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वर्तमान में नैतिकता की बहुत आवश्यकता

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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यह संतोष और गर्व की बात है कि देश वैज्ञानिक और औद्योगिक क्षेत्र में आशातीत प्रगति कर रहा है। विश्व के समृद्ध अर्थव्यवस्था वाले देशों से टक्कर ले रहा है और उनसे आगे निकल जाना चाहता है, किंतु प्रगति के इस उजले पहलू के साथ एक धुंधला पहलू भी है,जिससे हम छुटकारा चाहते हैं,वह है-नैतिकता का पहलू ।
‘कोरोना’ काल के लगभग १८ माह हो रहे हैं, इस दौरान देश ने जो नंगा नचा देखा है जिसमें अस्पताल,चिकित्सक,नर्सेस,वार्ड बॉय,दवाई विक्रेता,ऑटो-कार-टैक्सी चालक एवं किराना आदि से जुड़े व्यापारियों,कार्यकर्ताओं के साथ राजनेताओं ने भी अपनी अमानवीयता की हद पार की। वर्तमान में जितनी अधिक निर्लज्जता देखने को मिल रही है,वह अकथनीय और वर्णनातीत है।
राजनेता नैतिकता,सदाचार तथा ईमानदारी की बात करते हैं,और उससे विपरीत आचरण, भ्रष्टाचार,कालाबाज़ारी,कमीशनखोरी,मिलावट खोरी एवं जमाखोरी का कारोबार बहुत फला-फूला है। इंसानियत हैवानियत में बदल गई है। इस समय जितने अधिक आर्थिक विकास के अवसर मिल रहे हैं,उससे कोई चूकना नहीं चाहता है। कुछ अपवादों को छोड़कर,बहुत अच्छे चिकित्सक जो मानवीयता की बात करते हैं,वे धन के सामने बेदर्द रहते हैं। जब किसी समारोह सम्मान में वे प्रगट होते हैं,तब लगता हैं वे आदर्शों के प्रतिमान हैं,और जब वे अपनी व्यवसायिक कुर्सी पर बैठते हैं तब वे सब आदर्शों की तिलांजलि दे देते हैं। यानी घोड़ा घास से यारी करेगा तो वह खाएगा क्या ?
गरीबी की बात करते-करते हमारे प्रधान सेवक से लेकर बाकी तक घड़ियाली आँसू बहाते हैं और लगता है कि वे इतने नाजुक पत्थर हैं,जो आज तक नहीं पसीजे।उनको हमेशा गरीबी दिखाई देती है,और वे गरीबों को मिटाना चाहते हैं। कई लोगों ने गरीबी के नाम पर अपनी गरीबी दूर की। उनकी झोपड़ियां मिटाकर गगनचुम्बी महल या भवन बनाए। जब भी बड़े निर्माण कार्य सरकारी होते हैं, उसी समय मंत्री,सचिव के भवनों के निर्माण कमीशन में बनते हैं।
केन्द्र सरकार के स्तर पर जो खरीदी होती है, वह अरबों-खरबों में होती है। उसका न्यूनतन कमीशन भी करोड़ों में होता है,इसलिए केन्द्रीय स्तर पर सब ईमानदार दिखाई देते हैं।

हमारे देश ने बहुत विकास किया। सब क्षेत्रों में यानी तकनीकी,व्यापार,औद्योगिक,सड़क,पानी, बिजली,शिक्षा,चिकित्सा के साथ बेईमानी भी। अब देश में ईमानदारी नैतिकता,चरित्र,अनुशासन,देश प्रेम आदि ये शब्द,शब्दकोष से हटते जा रहे हैं। अब अहिंसा,सत्य की जरुरत नहीं रही,क्योंकि जब कोई नहीं चलना चाहता,न कोई चल रहा है,और भविष्य होने की संभावना भी नहीं हैं। कारण इनसे किसी का पेट नहीं भर सकता है,पेट भरेगा हरामखोरी से। आजकल ‘पर उपदेश सकल बहुतेरे।’
आज गंगोत्री ही अपवित्र हो चुकी,तब गंगा कब तक पवित्र होगी!आज गंगा में लाशें बह रही हैं,पानी प्रदूषित हो चुका है। पानी में रहकर मछलियां प्यासी हैं,हवा शुद्ध न होने पर हवा की किल्लत है,और प्राणवायु(ऑक्सीजन) की कमी से लोग मर रहे हैं। दवाओं का नकली होना आज आम व्यापार हो गया है। आज अपने घर में हम सुरक्षित नहीं हैं। अनाचार,दुराचार,व्यभिचार बढ़ता जा रहा है। सरकारी और अ-सरकारी स्तर पर माँस,शराब, चमड़े आदि का निर्यात होने से वातावरण में हिंसात्मक वातावरण होने से नित नई बीमारियां आ रही हैं और सरकार असहाय होती जा रही है।
नैतिकता,देश प्रेम और देश भक्ति मात्र शब्द कोष में शोभा बढ़ा रहे हैं। इस समय हर नागरिक का प्रमुख कर्तव्य है अपने-आपको देखे समझे और आत्मनिरीक्षण कर स्व सुधार करे। सबका सामूहिक उत्तरदायित्व है कि,वह देश हित,समाज हित,परिवार हित के साथ स्व हित देखे,और उनका पालन करे। अगर नहीं किया तो मत्स्य न्याय शुरू होगा,यानी बड़ी मछली छोटी मछली को खाएगी। यदि इन बुराइयों में आंशिक सुधार हो जाए तो बहुत बड़ी बात है,पर आर्थिक भौतिक दौड़ में ये सब बातें बेमानी हो गई है,पर हर व्यक्ति इस यज्ञ में आहुति दे तो बहुत अच्छा होगा।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

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