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पत्ते की व्यथा

दुर्गेश राव ‘विहंगम’ 
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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तरु से गिरा पत्ता
तल में आ गिरा तरु के,
समीर के संग,
उड़ता चला जाए
नहीं चलती कोई सत्ता,
राह में धूल से
लपेटे हुए
राहगीरों के पैरों तले दबता,
कभी काँटों में अटकना
तो कभी गड्ढों में सड़ना,
दिनकर की रोशनी से जल उठता
सुख कर चूर-चूर
हो उठता,
कभी खिल उठता था
तरु के संग में
अब मर चुका है धूल के रंग में,
सवेरे नव्य कलियां खिलती
देख उसे काया जलती,
तरु पर साथियों के संग था कभी
अकेलापन रहता अभी
कभी निशा पर्वतों पर कटती,
तो कभी काँटों पर
तरु के सपने देखता
सोचता है जिंदगी की सच्चाई है एकता।

परिचय-दुर्गेश राव का साहित्यिक उपनाम ‘विहंगम’ है।१९९३ में ५ जुलाई को मनासा (जिला नीमच, मध्यप्रदेश) के भाटखेड़ी बुजुर्ग में जन्मे दुर्गेश राव का वर्तमान निवास इंदौर(मध्यप्रदेश)में,जबकि स्थाई भाटखेड़ी बुजुर्ग तहसील मनासा है। इनकी शिक्षा-बी.एस-सी. और डी.एलएड है। कार्यक्षेत्र में शिक्षक होकर सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत समाज हित में लेखन करना है। लेखन विधा-काव्य है। विहंगम को हिंदी, अंग्रेजी एवं संस्कृत भाषा का ज्ञान है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन से समाज सुधार है। प्रेरणा-हिंदी साहित्य के दीपक को जलाए रखना है। रुचि-कविता लिखना और काव्य पाठ करना है। 

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