दर्पण की व्यथा
अवधेश कुमार ‘अवध’ मेघालय ******************************************************************** जो जैसा मेरे दर आता, ठीक हूबहू खुद को पाता। फिर मुझ पर आरोप लगाता, पक्षपात कह गाल बजाता॥ मैं हँसता वह जल-भुन जाता, ज्यों दाई से गर्भ छुपाता। अदल-बदल मुखड़े लगवाता, रंग-रसायन नित पुतवाता॥ शिशु-सा नंगा रूप दिखाता, इठलाता एवं शर्माता। झूठ बोलने को उकसाता, सच्चाई से नज़र चुराता॥ … Read more