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काकाजी

नरेंद्र श्रीवास्तव
गाडरवारा( मध्यप्रदेश)
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बदला-बदला सा घर लगता,हुए सयाने काकाजी,
नव युगीन नूतन पीढ़ी में,हुए पुराने काकाजी।

पूरा गाँव दीवाना था,काकाजी के गीतों का,
अपने उसी गाँव में अब तो,हुए बेगाने काकाजी।

चौपालों में बैठक करके,न्याय दिलाते थे सबको,
झगड़ा उनके साथ हुआ तो पहुँचे थाने काकाजी।

किसको क्या लेना-देना है,तय करते थे खुद ही वो,
मोहताज हो आज तरसते,दाने-दाने काकाजी।

दुखियों को समझाते थे वे,सहना औ’ जीना सीखो,
आज हाल उनका देखा तो लगे रुलाने काकाजी॥

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