पत्ते की व्यथा
दुर्गेश राव ‘विहंगम’ इंदौर(मध्यप्रदेश) ************************************************** तरु से गिरा पत्ता तल में आ गिरा तरु के, समीर के संग, उड़ता चला जाए नहीं चलती कोई सत्ता, राह में धूल से लपेटे हुए राहगीरों के पैरों तले दबता, कभी काँटों में अटकना तो कभी गड्ढों में सड़ना, दिनकर की रोशनी से जल उठता सुख कर चूर-चूर हो … Read more