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एक पत्र आने वाली पीढ़ी के नाम

वन्दना शर्मा’वृन्दा’
अजमेर (राजस्थान)

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प्यारे बच्चों,
चिरंजीवी हो।

बच्चों कितने वर्षों बाद जब तुम मुझे पढ़ रहे होगे तो वह समय कैसा होगा ? तुम्हारा रहन-सहन कैसा है ?,यह तो मैं नहीं जानती पर इतना जरूर महसूस कर सकती हूँ कि काफी हद तक मशीनी भावनाशून्य तकनीक को भगवान मानने वाला और मौज शौक में रहने वाला ही होगा,जिसमें संवेदना, पशु-पक्षी व प्रकृति के लिए कोई स्थान नहीं होगा।
बच्चों हमारी भारतीय सभ्यता,संस्कृति,वेद, उपनिषद,पुराण धर्म एवं प्रकृति प्रेम की महिमा से अवगत करवाना मेरा नैतिक व राष्ट्रीय कर्तव्य है। आज उसी कर्तव्य की पूर्ति करने के लिए तुम्हें एक बेहद विचित्र घटना सुनाती हूँ,जो थी तो बहुत कष्टपूर्ण हमारे बुरे कर्मों का फल,मगर अपने साथ लेकर आई थी अनेक दुर्लभ संदेश…
वह विचित्र घटना कुछ और नहीं ‘कोरोना’ विषाणु था,जिसने महामारी के रूप में संपूर्ण विश्व को अपने कहर से सताया हुआ था।
बात है वर्ष २०२० की,भारत में तो यह मार्च महीने के अंत में पहुँची किंतु उससे पहले जनवरी से ही इसने चीन में जन्म लेकर अपना कहर ढाना शुरू किया। चीन के वुहान नामक स्थान पर एक प्रयोगशाला से इस विषाणु की उत्पत्ति हुई। वहाँ एकमात्र स्तनधारी नभचर चमगादड़ पर शोध की जा रही थी। कहा जाता है कि चीन में लोग चमगादड़ का सूप पी रहे थे,अन्य जीव-जंतुओं का निर्ममता से भक्षण कर रहे थे,जिसके अभिशाप के रूप में इस महामारी ने जन्म लिया। वहाँ भीषण नरसंहार करते हुए इसने पड़ोसी देशों की सीमाओं को लाँघना शुरू किया। अमेरिका,रूस,ब्रिटेन से होते हुए पाकिस्तान और भारत भी पहुँच गई।
उस समय हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी जी ने विवेक व दूरदर्शिता पूर्ण निर्णय लिया और सर्वप्रथम विद्यालय में बंद करते हुए २२ मार्च को ‘जनता कर्फ्यू’ लगाया। अब आपके मन में यह प्रश्न होगा कि बीमारी से बचने के लिए कर्फ्यू क्यों ?,दवा क्यों नहीं ????
हाँ,बच्चों ऐसा इसलिए क्योंकि यह कोई ऐसी बीमारी नहीं थी जिसका दवा से इलाज हो सके। यह ऐसा विषाणु था जो अपने संपर्क में आने वाले हर व्यक्ति,हर वस्तु,यहाँ तक कि कागज-कपड़े आदि को छींक,कफ आदि से संक्रमित कर रहा था। यह बीमारी बाहर से आ रही थी। जो दूसरे देशों में बस गए थे,वह वहाँ फैली बीमारी के डर से भारत की तरफ भागने लगे,और उसका परिणाम यह हुआ कि,उनके इस गलत कदम ने अपने १३० करोड़ देशवासियों की जान को खतरे में डाल दिया।
अब हम सब घरों में कैद एक अनजान से भय से भयभीत होकर जीने लगे। रोजाना खबरें देख देखकर हमारा दिल दहलता रहता। इस महामारी से बचने के लिए हमें अपने घरों से बाहर नहीं निकलना था। क्या हालात हो गए थे दिन-रात सरपट दौड़ने वाला,विज्ञान के,तकनीक के अहंकार में चूर पूरा विश्व सुनसान पड़ा ठहरा हुआ डरा-सहमा अपने घरों की चार दीवारों में कैद होकर रह गया था।
आज विकसित व विकासशील देशों की समझ में यह बात आ गई थी कि विज्ञान तकनीक से बढ़कर भी कुछ है…और वह है सर्वशक्तिमान ईश्वर जिसको सबने दंभपूर्ण शिक्षा के अहंकार में भुला दिया था। आज उसने अपना ऐसा कौड़ा चलाया कि एक ही झटके में सबको ईश्वर की अनंत अगोचर सत्ता का एहसास हो गया।
हमारे देश में स्थिति काबू में थी,उसके पीछे कारण था सरकार की दूरदर्शिता तथा सबसे बड़ी बात थी हमारा ईश्वर में,उसकी बनाई प्रकृति में विश्वास व संवेदनशीलता। धर्म और प्रकृति के साथ सहजीवन वैदिक संस्कृति व भारतीय संस्कार, सबको हाथ मिलाने की बजाय नमस्कार करना, मांसाहार न करना,घर का ताजा बना भोजन करना, सीमित आवश्यकता,साथ ही वैज्ञानिक दृष्टि से प्रमाणिक परम्पराएँ रीति-रिवाज,धार्मिक अनुष्ठान, धर्म,यज्ञ-तपस्या,योग साधना ध्यान आदि भी है।
इस महामारी से सब भयभीत तो थे,और होना भी चाहिए किंतु अच्छी बात यह थी हमारे देश के चिकित्सकों और वैज्ञानिकों ने इसका हल निकाल लिया था। यह एक जंग थी जिसमें शत्रु बड़ा ही छलिया आकारहीन, अंतहीन विनाशहीन ‘लार बीज’ था जिसके विरुद्ध खड़े थे मेरे भारत देश के सिपाही जिनमें चिकित्सक,नर्स,सफाईकर्मी,पुलिस,
स्वयंसेवक,सामाजिक कार्यकर्ता जो अपने परिजनों से मिलने के लिए घर भी नहीं जा सकते थे।
बच्चों,आज भारत वासियों की आँखें खुल गई थी। पाश्चात्य अंधानुकरण का ऐसा बुखार इन पर चढ़ा था कि अपनी सभ्यता और संस्कृति को भूल गए थे। केवल भारत ही नहीं,अपितु अखिल विश्व भारत के संस्कारों को अपना रहा था। यहाँ से विदेशों में दवाइयाँ भिजवाई जा रही थी। विवेकानंद जी का यह भारत आज फिर से विश्व पटल पर गुरु श्रेष्ठ स्थान बना चुका था।
अतः,बच्चों इस घटना को पढ़कर आपके मन में भी शायद अपनी संस्कृति व सभ्यता के प्रति गर्व जागृत हुआ होगा और आप भी इसे अपनाएँगे इसी आशा के साथ…।

तुम्हारी दीदी,
वंदना शर्मा ‘वृंदा’
अजमेर

परिचय-वंदना शर्मा की जन्म तारीख १ मई १९८६ और जन्म स्थान-गंडाला(बहरोड़,अलवर)हैl वर्तमान में आप पाली में रहती हैंl स्थाई पता-अजमेर का हैl राजस्थान के अजमेर से सम्बन्ध रखने वाली वंदना शर्मा की शिक्षा-हिंदी में स्नातकोत्तर और बी.एड. हैl आपका कार्यक्षेत्र-नौकरी के लिए प्रयासरत होना हैl लेखन विधा-मुक्त छंद कविता हैl इनकी लेखनी का उद्देश्य- स्वान्तःसुखाय तथा लोकहित हैl जीवन में प्रेरणा पुंज-गुरुजी हैंl वंदना जी की रुचि-लेखन एवं अध्यापन में है|