खिले प्रगति जग फूल।
दया धर्म करुणा हृदय,परहित नित अनुकूल॥

रहें बिना दुर्भाव का,मानस बने उदार।
भारतमय अन्तस्थली फैले प्रीत बहार॥

राष्ट्र पूत बलिदान से,लिपट तिरंगा गात्र।
पल दो पल की जिंदगी,दुर्जय बने सुपात्र॥

लोकतंत्र अभिराम जग,संविधान हो श्रेष्ठ।
ईश्वर में विश्वास हो,ज्ञानवान हो ज्येष्ठ॥

शीतल भाष सुभाष से,पाए जग संतोष।
जीओ भुवि परमार्थ में,दूर भगाओ रोष॥

बाँटो खुशियाँ और को,परमुख ला मुस्कान।
कर सेवा तन मन विभव,बनो दीन भगवान॥

परहित सुख अनमोल है,हरो सदा जन शोक।
करो मनुज जीवन सफल,रहे कीर्ति तिहुँलोक॥

राष्ट्र-धर्म सेवन प्रजा,सच्चाई ईमान।
प्रकृति मातु सुष्मित करो,बनो मनुज इन्सान॥

चन्द्र प्रभा सम शान्ति जग,शीतल शुभ मन भाव।
सबका हित सब हो सुखी,मिले दंश नहि घाव॥

कविरा अर्पित भारती,आतुर खिले ‘निकुंज।’
गन्धमाद सुरभित वतन,हो भारत जय गूँज॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

Leave a Reply