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भैया अब मत और रुलाओ

डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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रचना शिल्प: करुण रस

कितने सुंदर फूल खिल रहे,
कली से भौंरे गले मिल रहेl
तितली भी कैसे मंडराती,
कोयल कैसे गीत सुनातीl
पर मुझको ये नहीं है भाता,
मुझको भाई है याद आताl

कितना हम खेला करते थे,
दूर-दूर दौड़ा करते थेl
मैं छूती और तुम भागते,
गिरते-पड़ते और मारतेl
अब मैं कैसे दौड़ लगाऊं,
किसके साथ खेलने जाऊंl

कितने सुंदर खेल-खिलौने,
कुत्ते-बिल्ली लगें सलौनेl
पर ये सब अब पड़े हुए हैं,
धूल से कैसे सने हुए हैंl
अब मैं इनसे कैसे खेलूँ,
पूरे खिलौने कैसे ले लूँl
नहीं खेलना इनसे मुझको,
इनको में बाँटूंगी किसकोl

माँ भी है अब नहीं बोलती,
पल्लू से है आँख पोंछतीl
पापा भी चुप-चुप रहते हैं,
सबसे छुप-छुप कर रोते हैंl
सूरज-चाँद तो रोज़ निकलते,
तुम ही क्यों नहीं मुझको दिखतेl

भैया अब मैं नहीं लड़ूंगी,
जो बोलोगे वही करूँगीl
सारे खिलौने तुम ले लेना,
कभी न तुम मुझको फिर देनाl
पूरे बिस्तर में तुम सोना,
मुझको एक कोना भर देनाl
पर तुम अब जल्दी आ जाओ,
गोद में आकर मुझे उठाओl
मुझे खेलना साथ तुम्हारे,
नहीं चाहिए चाँद-सितारेl
अब मत रूठो आ भी जाओ,
भैया अब मत और रुलाओ…
भैया अब मत और रुलाओll

परिचय-डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी ने एम.एस-सी. सहित डी.एस-सी. एवं पी-एच.डी. की उपाधि हासिल की है। आपकी जन्म तारीख २५ अक्टूबर १९५८ है। अनेक वैज्ञानिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित डॉ. बाजपेयी का स्थाई बसेरा जबलपुर (मप्र) में बसेरा है। आपको हिंदी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। इनका कार्यक्षेत्र-शासकीय विज्ञान महाविद्यालय (जबलपुर) में नौकरी (प्राध्यापक) है। इनकी लेखन विधा-काव्य और आलेख है।

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