डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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हनुमान जयंती विशेष….
हनुमान (संस्कृत: हनुमान्,आंजनेय और मारुति भी) परमेश्वर की भक्ति (हिंदू धर्म में भगवान की भक्ति) की सबसे लोकप्रिय अवधारणाओं और भारतीय महाकाव्य रामायण में सबसे महत्वपूर्ण व्यक्तियों में प्रधान हैं। वह कुछ विचारों के अनुसार भगवान शिवजी के ११वें रुद्रावतार,सबसे बलवान और बुद्धिमान माने जाते हैं। रामायण के अनुसार वे जानकी के अत्यधिक प्रिय हैं। इस धरा पर जिन ७ मनीषियों को अमरत्व का वरदान प्राप्त है,उनमें बजरंगबली भी हैं। हनुमान जी का अवतार भगवान राम की सहायता के लिए हुआ। हनुमान जी के पराक्रम की असंख्य गाथाएं प्रचलित हैं। इन्होंने जिस तरह से राम के साथ सुग्रीव की मैत्री कराई और फिर वानरों की मदद से राक्षसों का मर्दन किया,वह अत्यन्त प्रसिद्ध है।
ज्योतिषीयों की सटीक गणना के अनुसार हनुमान जी का जन्म ५८ हजार ११२ वर्ष पहले तथा लोकमान्यता के अनुसार त्रेतायुग के अंतिम चरण में चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्रा नक्षत्र व मेष लग्न के योग में सुबह भारत देश में आज के झारखंड राज्य के गुमला जिले के आंजन नाम के छोटे से पहाड़ी गाँव के एक गुफा में हुआ था।
इन्हें बजरंगबली के रूप में जाना जाता है, क्योंकि इनका शरीर एक वज्र की तरह था। वे पवन-पुत्र के रूप में जाने जाते हैं। वायु अथवा पवन (हवा के देवता) ने हनुमान को पालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
मारुत (संस्कृत: मरुत्) का अर्थ हवा है। नंदन का अर्थ बेटा है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार हनुमान ‘मारुति’ अर्थात ‘मारुत-नंदन’ (हवा का बेटा) है।
हिंदू महाकाव्य रामायण के अनुसार, हनुमान जी को वानर के मुख वाले अत्यंत बलिष्ठ पुरुष के रूप में दिखाया जाता है। इनका शरीर अत्यंत मांसल एवं बलशाली है। हनुमान जी को मात्र एक लंगोट पहने अनावृत शरीर के साथ दिखाया जाता है। वह मस्तक पर स्वर्ण मुकुट एवं शरीर पर स्वर्ण आभूषण पहने दिखाए जाते हैं। उनकी वानर के समान लंबी पूँछ है। उनका मुख्य अस्त्र गदा माना जाता है।
भारत में सबसे प्रतिष्ठित लोकदेवता हनुमान जी संस्कृत,हिन्दी और अन्य भाषाओं के अलावा अपभ्रंश की रचनाओं में भी लोकप्रिय हैं। अपभ्रंश भाषा में रचित रामायण ‘पउमचरिउ’ एक जैन ग्रन्थ है। इसकी रचना अपभ्रंश के जैन कवि स्वयंभू ने की है। स्वयम्भू के अनुसार,चैत्रमास के कृष्णपक्ष की श्रवणनक्षत्र से युक्त अष्टमी को अर्ध रात्रि में पवानान्जय की पत्नी अंजना ने हनुमानजी को जन्म दिया। नवजात शिशु के हाथ-पैरों में हल, कमल,वज्र,मछली आदि शुभ चिन्ह अंकित थे। फलित ज्योतिष के अनुसार ये चिन्ह किसी व्यक्ति के भविष्य में महिमाशाली होने के संकेत माने जाते हैं।
‘पउमचरिउ’ के रचयिता ने हनुमान जी का स्मरण ‘भटश्रेष्ठ’ के रूप में किया है। हनुमान जी की पूंछ की बड़ी महिमा थी,इसके प्रचंड पराक्रम से शत्रु काँप जाते थे। इस ग्रन्थ के अनुसार हनुमान जी की ध्वजा में उनका अपना ही रूप चित्रित था। श्री राम जानते थे कि हनुमान जिसके पक्ष में रहेंगे,उसी की जीत होगी।
‘हनुरूह’ द्वीप में निवास करने वाले हनुमान सबके प्रिय हैं,लेकिन जब उन्हें क्रोध आता है,तो वह गज की तरह निरंकुश,सिंह की तरह रोषपूर्ण और शनि की तरह भयावह बन जाते हैं।
‘पउमचारिउ’ के सुन्दरकाण्ड में वर्णन है कि श्रीराम के हृदय में हनुमान जी के प्रति बहुत सम्मान का भाव था,इसी वजह से वह हनुमान जी को अपने आधे आसन पर बैठाते थे।
जैन मान्यता के अनुसार हर कल्प में चौबीस तीर्थंकर,बाढ़ चक्रवर्ती,नौ प्रतिनारायण,नौ नारायण और नौ बलभद्र-इस प्रकार तिरसठ शलाका पुरुष होते हैं। इनके अतिरिक्त तीर्थंन्करों के चौबीस-चौबीस माता-पिता,नौ नारद,ग्यारह रूद्र,चौबीस कामदेव भी होते हैं। ये सभी उत्तम पदधारी उसी जन्म में या थोड़े से जन्म लेकर परमात्मा बन जाते हैं। हनुमानजी अठारहवें कामदेव थे।वह बन्दर नहीं,बल्कि वानर-वंशी थे। अर्थात,जैन मत के अनुसार इनके वंश के राज्य-ध्वज में बन्दर का चिन्ह था,इसलिए इनका कुल वानर-वंश के नाम से विख्यात है।
जैन मान्यता के अनुसार हनुमान जी बाल-ब्रह्मचारी न होकर गृहस्थ थे। वह बाद में राज-पाट और स्त्री आदि का त्याग कर साधु हो गए और तपस्या करके श्रीराम की भाँति उसी जन्म में त्रैलोक्य-पूजित अनंतकालीन परमात्मा बन गए।
परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।