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काँटे बना दो मुझे…

डॉ.सोना सिंह 
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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नहीं होना चाहती मैं हरसिंगार,
रात को खिल जाओ और सुबह खिर जाओ।
नहीं होना चाहती हूँ मैं चम्पा,
खुशबू से लिपटे रहे काले भुजंग मेरे आस-पास।
नहीं होना चाहती जूही की कली,
महक से करुँ दीवाना पर नजाकत जीने ना देl
नहीं होना चाहती गुलाब जासवंत,
हर कोई ललचाए और तोड़कर अपने पास रखना चाहेl
नहीं होना चाहती गेंदा और सदाबहार,
एक न रहूं,बिखर जाऊं जहां-तहां॥

मैं होना चाहती हूँ नाली-कीचड़ के पास लगी जामुनी सुंदरता,
सभी निकल जाएं पास से,जिसे कहकर बेशर्म।
मैं होना चाहती हूँ बबूल के काँटे,
मैं होना चाहती हूँ गुलाब के काँटे।
मुझे बदल दो काँटों में कि,कोई मेरे पास ना आना चाहे,
जो भी मुझे हाथ लगाए,वह लहूलुहान… छलनी हो जाए॥

परिचय-डॉ.सोना सिंह का बसेरा मध्यप्रदेश के इंदौर में हैL संप्रति से आप देवी अहिल्या विश्वविद्यालय,इन्दौर के पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला में व्याख्याता के रूप में कार्यरत हैंL यहां की विभागाध्यक्ष डॉ.सिंह की रचनाओं का इंदौर से दिल्ली तक की पत्रिकाओं एवं दैनिक पत्रों में समय-समय पर आलेख,कविता तथा शोध पत्रों के रूप में प्रकाशन हो चुका है। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के भारतेन्दु हरिशचंद्र राष्ट्रीय पुरस्कार से आप सम्मानित (पुस्तक-विकास संचार एवं अवधारणाएँ) हैं। आपने यूनीसेफ के लिए पुस्तक `जिंदगी जिंदाबाद` का सम्पादन भी किया है। व्यवहारिक और प्रायोगिक पत्रकारिता की पक्षधर,शोध निदेशक एवं व्यवहार कुशल डॉ.सिंह के ४० से अधिक शोध पत्रों का प्रकाशन,२०० समीक्षा आलेख तथा ५ पुस्तकों का लेखन-प्रकाशन हुआ है। जीवन की अनुभूतियों सहित प्रेम,सौंदर्य को देखना,उन सभी को पाठकों तक पहुंचाना और अपने स्तर पर साहित्य और भाषा की सेवा करना ही आपकी लेखनी का उद्देश्य है।

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