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किसान की जीवटता

सत्येन्द्र प्रसाद साह’सत्येन्द्र बिहारी’
चंदौली(उत्तर प्रदेश)
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प्रकृति और मानव स्पर्धा विशेष……..

अवसान वर्षा रित बढ़ता तुषार,
ठिठुरती सांझ ओझल उदित
सांध्य गीत की मधुर ध्वनि,
सिमटती स्वर्णिम यामिनी की ओर।

कांपते होंठ विचलित कदम,
कट-कटाते दांत नाचती रात
सीना समीर का भेदते हूए,
बढ़ता किसान खेतों की ओर।

धुंधले बादल शबनम की,
राह खड़ी भयभीत हो रोकी
शीत के पीर भारी हो आँखें,
स्रोत से बहते नैनों के लोर।

झंझावात की असुर रागिनी,
जड़-चेतन सब शीत विदारणी
पथ-प्रदर्श हैं चन्द्र-चाँदनी,
झुका तन जैसे कमाठ की ओर।

हिम कड़ भयी रजत की चादर,
तानी चिरनिद्रा सोई वसुधा सागर
झूलते मोती पौधों की पाती,
झर-झर गिरते वसुधा की ओर।

खेत सींचते निमीड़ यामिनी,
थर-थर कांपती हस्त लकीर
फूटी कोपलें पादों के पीर,
टक-टकी बांधे आशाओं की ओर।

खोया बचपन आया यौवन,
हड्डियां गल गई खेतों में।
एकटक विमूढ़ हो देखता मौन,
बढ़ चला कदम अम्बर की ओर॥

परिचय-सत्येन्द्र प्रसाद साह का निवास जिला-चंदौली(उत्तर प्रदेश)में हैl इनका साहित्यिक उपनाम-सत्येन्द्र बिहारी हैl जन्म तारीख १७ मार्च १९८५ एवं जन्म स्थान-बिहार राज्य हैl ग्राम सैयदराजा निवासी श्री साह ने स्नातकोत्तर की शिक्षा पाई है और कार्यक्षेत्र-नौकरी हैl आपकी लेखन विधा-कविता हैl हिंदी का भाषा ज्ञान रखने वाले सत्येन्द्र बिहारी की लेखनी का उद्देश्य-हिंदी को समृद्ध करना हैl

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