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मानव हृदय की स्वार्थ की सोच दु:ख का कारण

हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

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सृष्टि के निर्माणकर्ता हमारे देवता ब्रह्मा, विष्णु,महेश ने सृष्टि बनाने से पहले, इसके सुचारु रुप से संचालन के विषय में सोचा। इसी आशय से देवताओं ने बहुत से तत्व ऐसे बनाए जिन्हें सृष्टि का प्राणी महसूस तो करता है,परन्तु देख नही सकता। जैसे हवा,किरण, खुशबू,वक्त इत्यादि। ऐसे तत्व जीवन निर्वहन के लिए नितान्त आवश्यक हैं।
हमारे देवताओं ने तो प्राणी शरीर की संरचना तक में सोच-विचार करके ही हर अंग का सृजन किया। शायद इसी के परिणाम स्वरूप एक शरीर की २ आँखें जो संसार का हर बारीक से बारीक कण जीवनकाल में देख सकतीं हैं,वे स्वयं आपस में एक ही शरीर में अगल-बगल होते हुए एक-दूसरे को कभी नहीं देख पातींं। ऐसे ही और भी कुछ अंग हैं। वैसे ही शरीर को रचते वक्त देवताओंं ने प्रत्येक शरीर में एक अंग हृदय का सृजन किया,जिसका आकार तो बहुत छोटा है, परन्तु उसमें समस्त सृष्टि की ‘सोज’ समाहित हो सकती है। यह बात उस शरीर पर निर्भर करती है,जिस शरीर का वो हृदय है।
ऐसे ही देवताओं ने प्राणी जगत में अनगिनत योनियां बनाकर उन्हें अलग-अलग प्रजातियों में विभाजित किया। समस्त प्रजातियों में एक विशेष प्रजाति ‘मानव’ की बनाई। अब बारी आई ‘तत्व विभाजन’ की,तो तदाशय वक्त को ४ भागों-सतयुग,त्रेतायुग, द्वापरयुग एवं कलयुग में विभजित कर दिया। शास्त्र के जानकारों के अनुसार क्रमशः पहले तीन युग व्यतीत होकर वतर्मान में कलयुग बीत रहा है।
‘सोच’ के अनुसार विचार करने पर ऐसा प्रतीत होता है कि युग के अनुसार ही समय-समय पर मानव हृदय की सोच में विशाल परिवर्तन होते आए हैं। अत्यंत चिन्ता का विषय है कि वर्तमान युग में मानव हृदय की सोच भूत-भविष्य की सोचे बिना वर्तमान में बीत रहे पल में सिर्फ निजी स्वार्थ,सुख,मान-सम्मान, ऐश्वर्य की रह गयी है। जो न सिर्फ सोचने वाले के दु:ख का कारण बनती है, अपितु समस्त प्राणी जगत के लिए चिन्तनीय है,जिसके दूरगामी परिणाम सिर्फ सृष्टि विनाश की ओर ही इशारा करते हैं,जैसे वातावरण का प्रदूषित होना,प्राणी जगत से अनेक पशु-पक्षियोंं की प्रजातियों का विलुप्त होना,जलस्तर गिरना,ऋतुओं में उनकी वास्तविकता का आभास न होना,महामारी फैलना इत्यादि अनेक विषमताएं दृष्टिगोचर होतीं हैं। बहुतेरी अच्छी सोच भी बनतीं हैं, परन्तु उनका निस्वार्थ आकलन नहीं हो पाता।
अन्ततः यही रह जाता है कि,जीवन मिला है तो मृत्यु आने तक हमें इसका सही निर्वहन सही सोच से करना है।

परिचय-हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।

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