खून खौलता है हर सैनिक का

विजयसिंह चौहान इन्दौर(मध्यप्रदेश) ****************************************************** कारगिल विजय दिवस स्पर्धा विशेष………. कारगिल-सी जंग, हरदम क्यूँ होती हैl बिलखती हुई माँ, कहाँ चुप होती हैl खून खौलता है हर सैनिक का, जब भारत माँ, मायूस होती हैl कब तक बहेगा लहू, सीमा पर, जबकि रगों की लालिमा एक-सी होती हैl बस करो, राजनीति की रोटियां सेंकना, विधवा होने … Read more

दुश्मन के दाँत खट्टे किए

डाॅ.आशा सिंह सिकरवार अहमदाबाद (गुजरात )  **************************************************************** कारगिल विजय दिवस स्पर्धा विशेष………. मेरे देश के वीर सपूतों ने लिख दी एक अमर कहानी, दुश्मन के दाँत खट्टे किए नियंत्रण रेखा के बाहर खड़ा किया ये शौर्य की गाथा जन-जन ने पहचानीl ये उन्नीससौ निन्यानवे में लिखी भारत भूमि पर, साहस और जांबाजी की मिसाल बनीl … Read more

झील,पेड़,और नदियाँ कहाँ हैं मेरी ?

हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’ बिलासपुर (छत्तीसगढ़) ********************************************************************** तू बुलाती है मुझे बार-बार क्यों री धरा, तेरे ही नुमाईन्दों ने ध्यान मेरा कहाँ धरा। मैंने तेरे पास छोड़ अपनी बेटियों को रखा, तेरे ही नुमाईन्दों ने उनका क्यूँ विनाश किया। अब मैं आऊं भी वहाँ तो बता तू किसके लिये ? मेरे आने का जरिया तो … Read more

तुम्हें लापता घोषित किया जाएगा

डाॅ.आशा सिंह सिकरवार अहमदाबाद (गुजरात )  **************************************************************** न जाने कब बारिश हो धरती जगह-जगह से दरक रही है, बूँद-बूँद पानी को तरसी जुबान कुलबुलाती आँतें, बारिश हो भी जाए तो क्या बह जाएंगे, थाली और लोटे भीगी,ठिठुरती देह पर कौन छाएगा छप्पर ? भूख के आगे, कौन रख देगा रोटी ? वे पहुंचेंगे जरूर तब … Read more

दीजिए मन को भोजन

सत्यम सिंह बघेल लखनऊ (उत्तरप्रदेश) *********************************************************** सोचिये,यदि हम अपने शरीर को १५-२० दिन भोजन देना बंद कर दें,तब क्या होगा ? तब कमजोरी आ जाएगी,शरीर काम करना बंद कर देगा,हमारी बात मानना बन्द कर देगा,हमारे संकेतों को पूरा नहीं करेगा। काम कब करता है ? शरीर ऊर्जावान कब होता है ? शरीर का भोजन क्या … Read more

चोट

डाॅ.आशा सिंह सिकरवार अहमदाबाद (गुजरात )  **************************************************************** गौर से देखने पर, दिखाई देने लगती हैं अंधेरे अकेले में, उमचकर बाहर आ गिरती हैं चोटें। सिहर उठती हैं ऐसे, जैसे छूने भर से…। और कुछ चोटें, समय की छाती पर बहती है नदी बन कर, कुछ पर्दे के पीछे छिपी रहती हैं, अपनी नियति पहचानते हुए … Read more

सच या झूठ..

हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’ बिलासपुर (छत्तीसगढ़) ********************************************************************** हरी आठवीं कक्षा का छात्र था। अचानक वो कक्षा-कक्ष के दरवाजे के सामने आकर गिरा। असल में वो दौड़ते हुए अचानक रुकने की कोशिश में सम्भल नहीं सका,और फिसलकर गिर गया। उठकर अध्यापक से सहमति लेकर कक्षा में गया। अध्यापक जी की डपट पड़ी-“आज फिर देर।” “सरजी साईकिल … Read more

बारिश

डॉ.सरला सिंह दिल्ली *********************************************** बारिश की बूंदों के मोती, नवजीवन बन बरस रहे। जन-जन की पीड़ा हरते, तप्त धरा हैं शीतल करते। झुक-झुक करते धन्यवाद, वृक्षों के समुदाय समस्त। नदियों की लहरें लहराकर, गाती स्वागत गीत हैं मानों। चमकीली मोती-सी लगती, बारिश की हैं सुन्दर-सी बूंदें। कोयल गीत सुनाती मधुरिम, संग में मयूर के मोहक … Read more

पृथ्वी पर बचे रहें उनके चिन्ह

डाॅ.आशा सिंह सिकरवार अहमदाबाद (गुजरात )  **************************************************************** जब देखती हूँ मैं उगते सूरज को, उनकी बेचैनी उनकी तड़प, उनकी जीने की चाहत और दीनता उनकी अंधेरे से लड़ाई, सबका सब मेरी नसों में उतरता जाता है…। करोड़ों-करोड़ों लोग जो नहीं देख पा रहे हैं सूरज, उनके लिए सूरज को अपनी हथेली पर उगाना चाहती हूँ…। … Read more

कठोर

डॉ.सरला सिंह दिल्ली *********************************************** मानव है कितना कठोर निर्दयी, दया नहीं आती है मौत पर भी। नहीं समझता पिता के जज्बात, कांधे पे बेटे के शव का बोझ भी। गाड़ियों की कमी नहीं आज तो, एम्बुलेंस से या भेजते कैसे भी। थमा दी डिस्चार्ज स्लिप उसको, कह दिया ले जाओ इसे कैसे भी। नहीं दया … Read more