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फिर ये शुभ घड़ी आई

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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स्वतंत्रता दिवस विशेष ……..

आजादी का दिवस लौट कर एक बार फिर आया है,
कितना हाहाकार मचा था हमको याद दिलाया है।

छोड़ गये अँग्रेज थे भारत लेकिन टुकड़े कर डाले,
घाव हृदय में कितने गहरे फिरंगियों ने कर डाले।

लाशों का अम्बार लग गया हिन्दू और मुसलमाँ का,
नदी बह चली थी लहू की,बहा खून हिंदोस्ताँ का।

कितने ही बलिदान हो गये तब आजादी पायी है,
वर्ष चौहत्तर बीत गये,फिर ये शुभ घड़ी आई है।

लहराता है सदा तिरंगा हर घर की प्राचीरों पर,
गर्व आज होता हमको बलिदान हुए उन वीरों पर।

आज जगमगाएगा भारत दीप जलेंगे हर घर में,
आजादी का पर्व हमारा खुशी रहेगी हर उर में।

आज खुशी की बेला में बाधा पहुंचाता ‘कोरोना’,
जिस घर का बेटा उठ जाए मच जाता रोना धोना।

लेकिन इस बीमारी से सब लोग निडर हैं डरे नहीं,
जिंदा है अपनी हिकमत से अभी तलक हम मरे नहीं।

आजादी का पर्व हमारा सब मिल इसे मनायेंगे,
लेकर हाथ तिरंगा हम सब वँदे मातरम गाएंगे।

लहू मिला इस मिट्टी में आजादी के परवानों का,
मौत से जिनकी यारी थी देश के उन दीवानों से।

मातभारती की जंजीरों को उन सबने काट दिया,
दुश्मन की लाशों से सबने भारत भू को पाट दिया।

आज तिरंगा लहराएगा लाल किला प्राचीरों पर,
गर्व करेगी भारत जनता वँदे मातरम नारों पर।

वीर शहीदों की गाथाएँ आज सुनाई जाएँगी,
गीत वीरता के भारत की ललनाएं मिल गाएंगी।

कितना लहू बहाया है आजादी यूँ ही मिली नहीं,
भारत भू की ये बगिया लहू बिन सींचे खिली नहीं।

अब भारत की आज़ादी हमको ही अक्षुण्ण रखना है,
अपनी जान लुटा कर के इतिहास नया ही लिखना है॥

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है।

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