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रिश्तों में दूरी…परम्परा और मज़बूरी

एन.एल.एम. त्रिपाठी ‘पीताम्बर’ 
गोरखपुर(उत्तर प्रदेश)

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सामाजिक सम्बन्ध और दूरी स्पर्धा विशेष………..

रिश्तों में पैदा रिश्तों को जीता-मरता पैदा करता रिश्ता इंसा।
कभी औलाद,कभी बाप कभी भाई जिंदगी,रिश्तों का अंतहीन सिलसिला।

आशा,अरमानों के बेटी-बेटा,पढ़-लिख काबिल बन कहीं दूर चला जाता बेटा,
सीने पर पत्थर रख बड़ी शान से कहता-मेरा है काबिल बेटा।

खून-पसीने की मेहनत और कमाई बेटे की खुशियों पर दांव लगाई,
बेटे को भी बाप से प्यार,बाप का सम्मान ही उसकी जिंदगी-जान।

फिर भी वक्त नहीं है मजबूरी है,वाह कैसी यह दूरी है,
खुश रहना रिश्ते की इस दूरी पर पिता-पुत्र की मजबूरी है।

लाड़ली को नाजों से पालता उसकी मुस्कानों की खातिर कितनी ही कुर्बानी देता,
पैदाइश पर उसके दुनिया के उपहार मिले,लक्ष्मी आई है घर-आँगन में खुशियों का संसार लिए।

हर बेवफा शातिर नज़रों कातिल के तूफानों से फानूस बना लड़ता लक्ष्मी-सी लड़की का बाप,
आँसू से भर आई पथराई आँखें,दिल की गहराई गम से बेटी सी घर की लक्ष्मी को सौंप दिया दूजे के हाथ साथ।

बेटी की खुशियाँ जान से प्यारी हम तो जी लेंगे किस हालात,
बेटी तो पराया धन थी जिसकी किस्मत थी उसके साथ।

अलबेला यह रिश्ता है जिंदगी का हिस्सा है,
इस रिश्ते में दूरी कुदरत का कानून,दुनिया का दस्तूर जिंदगी का सच्चा हिस्सा है।

बचपन मस्ताना होता है,हर गम से बेगाना होता है,
भाई-बहन साथ-साथ खेलते,पढ़ते-लिखते बड़े होते।

ना जाने कितने दोस्त बनते-बिगड़ते,फिर एकाएक बिछड़ते,
कुछ दिन रहते याद-बाद में ख्वाब,कभी हकीकत अक्सर ख्यालों में ही होती मुलाकात।

सामाजिक रिश्तों में बिखराव,मिलना और बिछड़ना बनाना-बिगड़ना,
और विलग होना परम्परा के समाज का जीवन साथ।

बहारें भी हो गयी बेवफा,दिल चाहता है,
मिल कर संग धड़कना,मगर है मजबूरी।

जिंदगी की चाहत बन गयी है दूरी पैदाइश परवरिश के रिश्तों में होती थी प्यार की बरसात,
प्यार तो अब भी है,रेगिस्तान-सा बन गया है परिवारों का समाज।

घर में ही बस गया देश कहते हैं लोग घर एक मंदिर,
घर अब मंदिर नहीं,दर-दीवारों को देखते-देखते ऊबन सी हो गयी घर-घरौंदा कारागार।

क्या यही है सामजिक दूरी जिंदगी कि चाह की राह,
यहाँ खटकती है सिर्फ एक बात,ये तो डर दरमियान की है दूरी।

दिल से दिल की चाहत के चाशनी की मिठास मोहब्बत की है दूरी,
जिंदगी है तो जज्बे-जज्बात है वर्तमान इतिहास है तभी खासियत का ख़ास है॥

परिचय–एन.एल.एम. त्रिपाठी का पूरा नाम नंदलाल मणी त्रिपाठी एवं साहित्यिक उपनाम पीताम्बर है। इनकी जन्मतिथि १० जनवरी १९६२ एवं जन्म स्थान-गोरखपुर है। आपका वर्तमान और स्थाई निवास गोरखपुर(उत्तर प्रदेश) में ही है। हिंदी,संस्कृत,अंग्रेजी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री त्रिपाठी की पूर्ण शिक्षा-परास्नातक हैl कार्यक्षेत्र-प्राचार्य(सरकारी बीमा प्रशिक्षण संस्थान) है। सामाजिक गतिविधि के निमित्त युवा संवर्धन,बेटी बचाओ आंदोलन,महिला सशक्तिकरण विकलांग और अक्षम लोगों के लिए प्रभावी परिणाम परक सहयोग करते हैं। इनकी लेखन विधा-कविता,गीत,ग़ज़ल,नाटक,उपन्यास और कहानी है। प्रकाशन में आपके खाते में-अधूरा इंसान (उपन्यास),उड़ान का पक्षी,रिश्ते जीवन के(काव्य संग्रह)है तो विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में भी रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। ब्लॉग पर भी लिखते हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-भारतीय धर्म दर्शन अध्ययन है। लेखनी का उद्देश्य-समाज में व्याप्त कुरीतियों को समाप्त करना है। लेखन में प्रेरणा पुंज-पूज्य माता-पिता,दादा और पूज्य डॉ. हरिवंशराय बच्चन हैं। विशेषज्ञता-सभी विषयों में स्नातकोत्तर तक शिक्षा दे सकने की क्षमता है।
अनपढ़ औरत पढ़ ना सकी फिर भी,
दुनिया में जो कर सकती सब-कुछ।
जीवन के सत्य-सार्थकता की खातिर जीवन भर करती बहुत कुछ,
पर्यावरण स्वच्छ हो,प्रदूषण मुक्त हो जीवन अनमोल हो।
संकल्प यही लिए जीवन का,
हड्डियों की ताकत से लम्हा-लम्हा चल रही हूँ।
मेरी बूढ़ी हड्डियां चिल्ला-चीख कर्,
जहाँ में गूँज-अनुगूँज पैदा करने की कोशिश है कर रही,
बेटी पढ़ाओ,बेटी बचाओ,स्वच्छ राष्ट्र, समाज,
सुखी मजबूत राष्ट्र,समाज॥

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