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सामाजिक बहिष्कार और कानूनी सख्ती बहुत जरुरी

अजय जैन ‘विकल्प’
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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मुद्दा सामूहिक दुष्कर्म का…………….
जिस देश की राजधानी दिल्ली से देश की सत्ता चलती है,यदि वहाँ ही महिला सुरक्षित नहीं है या तेलंगाना-हैदराबाद में पहले तो सामूहिक दुष्कर्म और फिर जान भी ले ली जाए तो समझा जा सकता है कि,मानसिकता का स्तर कितना होगा। सामूहिक दुष्कर्म की इस घटना ने देश को कितना शर्मसार किया है,यह कहना भी अब तो निरर्थक लगता है। फिर कुछ मोम बत्तियों को प्रज्वलित करके इसका कड़ा विरोध किया जाएगा,पर इससे कितनी जागरुकता आएगी,समझा जा सकता है। एक महिला चिकित्सक की शारीरिक-मानसिक-सामाजिक शीलता को भूखे इंसानी भेड़ियों ने लूटा और इस घटना के बाद जलाकर मार दिया,ऐसा तो राक्षस ही करते हैं। सबूत कितने भी छिपाए जाएँ,पर रोशनी की तरह सच भी निकलता ही है। अब इस घटना के विरोध में संसद पर प्रदर्शन होता रहेगा,पुलिस की खिंचाई होगी,मोमबत्ती जलाने का काम भी होगा,पर लगता नहीं कि इससे कुछ खास होगा। भले ही आरोपी पकड़ लिए जाएँ,पर कानूनी प्रक्रिया से जूझते हुए समय जाता रहेगा। संभव है कि इस बीच कोई निर्दोष भी निकल जाए,तो कोई दोषी मान लिया जाए।
दरअसल,अब ऐसी घटनाओं के प्रति अलग विचार-दृष्टि अपनाने की जरुरत है। “इतने बड़े देश या राज्य में होता रहता है”,कहने से काम नहीं चलेगा। जरूरत है कि पुलिस से लेकर हर जिम्मेदार अपनी भूमिका का स्वयं मूल्यांकन करें। आज फिर यह सोचने की आवश्यकता सबको है कि कल को ऐसा किसी और के साथ भी…,इसलिए ऐसे मामलों में भागने-बचने की अपेक्षा इसे गंभीरता से लेकर सख्त कदम उठाने की महती जरुरत ही इसका हल बन सकता है। तभी शायद ऐसी घटनाओं पर अंकुश संभव होगा। एक दूसरे विचार से अब तो यह भी पक्की बात है कि इन घटनाओं के पीछे विशुद्ध रूप से कुत्सित मानसिकता बनाम विक्षिप्तता ही है। पुराने कुछ मामलों की तरह अब कोई यह कहकर घटना से बच नहीं सकता कि,महिला द्वारा लुभाने,अश्लील प्रदर्शन या फिर छोटे-कम कपड़ों की वजह से ऐसा होता है,क्योंकि यहाँ डॉ. प्रियंका का मामला तो संभ्रांत युवती के रूप में चिकित्सकीय क्षेत्र से जुड़ा हुआ है। अब सरकार से भी सबको यही उम्मीद है कि यकीनन ऐसे मामलों में नेतागिरी और तेरा-मेरा करने की अपेक्षा सीधे-सीधे आरोपियों के खिलाफ कानूनी सख्ती बरतते हुए सामाजिक जागरूकता बढ़ाकर इन्हें समाज से भी बहिष्कृत किया जाए। ऐसे ही जब अदालत से भी कड़ी सजा मिलेगी तो अपराधी डरेगा ही। जब आदमी अदालत से बचने या नहीं बचने के बाद परिवार और सामाजिक दायरे से भी घोषित रूप से काटा जाएगा,तो ही स्वत: उस मानसिकता में सुधार आ सकेगा। यह तो तय है कि,घर,समाज,राज्य और देश को ऐसी शर्मसार कर देने घटनाओं में हैवानियत की मानसिकता वाले लोगों पर अंकुश लगाने का काम समाज ही बहुत बेहतर ढंग से कर सकता है। कई बिन्दुओं पर सामाजिक एवं पारिवारिक दबाव से ऐसी घटनाएं बहुत सीमा तक रोकी जा सकती हैं।
व्यवहार में हम कहते हैं कि महिला और पुरुष बराबर है,और आज दोनों कंधा मिला कर चल रहे हैं,पर जब देश और हम तब झुक जाते हैं,जब सामूहिक दुष्कर्म की घटनाएं होती हैं। ऐसे में यह सवाल लाजिमी है कि,क्या सच में महिलाएं सुरक्षित हैं ? तेलंगाना-हैदराबाद में डॉ. प्रियंका रेड्डी से दुष्कर्म और फिर जला कर हत्या कर दी गई।भूखे हैवानों ने डॉ. प्रियंका का जो हाल किया ,उस देख मन अंदर तक सिहर उठा है,क्योंकि शरीर एक दीवार किनारे कोयला बन चुका था। इस हृदय विदारक मामले ने दिल्ली में छोटी छात्रा अनु दुबे को अकेले ही धरना देने को मजबूर कर दिया तो लड़कियों के हौंसलों को भी पस्त किया है। आगे बढ़ती बेटियों के माता-पिता और आम लोग इस खौफनाक दास्तान को दिल्ली में करीब ५ साल पहले घटित ‘निर्भया’ कांड से जोड़कर देख रहे हैं।
देश-राज्य के माथे पर कलंक वाली इस घटना के साथ खास बात यह है कि,तेलंगाना में एक माह में इससे पहले भी हैवानियत की कुछ बड़ी घटनाएं हों चुकी हैं। तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद के इस भयावह हत्याकांड ने ५ साल बाद पूरे देश को झकझोर कर सोचने को विवश किया है कि आखिर सोंच में बदलाव कब आएगा,या आएगा भी कि नहीं ? दिया है। तेलंगाना में किसी महिला या युवती के साथ इस तरह का आपराधिक घिनौना काम हाल ही में कई घटनाओं में हुआ है। आँकड़ों के अनुसार ४ नवम्बर २०१९ को महिला तहसीलदार को जिंदा जला दिया गया। ऐसे ही २५ नवम्बर को तेलंगाना के रंगारेड्डी इलाके में १५ साल की लड़की से उसी के हेडमास्टर ने दुष्कर्म किया था तो इसी दिन आसिफाबाद जिले में महिला से बलात्कार कर उसे मार दिया गया। २७ नवम्बर को वारंगल में दुष्कर्म के बाद प्रेमी ने १९ साल की युवती की हत्या कर दी,जबकि पहले दुष्कर्म किया, तो अब ये कड़ी डॉ.प्रियंका तक आई है।
दक्षिण भारत के राज्य तेलंगाना में अपराधियों के हौंसले देखिए कि पुलिस-प्रशासन से खौफ खाए बिना विधानसभा चुनाव से ठीक पहले वन विभाग की एक महिला अधिकारी के साथ मारपीट की थी।
कहना गलत नहीं होगा कि,इन घटनाओं को देखते हुए यही लगता है कि देश में चंदा मामा तक जाने की तरक्की होने पर भी दिमागी घिनौनी मानसिकता आज भी वैसी ही है। शरीर के इन भूखे दरिंदों की वजह से ही महिलाओं की हर तरह की प्रतिष्ठा पर आज भी जान का संकट कायम है।
आँकड़ों पर गौर करें तो पता लगता है कि,१८ से ३० साल की महिलाओं के लिए तेलंगाना सबसे असुरक्षित राज्य है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी के आँकड़ों के अनुसार १८ से ३० साल की महिलाओं के लिए तेलंगाना देश में सबसे असुरक्षित राज्य है,क्योंकि २०१७ में यहां दर्ज दुष्कर्म के कुल मामलों में ९१ फीसदी पीड़ित इसी आयु वर्ग की है। यह देश में सबसे ज्यादा है। साथ ही सेक्स ट्रैफिकिंग के मामले में भी तेलंगाना देश के शीर्ष ३ राज्यों में शामिल है। ऐसे ही एक समय देश में दुष्कर्म के सबसे ज्यादा मामले मध्यप्रदेश में उजागर हुए थे। मध्यप्रदेश में २०१७ में देश में दुष्कर्म के कुल ३२,५५९ मामले दर्ज किए गए और ९३ प्रतिशत मामलों में आरोपी परिचित या रिश्तेदार हैं। इसी कड़ी में दूसरे क्रम पर उत्तर प्रदेश और तीसरे पर राजस्थान है। और आश्चर्य कीजिए कि,मध्यप्रदेश १८ साल से कम उम्र की बच्चियों और ६० साल से ज्यादा उम्र की महिलाओं से दुष्कर्म के मामले(१३९) में भी देश में शीर्ष पर हैं। आँकड़ों के अनुसार सामूहिक दुष्कर्म के बाद हत्या के मामले में उत्तर प्रदेश देशभर में अव्वल है। यहां के सबसे ज्यादा ६४ मामले मिला कर देश में सिर्फ ४ राज्य ऐसे हैं,जहां सामूहिक दुष्कर्म के बाद हत्या के मामले दोगुने अंक में सामने आए हैं।
दिल्ली-एनसीआर यानी बात जब ‘देश के दिल’ मतलब दिल्ली की हो तो ‘निर्भया’ कांड के ५ साल बाद भी कोई बदलाव नहीं दिखता है। यहाँ २०१६-१७ में दुष्कर्म के २१५५ मामले दर्ज हुए हैं, जो स्पष्टतः बात की गंभीरता दिखाते हैं। करीब ५ साल पहले १६ दिसम्बर की रात हुए ‘निर्भया’ कांड की गूंज जिस तरह पूरे देश में सुनी गई थी,तथा दिल्ली सहित पूरे देश में विरोध-प्रदर्शन हुआ था, उससे लगा था कि शायद हालात बदल जाएंगे,पर तेलंगाना के ४ दरिंदों ने ‘निर्भया’ के साथ क्रूरतम तरीके से ५ दरिंदों द्वारा घटित सामूहिक दुष्कर्म की याद ताजा करके सिहरन पैदा कर दी है।
निर्भया की मौत से चकित कई कामकाजी महिलाएं-युवतियां दिल्ली-एनसीआर के क्षेत्रों में केन्द्र और राज्य सरकारों के दावों के विपरीत आज भी खुद को यहां सुरक्षित महसूस नहीं करतीं हैं। एनसीआरबी द्वारा २०१६-१७ के जारी आँकड़ों के मुताबिक दिल्ली में अपराध की उच्चतम दर १६०.४ फीसदी रही,जबकि इस दौरान अपराध की राष्ट्रीय औसत दर ५५.२ है।
मानवता को कलंकित करती ऐसी घटनाओं पर शायद कानून की सख्ती तभी नजर आएगी,जब दोषी बलात्कारियों की चमड़ी उधेड़ कर सड़क पर जुलूस निकाला जाएगा।
‘निर्भया’ के बाद देश को इस घटना ने फिर झकझोरा है,पर अभी भी कई सख्त-कड़े कदम निचले स्तर तक अमल में लाकर सुधार संभव है। निश्चित ही कई दिनों तक डॉ.रेड्डी का मामला चर्चा में बना रहेगा,लेकिन अब तय करना होगा कि ऐसी घटनाओं पर अलग-अलग सख्ती-कारवाई से शून्य फीसदी तक का विराम लगे तथा सभी का सम्मान पूर्णतः सुरक्षित रहे,जिसके लिए दोषियों के प्रति जल्दी और सख्त कारवाई ही अंतिम विकल्प होना चाहिए।

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