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प्रताप का शौर्य ‘एक रहस्य’

अंशु प्रजापति
पौड़ी गढ़वाल(उत्तराखण्ड)
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‘महाराणा प्रताप और शौर्य’ स्पर्धा विशेष……….


विद्यार्थी जीवन से ही मेरे लिए कुछ विषय बड़े ख़ास थे। गणित और भाषा मेरे प्रिय विषय रहे,परन्तु जब-जब गणित के कठिन दांव-पेंचों में फँस कर थक जाती थी अथवा संस्कृत के दुरूह श्लोक कंठस्थ करने में हार जाती थी,तो स्वयं को फ़िर से तरोताज़ा करने के लिए इतिहास मुझे सबसे बेहतर उपाय लगता था।
जैसे कुछ लोगों को जासूसी कथाएं या परी कथाएं रोमांचित करती हैं,वैसे ही मुझे सदा से अपने भारत वीरों की गाथाएं रोमांचित करती रहीं। सरदार भगतसिंह जहाँ मेरे लिए दृढ़ इच्छाशक्ति का दूसरा नाम हैं,भगवान श्री कृष्ण जहाँ एक ओर महामानव,महा प्रभु के रूप में मेरे मन मे विराजते हैं,वहीं महाराणा प्रताप का शौर्य मेरे ज्ञान और जिज्ञासा के लिए रहस्य का विषय रहा। रहस्य इसलिए कि जब भी कोई विचार,कृत्य या कोई व्यक्तित्व मनुष्य की निर्धारित क्षमताओं से परे प्रतीत होता है तो विश्वास नहीं होता कि वो सत्य है या फ़िर कोई छद्म कथा।
जितना राणा प्रताप को पढ़ती हूँ,कल्पना शक्ति से उनके व्यक्तित्व को निर्धारित करने का प्रयास करती हूँ,उतना ही विचारों के रहस्मयी संसार में गोते लगाने लगती हूँ। कैसा होगा वह व्यक्ति,जिसकी लम्बाई ७ फुट ५ इंच होगी ? कितनी शक्ति होगी उन भुजाओं में जो ८० किलो के भाले का भार वहन करती होंगी ? कितना साहसी होगा वो सीना जो ७२ किलो का कवच धारण करता होगा ? और इन सबसे ऊपर इतनी अदम्य इच्छाशक्ति कि सम्पूर्ण जीवन त्याग और बलिदान की परिभाषा बन गया।
प्रताप की चर्चा हो और हल्दी घाटी का स्मरण न हो,तो इतिहास अपूर्ण है,ये मेरा मत है। उसका कारण है और वो है उस युद्ध के आँकड़े। प्रताप के पास मात्र ३४०० सैनिक थे,जबकि मुगलों के पास ५०००-१००००। आश्चर्य होता है कि किस प्रकार उन लोगों ने मुगलों को धूल चटायी होगी ? कैसा युद्व कौशल,कैसी नेतृत्व क्षमता होगी वो जिसने मात्र एक दिन में शत्रुओं के होश उड़ा दिए। क्या उनको कोई दिव्य शक्ति प्राप्त थी या किसी देव को प्रसन्न कर कोई वरदान प्राप्त किया होगा,क्योंकि कोई साधारण मनुष्य इतने कम सैनिक अनुपात के साथ और इतने अल्प संसाधनों के बाद भी कैसे युद्ध कर सकता है ? उसमें भी शत्रु की इतनी भारी क्षति कि उनके १६०० सैनिकों के बदले ७८०० सैनिकों की बलि ले ली,और ३५० से ज्यादा घायल कर छोड़ दिए।
ऐसा कैसे सम्भव है ? महान आश्चर्य,गहन रहस्य और वृहत रोमांच…फ़िर जब गहन चिंतन कर अपने इस वर्तमान युग में आती हूँ तो पाती हूँ कि हमारे पूर्वज जितने महान हुए,उनके व्यक्तित्व विराट थे,उसके पीछे मात्र एक कारण था स्वयं को मानवता और मातृभूमि की सेवा हेतु साधन मानना। निज स्वार्थों का सवर्था त्याग करना। सुख,परिवार,
प्रेम,द्वेष उनका निजी कुछ भी नहीं था। सब -कुछ अपने राष्ट्र,अपने समाज को समर्पित था। जब उनका कुछ निजी था ही नहीं तो उनकी शौर्य गाथा भी निजी क्यों रहती ? स्वयं अकबर उनकी मृत्यु पर निःशब्द था, क्या ये कम बड़ी बात है ?
तब इस विषय पर मुझे आनंद मिलता था उनके व्यक्तित्व को जानने में,उनके संघर्षों को जानने में और उनसे कुछ सीखने में,परन्तु आज दुःख होता है ये देख कर कि वर्तमान समय में अपने ही लोगों के पास अपने पूर्वजों से कुछ सीखने का समय है ही नहीं,अपने पूर्वज उनके आदर्श हैं ही नहीं। उनके लिए रहस्य का विषय मुसोलिनी या हिटलर होते हैं ,क्योंकि अपने इतिहास को अपनी सोच की भांति हम दूषित कर चुके हैं। क्या प्रताप ने अकबर से लोहा लेते समय अपने वर्ग,जाति या धर्म का विचार किया होगा ?? नहीं उन्होंने विचार किया केवल स्वन्त्रता और देशप्रेम का, किन्तु क्या ये सब कथाएं पुस्तकों में सिर्फ इसलिए संचित हैं कि हम इन पर जमी धूल समय-समय पर हटाएं और मात्र अपने मनोरंजन के लिए उन्हें पढ़ें या अपने स्वर्णिम इतिहास को पढ़कर गौरवान्वित हो सकें ? मेरा उत्तर है-‘नहीं।’ मुझे लगता है कि ये कथाएं इसलिए नहीं लिखी गयीं कि हम ये निर्धारित करें कि कौन-सा वर्ग हमारा शत्रु रहा,या किस वर्ग विशेष ने हमारे धर्म और हमारी संस्कृति को दूषित करने का प्रयास किया,बल्कि इसलिए कलमबद्ध की गयीं कि आने वाली पीढ़ियां इनसे सबक लें साहस का ,देशसेवा का,व्यक्तित्व निर्धारण का,क्योंकि इतिहास किसी राष्ट्र के स्वर्णिम भविष्य की नींव अवश्य हो सकता है किंतु इमारत बुलन्द हो और भव्य हो,इसके लिए आवश्यक है कि इसका प्रत्येक कण सम्पूर्ण समर्थ हो।

परिचय-अंशु प्रजापति का बसेरा वर्तमान में उत्तराखंड के कोटद्वार (जिला-पौड़ी गढ़वाल) में है। २५ मार्च १९८० को आगरा में जन्मी अंशु का स्थाई पता कोटद्वार ही है। हिंदी भाषा का ज्ञान रखने वाली अंशु ने बीएससी सहित बीटीसी और एम.ए.(हिंदी)की शिक्षा पाई है। आपका कार्यक्षेत्र-अध्यापन (नौकरी) है। लेखन विधा-लेख तथा कविता है। इनके लिए पसंदीदा हिन्दी लेखक-शिवानी व महादेवी वर्मा तो प्रेरणापुंज-शिवानी हैं। विशेषज्ञता-कविता रचने में है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“अपने देेश की संस्कृति व भाषा पर मुझे गर्व है।”

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