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श्री राम स्तुति

अमल श्रीवास्तव 
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)

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राघव! रघुकुल की शान हो तुम,
रघुवेन्द्र तुम्हारी जय-जय हो।
मानव तन में भगवान हो तुम,
देवेन्द्र तुम्हारी जय-जय हो॥

जब-जब जगती में पाप-ताप,
हद से ज्यादा बढ़ जाता है।
जब-जब दुष्टता पनपती है,
सज्जन का यश घट जाता है॥
तब-तब लेकर अवतार प्रभु,
नाना रूपों में आते हो।
करके अधर्म का नाश पुनः,
सुख-शान्ति मार्ग दिखलाते हो॥
माया पति! महा-महान हो तुम,
मधुरेंद्र तुम्हारी जय-जय हो।
मानव तन में भगवान हो तुम,
देवेन्द्र तुम्हारी जय-जय हो॥

तुम पृथ्वी तल की हरियाली,
नभ-मण्डल का उजियार हो तुम।
अनुरक्ति,विरक्ति,सुसक्ति,तुम्हीं,
जग-जीवन का आधार हो तुम॥
मति,गति,रति,भक्ति,सुकीर्ति तुम्हीं,
जग में जय का आगार हो तुम।
हे अलख निरंजन,खल-गं-जन,
सुख के रस का भंडार हो तुम॥
प्रारम्भ,मध्य,अवसान हो तुम,
भूपेन्द्र तुम्हारी जय-जय हो।
मानव तन में भगवान हो तुम,
देवेन्द्र तुम्हारी जय-जय हो॥

तुम सगुण,तुम्हीं ही निर्गुण हो,
तुम ही लीला अवतारी हो।
गौतम पत्नी उद्धारक हो,
तुम दानव-दलन,खरारी हो॥
शबरी के बेरों को खाया,
केवट को सखा बनाया है।
कपि,रीछ,गिद्ध,कोलो,भीलों,
सबको निज गले लगाया है॥
मन और आत्मा,प्राण हो तुम,
राजेन्द्र तुम्हारी जय-जय हो।
मानव तन में भगवान हो तुम,
देवेन्द्र तुम्हारी जय-जय हो॥

सुर,संत,विप्र,गौ,धरणी हित,
अवतार लिया हे त्रिभुवन पति।
जय कौशल पति,जय कमला पति,
जय सीता पति,जय लक्ष्मी पति॥
जय रघुपति,श्री पति,जय जगपति,
तुलसी पति,भूपति,जय भव पति।
जय नर पति,सुर पति,जय जन पति,
जय भुवन पति,जय जीवन पति॥
विधि,हरि,हर,विश्व-विधान हो तुम,
वीरेन्द्र तुम्हारी जय-जय हो।
मानव तन में भगवान हो तुम,
देवेन्द्र तुम्हारी जय-जय हो॥

वरदम,वलदम,सुखदम,यशदम,
भव-भार हरम,आनन्द करम।
सीता रमनम,कल्याण प्रदम,
दशरथ तनयम,करुणा यतनम॥
अवधेंद्र,सुरेन्द्र,रमेंद्र जयति,
जय कुंभकर्ण,रावण हननम।
जय जगवंदन,जय रघुनंदन,
जय रमा-रमण,भव-भय,शमनम॥
करुणाकर कृपा निधान हो तुम,
करुनेन्द्र तुम्हारी जय-जय हो।
मानव तन में भगवान हो तुम,
देवेन्द्र तुम्हारी जय-जय हो॥

अभिराम सदा,सुख धाम सदा,
जग-पालक,पोषक,निरामयम।
राजीव नयन,मन-मोद करम,
संताप हरम,सर चाप धरम॥
सीता सुकुमारी-सौख्य,सुखम,
रमणीय मनोहर रूप लखम।
खर,दूषण,त्रिसरा,बालि,बधम,
दु:खभंजन,रंजन प्राण घनम॥
ज्ञानेश! ज्ञान-विज्ञान हो तुम,
ज्ञानेन्द्र तुम्हारी जय-जय हो।
मानव तन में भगवान हो तुम,
देवेन्द्र तुम्हारी जय-जय हो॥

मन-मानस,मंद,मराल,मरम,
धरनी-धर,धर्म,धुरीन,धरम।
अखिलेंद्र,जनेंद्र,नरेन्द्र,विभू,
रजनीचर वृंद पतंग खरम॥
महिमा-मणि,मंडित,मौलि,वरम,
शरणागत दीनदयाल जनम।
अघ-ओघ विनाशन,पाप शमन,
शुभदर्शन,सुन्दर श्याम घनम॥
योगेश्वर! जप-तप-ध्यान हो तुम,
योगेन्द्र तुम्हारी जय-जय हो।
मानव तन में भगवान हो तुम,
देवेन्द्र तुम्हारी जय-जय हो॥

परिचय-प्रख्यात कवि,वक्ता,गायत्री साधक,ज्योतिषी और समाजसेवी `एस्ट्रो अमल` का वास्तविक नाम डॉ. शिव शरण श्रीवास्तव हैL `अमल` इनका उप नाम है,जो साहित्यकार मित्रों ने दिया हैL जन्म म.प्र. के कटनी जिले के ग्राम करेला में हुआ हैL गणित विषय से बी.एस-सी.करने के बाद ३ विषयों (हिंदी,संस्कृत,राजनीति शास्त्र)में एम.ए. किया हैL आपने रामायण विशारद की भी उपाधि गीता प्रेस से प्राप्त की है,तथा दिल्ली से पत्रकारिता एवं आलेख संरचना का प्रशिक्षण भी लिया हैL भारतीय संगीत में भी आपकी रूचि है,तथा प्रयाग संगीत समिति से संगीत में डिप्लोमा प्राप्त किया हैL इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ बैंकर्स मुंबई द्वारा आयोजित परीक्षा `सीएआईआईबी` भी उत्तीर्ण की है। ज्योतिष में पी-एच.डी (स्वर्ण पदक)प्राप्त की हैL शतरंज के अच्छे खिलाड़ी `अमल` विभिन्न कवि सम्मलेनों,गोष्ठियों आदि में भाग लेते रहते हैंL मंच संचालन में महारथी अमल की लेखन विधा-गद्य एवं पद्य हैL देश की नामी पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएँ प्रकाशित होती रही हैंL रचनाओं का प्रसारण आकाशवाणी केन्द्रों से भी हो चुका हैL आप विभिन्न धार्मिक,सामाजिक,साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़े हैंL आप अखिल विश्व गायत्री परिवार के सक्रिय कार्यकर्ता हैं। बचपन से प्रतियोगिताओं में भाग लेकर पुरस्कृत होते रहे हैं,परन्तु महत्वपूर्ण उपलब्धि प्रथम काव्य संकलन ‘अंगारों की चुनौती’ का म.प्र. हिंदी साहित्य सम्मलेन द्वारा प्रकाशन एवं प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री सुन्दरलाल पटवा द्वारा उसका विमोचन एवं छत्तीसगढ़ के प्रथम राज्यपाल दिनेश नंदन सहाय द्वारा सम्मानित किया जाना है। देश की विभिन्न सामाजिक और साहित्यक संस्थाओं द्वारा प्रदत्त आपको सम्मानों की संख्या शतक से भी ज्यादा है। आप बैंक विभिन्न पदों पर काम कर चुके हैं। बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉ. अमल वर्तमान में बिलासपुर (छग) में रहकर ज्योतिष,साहित्य एवं अन्य माध्यमों से समाजसेवा कर रहे हैं। लेखन आपका शौक है।

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