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सुबह का भूला

पवन प्रजापति ‘पथिक’
पाली(राजस्थान)
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शहर से सोहन को शुरू से लगाव रहा है,शहर से आने वाले लड़के जब उसके सम्मुख शहरी चकाचौंध का वर्णन करते तो सोहन अपनी कल्पना में शहर का चित्र खींचने लग जाता। उनको जब नए एवं चमकदार वस्त्र पहने देखता तो स्वयं को उनके सामने बहुत निम्न श्रेणी का महसूस करता। गाँव की कच्ची सड़कों एवं कच्चे मकानों को देख-देख कर मन ही मन दु:खी होता और ईश्वर को उलाहना देता कि उसे किसी शहर में क्यों नहीं पैदा किया। बार-बार के उलाहनों के बाद इस बार ईश्वर ने कदाचित सोहन का उलाहना सुन लिया था। सोहन का मित्र श्याम इस बार गर्मियों की छुट्टियों में गाँव आया हुआ था। उसके सेठ की दुकान पर काम करने के लिए लड़कों की आवश्यकता थी। श्याम के कहने भर की ही देर थी। सोहन तो पहले से ही ऐसे किसी अवसर की प्रतीक्षा में था,खुशी-खुशी श्याम के साथ शहर के लिए रवाना हो गया। सोहन तो इतना उत्सुक था,मानो अपनी प्रेमिका के प्रथम दर्शन के लिए जा रहा हो। सफर के दौरान रात्रि में सोया भी नहीं,क्या पता नींद में कितने शहर निकल जाएंगे और सोहन उन्हें निहारने से वंचित रह जाएगा। लगभग दो दिन व एक रात के सफर के बाद श्याम व सोहन शहर में उतर चुके थे। शाम का समय था,रंगीन रोशनियों से नहाई ऊॅंची-ऊॅंची ईमारतों को चीरती सड़क पर चलते हुए सोहन को स्वयं के इन्द्रपुरी में होने का आभास हो रहा था। कुछ मिनटों के पैदल सफर के बाद दोनों अपने निवास पर पहुंच गए। सुबह श्याम ने सोहन को अपने सेठ से मिलवा दिया। मासिक वेतन तय कर दिया गया। सोहन काम पर लग गया था। रहने के लिए छोटी-सी खोली थी,जिसमें श्याम और सोहन दोनों रहते थे। सुबह ९ से रात्रि १० बजे तक काम और उसके बाद हाथों से भोजन बनाना और खाना,बस यही सोहन की दिनचर्या थी। समय बीतता गया। धीरे-धीरे सोहन का शहर के प्रति आकर्षण कम होता गया। रात्रि के समय जब दुकान से घर लौटता तो रोशनी से नहाई इमारतें अब उसे पहले की तरह लुभाती नहीं थी। शहर के युवकों को आधुनिक वस्त्र पहने देख अब वह पहले की तरह उनकी तरफ आकर्षित भी नहीं होता था।
समय रथ अपनी गति से चल रहा था। इसी दौरान देश में भयंकर महामारी फैल गई। इससे बचाव की अभी तक कोई दवाई नहीं थी। इन्सानों के एक दूसरे से स्पर्श से ही यह बीमारी फैल जाती थी। शहरों में घनी आबादी होने के चलते यहां सबसे ज्यादा खतरा था,लिहाजा सरकार ने शहरों को अनिश्चित काल के लिए बन्द कर दिया। २४ घण्टे दौड़ने वाला शहर बिल्कुल थम गया,सड़कों पर मरघट का सन्नाटा पसर गया। लोग अपने घरों में दुबक गए। सड़कों पर पुलिस एवं रोगीवाहनों के अतिरिक्त कोई दिखाई न देता था। श्याम व सोहन अपनी कड़ी मेहनत के बाद भी महीने के अन्त में अपने लिए कोई ज्यादा बचत नहीं कर पाते थे। जो थोड़ी-बहुत पुंजी उन्होंने जोड़ी थी,वो कुछ ही दिन में खर्च हो गई। अब खाने के लाले पड़ गए। सालभर के अनुभव ने सोहन को यह सिखा दिया था कि शहरों में लोग अपने पड़ोसियों से भी ज्यादा मेल-मिलाप नहीं रखते,जबकि उसका पूरा गाँव सिर्फ गाँव न होकर एक परिवार था। किसी को भी छोटी-सी समस्या होने पर गाँव वाले उसकी पूरी मदद करते थे। उसके गाँव में तो गाय व कुत्तों तक को भूखे नहीं मरने दिया जाता,जबकि शहर में इन्सानों की भूख की भी किसी को चिन्ता नहीं है। चकाचौंध वाला शहर अब सोहन को काटने को दौड़ता था।
मजदूरों की खस्ता हालत को देखते हुए सरकार ने उन्हें अपने-अपने गाँव भेजने के लिए गाड़ियों की व्यवस्था कर दी। शहरभर के मजदूर अपने-अपने गाँव जाने के लिए रवाना हो गए। श्याम व सोहन भी सरकारी गाड़ियों में लद गए।
सुबह का भूला शाम को लौट आया था। दोनों गाड़ी से उतरते ही तेज कदमों से गाँव की तरफ चल दिए। गाँव के कच्चे मकान दूर से ही दिखाई दे रहे थे। जिस गाँव को सोहन कोसता रहता था,वही गाँव आज मानो किसी माँ की तरह अपने बच्चे की सारी गलतियों को क्षमा कर उसे अपने सीने से लगाने के लिए उतावला था और अपनी बाँहें फैलाकर खड़ा था।

परिचय-पवन प्रजापति का स्थाई निवास राजस्थान के जिला पाली में है। साहित्यिक उपनाम ‘पथिक’ से लेखन क्षेत्र में पहचाने जाने वाले श्री प्रजापति का जन्म १ जून १९८२ को निमाज (जिला-पाली)में हुआ है। इनको भाषा ज्ञान-हिन्दी,अंग्रेजी एवं राजस्थानी का है। राजस्थान के ग्राम निमाज वासी पवन जी ने स्नातक की शिक्षा हासिल की है। इनका स्वयं का व्यवसाय है। लेखन विधा-कविता,लेख एवं कहानी है। ब्लॉग पर भी कलम चलाने वाले ‘पथिक’ की लेखनी का उद्देश्य-मानव कल्याण एवं राष्ट्रहित के मुद्दे उठाना है। आपकी दृष्टि में प्रेरणा पुंज-स्वामी विवेकानन्द जी हैं। इनकी विशेषज्ञता- भावनात्मक कविता एवं लघुकथा लेखन है।

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