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मैं शहीद की पत्नी

डॉ. जानकी झा
कटक(ओडिशा)
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रोती रही,बिलखती रही,
हर पल सुहाग को अपने
याद करती रही
देश के लिए शहीद हुए तुम,
घर पर हमें रोता छोड़ गए तुम।
जीवनभर साथ निभाने का वादा,
पिता,पुत्र,भाई और पति का
धर्म न निभा पाए तुम,
शहीद की पत्नी हूँ मैं…
गर्व है मुझे।
पर व्यथा इस अंतरात्मा की,
किसे अब दिखा पाऊंगी मैं ?
मातृभूमि की सेवा के लिए,
प्राण अपने न्योछावर कर गए तुम।
जीते-जी मुझे मार गए तुम,
कैसे जी पाऊंगी मैं
सोच ही सोच कर दिल घबराता है,
जीवन में जो कर्तव्य
अधूरा रह गया तुम्हारा,
क्या उसे मैं पूरा कर पाऊंगी ?
नम आँखों को मेरी,
हर पल याद तुम्हारी आती है
‘जल्दी लौट कर आऊंगा’,
यह गूंज कानों से न जाती है।
अर्धांगिनी हूँ मैं तुम्हारी,
मुझे भी साथ ले जाते
घुट-घुट कर अब न हम जी पाते,
फिर मन में यह आता है।
परछाई तुम्हारी है कोख में मेरी,
माता-पिता का स्नेह
क्या मैं उसे दे पाऊंगी…?
रोता है मन मेरा,
जब याद वह पल आता है
राष्ट्र मर्यादा सहित विदा हुए तुम।
मुझे अकेला छोड़ गए तुम,
हाँ,मुझे अकेला छोड़ गए तुम॥

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