महँगाई की मार
डॉ.एन.के. सेठीबांदीकुई (राजस्थान) ********************************************* महँगाई की मार से,हर जन है बेहाल।निर्धन भूखा सो रहा,मिले न रोटी दाल॥ महँगाई डसती सदा,निर्धन को दिन-रात।पैसा जिसके पास है,होती उसकी बात॥ महँगाई में हो गया,गीला आटा-दाल।पूँछे कौन गरीब को,जिसका है बेहाल॥ सुरसा के मुख-सी बढ़े,महँगाई की मार।देखो तो चारों तरफ,होता हाहा-कार॥ महँगी हर इक चीज है,बढ़े हुए है भाव।डर … Read more