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प्रेम की बजने लगी शहनाई

सुजीत जायसवाल ‘जीत’
कौशाम्बी-प्रयागराज (उत्तरप्रदेश)
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निर्दयी ‘कोरोना’ रूप विकट चहुँ दिशि दिखे उत्पात,
लॅाकडाउन है दुःख,कृन्दन अब मानव तन पर आघात
मैं पूर्व भ्रमण स्मृतियों में डूबा हुआ था आज,
हे गिरिधर यशोदा नंदन कर सुख- शांति का प्रभात।

भ्रमण को मुझको शौक बड़ा गया था हरिद्वार,मसूरी,
रशियन के संग हो छवि मेरी,इच्छा हो गई तब पूरी
अंदाज निराला था उसका गिरधर के भक्ति का चोला,
स्वर्णिम केश,मृदु मुस्कान,माथ शोभित बिंदी सिंदूरी।

आग्रह मेरा स्वीकार किया मेरे नजदीक वो आई,
मेरे तन को स्पर्श किया प्रेम की बजने लगी शहनाई
श्रीकृष्ण की थी वो दीवानी अध्यात्म के रस में डूबी,
उसके मन के भावों को सुन,निज जज़्बात छुपाई।

वृंदावन बांके बिहारी की वह कृपा पात्र थी रशियन,
मंदिर इस्कॉन को जाना था दर्शन को आतुर अखियन
ऋषिकेश गंगा तट निर्मल वह सब घूमी हरि की पौड़ी,
सदा रही रशिया में मगर अब बनी माँ भारती बिटियन।

पुण्य प्रताप से ही मिलता गिरधर की भक्ति का मेवा,
मंदिर इस्कॉन में है दिखती श्रीकृष्ण की भक्ति व सेवा
आज भी रास रचावें कान्हा राधा संग गोपिका प्यारी,
बन गोपिका आनंद-मगन वृंदावन बिराजें सर्व देवा।

भारत है गुणों की खान सभ्यता इसका है अनमोल,
सत्य सनातन धर्म-ज्ञान को नहीं किसी से तोल।
आचार्य भक्ति वेदांत स्वामी प्रभुपाद जी हैं बेजोड़
हे नर प्रेम से राधे-राधे,जय श्री कृष्णा अब बोल॥

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