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संभल जाओ मानव अभी भी

डॉ.साधना तोमर
बागपत(उत्तर प्रदेश)
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प्रकृति और मानव स्पर्धा विशेष……..

खुद के लिए ही जिए हो सदा तो,
आज गमगीन क्यों हो रहे हो ?
प्रकृति से छेड़छाड़ करते रहे तुम,
अब उसने छेड़ा तो क्यों रो रहे हो ?

प्रदूषण दिया सदा इस जगत को,
वृक्षों को भी बस काटे जा रहे हो।
पशु-पक्षियों के बसेरों को छीना,
अपना छिने तो आँसू बहा रहे हो।

ए.सी.,फ्रीज,माइक्रोवेव,गाड़ियां,
भौतिक सुविधाएं सभी उठा रहे हो।
तापमान ज्यादा जो बढ़ने लगा तब,
प्रभु को फिर क्यों कोसे जा रहे हो ?

सन्तुलन बिगाड़ा है प्रकृति का तुमने,
धैर्य आज उसका तुम खो रहे हो।
प्राकृतिक आपदाएँ आएंगी निशिदिन,
इनसे क्यों अब तुम घबरा रहे हो ?

संभल जाओ मानव अभी भी तुम जरा,
जल,वायु,भू से ही पोषण पा रहे हो।
सहेजो,संभालो,प्रदूषण मुक्त करो इनको,
इनसे ही ये जीवन स्वर्ग सम पा रहे हो॥

परिचय-डॉ.साधना तोमर का साहित्यिक नाम-साधना है। २९ दिसम्बर १९६७ क़ो पन्तनगर (नैनीताल) में जन्मीं साधना तोमर वर्तमान में उत्तर प्रदेश स्थित बड़ौत (बागपत) में स्थाई रूप से बसी हुई हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली डॉ.तोमर ने एम.ए.(हिन्दी), एम.एड.,नेट,पी-एच.डी. सहित डी.लिट्.की शिक्षा हासिल की हुई है। आपका कार्यक्षेत्र-बागपत स्थित महाविद्यालय में सह प्राध्यापक (हिन्दी विभाग)का है। सामाजिक गतिविधि में आप राष्ट्रीय सेवा योजना प्रभारी होकर विविध साहित्यिक मंचों से जुड़ी हुई हैं।लेखन विधा-गीत,कविता,दोहा,लेख और लघुकथा आदि है। प्रकाशन में ३ पुस्तकें(एक सन्दर्भ पुस्तक-कवि शान्ति स्वरूप कुसुम:व्यक्तित्व एवं कृतित्व,जीवन है गीत-गीत संग्रह और साधना सतसई-दोहा संग्रह) सहित २९ शोध- पत्र आपके खाते में हैं। प्राप्त सम्मान- पुरस्कार में काव्य रचनाओं पर ३१ राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय सम्मान,पुरस्कार तथा उपाधि प्राप्त हैं। लेखनी का उद्देश्य-सामाजिक विसंगतियों को दूर करने का प्रयास तथा मानवीय मूल्यों की स्थापना के साथ ही आध्यात्मिक चेतना का विकास करना है। पसन्दीदा हिन्दी लेखक-छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद और प्रेरणापुंज-गुरु डॉ.सुभाषचंद्र कालरा हैं। आपकी रचनाएँ विभिन्न समाचार-पत्रों और संग्रह में छपी हैं। जीवन लक्ष्य-अपनी रचनाओं के माध्यम से मानवीय मूल्यों का विकास करना है। देश के प्रति विचार-
“राष्ट्र-धर्म अब यही है कहता, 
दुश्मन को दिखला दें हम। 
अलग नहीं हम एक सभी है, 
सबक उसे सिखला दें हम।

हिन्दी हिन्द की आत्मा,
इस बिनु नहीं विकास। 
अस्मिता यह राष्ट्र की, 
जन-जन का विश्वास॥”

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