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माया का चक्कर

संजय जैन 
मुम्बई(महाराष्ट्र)

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दिल से दिल मिलाकर देखो,
जिंदगी की हकीकत को पहचानो
अपना-अपना करना भूल जाओगे,
और आखिर में एक ही पेड़ की
छाया के नीचे आओगे
और अपने-आपको तब तुम,
अच्छे से पहचान पाओगे।

छोड़कर नश्वर शरीर,
एक दिन सबको जाना है
जो भी कमाया-धमाया,
सब यहीं छोड़ जाना है
फिर भी भागता रहता है,
माया के चक्कर में।

न खाता है न पीता है,
और न चैन से जीता है
खुद तो परेशान रहता है,
और घर वालों को भी…
इसलिए ‘संजय’ कहता है,
कि,कर लो कुछ अच्छे कर्म,
वो ही साथ अंत में जाना है।

घुटन की जिंदगी जीने से,
तो अच्छा है आज खा के जिओ
और साथ हिल-मिलकर,
अपने परिवार में रहो
जो भाग्य में लिखा है,
वो तुझे मेहनत से मिल जाएगा
पर ज्यादा के लालच में,
हँसी-खुशी वाला समय निकल जाएगा।
और तेरी माया तेरे काम न आ के,
ओरों को मिल जाएगी…॥

परिचय– संजय जैन बीना (जिला सागर, मध्यप्रदेश) के रहने वाले हैं। वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। आपकी जन्म तारीख १९ नवम्बर १९६५ और जन्मस्थल भी बीना ही है। करीब २५ साल से बम्बई में निजी संस्थान में व्यवसायिक प्रबंधक के पद पर कार्यरत हैं। आपकी शिक्षा वाणिज्य में स्नातकोत्तर के साथ ही निर्यात प्रबंधन की भी शैक्षणिक योग्यता है। संजय जैन को बचपन से ही लिखना-पढ़ने का बहुत शौक था,इसलिए लेखन में सक्रिय हैं। आपकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। अपनी लेखनी का कमाल कई मंचों पर भी दिखाने के करण कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इनको सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के एक प्रसिद्ध अखबार में ब्लॉग भी लिखते हैं। लिखने के शौक के कारण आप सामाजिक गतिविधियों और संस्थाओं में भी हमेशा सक्रिय हैं। लिखने का उद्देश्य मन का शौक और हिंदी को प्रचारित करना है।

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