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थर्मस की चाय

सुश्री अंजुमन मंसूरी ‘आरज़ू’
छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश)
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जब से होश संभाला था,वह सभी गृह कार्य बड़ी निपुणता से करती आयीं थी। बेटी,बहन और बहू बनकर तो बड़ों का ध्यान रखने के सारे फर्ज निभाए ही,किंतु सास बनने पर भी कार्यों से निवृत्ति ना मिली थी उन्हें।
नयी बहू की आदत देर तक सोने की थी,सो वे ही अपने पति और बेटे,जिनमें अब उनकी बहू भी शामिल थी,को पहले की तरह चाय बना कर दिया करतीं,हालांकि कई बार उनके पति कहा करते-“अब भी तुम ही सुबह-सुबह रसोई में जुट जाती हो,भई बहू के हाथ की चाय तो नसीब ही नहीं होती।”
पारिवारिक कलह से बचने हेतु वे कहतीं-“मुझे यह सब करना अच्छा लगता है,आपकी सेवा-सुश्रुता से संतुष्टि मिलती है,आनंद मिलता है।”
तब वे कहते-“तुम्हें जरूरत नहीं है सेवा-सुश्रुता की…!? तुम्हारी उम्र अब भी आराम की नहीं हुई है क्या ?”
तो वे मुस्कुरा कर-‘अभी तो मैं जवान हूँ’,गुनगुनाते हुए उनकी बात को धुएं में उड़ा देतीं। इसी तरह चार वर्ष बीत गए।
अब उनके पति सेवानिवृत्त हो चुके थे,किंतु दिनचर्या अभी भी वही थी,सुबह सवेरे तैयार हो जाने वाली। बेटे का स्थानांतरण घर से ३० किलोमीटर दूर हो गया था,अतः अब वह पहले की अपेक्षा थोड़ा जल्दी घर छोड़ने लगा था। एक दिन सुबह सुबह जल्दी-जल्दी काम करते हुए वे दो सीढ़ियों से फिसल पड़ीं। कुछ खास चोट तो नहीं थी,पर अधिक उम्र के कारण मोच वाले पैर में काफी दर्द था। दूसरे दिन सुबह बेटे ने उन्हें उठने नहीं दिया। वह टिफिन और थर्मस लिए ऑफिस के लिए निकल ही रहा था कि,उसने सोचा माँ-पापा की आदत रोज सुबह जल्दी चाय पीने की है और आज उन्होंने अब तक चाय नहीं पी है। उसने अपना थर्मस उनकी ओर बढ़ाते हुए कहा-“माँ चलो,अब तुम ये दवाइयाँ ले लो,और आप दोनों चाय भी पी लो।”
वे कुछ कह पातीं,इससे पहले ही बहू बोली-“नहीं,मैंने इनके लिए चाय चढ़ा दी है। आपको ऑफिस के लिए देर हो रही है,थर्मस आप ले जाइएl”
प्रतिकार करते हुए संतोष बोला-“मैं बाहर से मंगवा लूंगा,या आज चाय नहीं भी पी तो क्या ? ये लो माँ तुम दवाइयां लो।” माँ की हथेली पर दवाइयाँ रख देता है।
पिछले अनुभवों से वे जानती थीं कि बहू हमें थर्मस की चाय पीने से क्यों मना कर रही है,सो उन्होंने भी कहा-“बेटा सुचिता सही ही तो कह रही है,तुझे देर हो रही है,तू जा।” तभी संतोष का सेलफोन बज उठता है,फोन पर बात करने के बाद उसने कहा-“लो भई आज शहर में कर्फ्यू है,सो ऑफिस की छुट्टी।” अब वह भी उनके पलंग पर अच्छे से टिक कर बैठ गया,और माँ को थर्मस की चाय निकाल कर दी,तब तक सुचिता दूसरी चाय ले आयी थीl उसने एक आखरी कोशिश की,बोली -“माँ-पापा की चाय,कम शक्कर की रहती है ना जी,इसलिए भी मना कर रही हूँ।” संतोष ने मुस्कुराते हुए सुचिता के हाथ से चाय,यह कहते हुए ले ली कि-“चलो आज हम पी लेते हैं यह कम शक्कर वाली चाय, और देखते हैं कम चीनी होते हुए भी तुम्हारे प्यार से यह कितनी मीठी लगती है।”
उसने जैसे ही चाय का कप हाथ में लिया,चाय का रंग देख कर उसके चेहरे का रंग उड़ गयाl फिर उसने एक चुस्की ली और सुचिता को प्रश्नात्मक दृष्टि से देखा,तो सुचिता वहां से झटपट खिसक ली। उसने माँ की ओर सजल नैनों से देखा,और कहा-“माँ तुम ऐसी चाय पीती हो,तुम्हारा स्वाद कब से बदल गया,कम दूध और चाय पत्ती अधिक…शक्कर की चाय….!!! और थर्मस की चाय प्योर दूध की,…. !!!”
उन्होंने बात संभालते हुए कहा-“बेटा मैं कल से चली-फिरी नहीं हूँ न,बिस्तर में पड़े-पड़े खाना हजम नहीं हो रहा,सो गैस भी बन रही है, इसलिए मैंने ही कहा था बहु से,कम दूध की चाय के लिए।”
वे मन ही मन सोच रही थीं कि,बेटा इतना कर्तव्यपरायण `श्रवण कुमार`-सा है तो बहू भी तो श्रवण कुमार की पत्नी-सी ही मिलेगी न,,, !! और वे प्रत्यक्ष में बेटे से बोलीं-“तूने नाहक ही मुझे थर्मस की चाय पिला दी।”
बेटे को अब कभी ऐसा दु:ख न हो,इसलिए वे निश्चय कर मन ही मन बोलीं-“अब सदा मैं काली चाय ही पियूंगी।” उधर बेटा सोच रहा था कर्फ्यू शहर में लगा है या फिर….संस्कारों में….??

परिचय-सुश्री अंजुमन मंसूरी लेखन क्षेत्र में साहित्यिक उपनाम ‘आरज़ू’ से ख्यात हैं। जन्म ३० दिसम्बर १९८० को छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) में हुआ है। वर्तमान में सुश्री मंसूरी जिला छिंदवाड़ा में ही स्थाई रुप से बसी हुई हैं। संस्कृत,हिंदी एवं उर्दू भाषा को जानने वाली आरज़ू ने स्नातक (संस्कृत साहित्य),परास्नातक(हिंदी साहित्य,उर्दू साहित्य),डी.एड.और बी.एड. की शिक्षा ली है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक(शासकीय उत्कृष्ट विद्यालय)का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप दिव्यांगों के कल्याण हेतु मंच से संबद्ध होकर सक्रिय हैं। इनकी लेखन विधा-गीत, ग़ज़ल,हाइकु,लघुकथा आदि है। सांझा संकलन-माँ माँ माँ मेरी माँ में आपकी रचनाएं हैं तो देश के सभी हिंदी भाषी राज्यों से प्रकाशित होने वाली प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिकाओं तथा पत्रों में कई रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। बात सम्मान की करें तो सुश्री मंसूरी को-‘पाथेय सृजनश्री अलंकरण’ सम्मान(म.प्र.), ‘अनमोल सृजन अलंकरण'(दिल्ली), गौरवांजली अलंकरण-२०१७(म.प्र.) और साहित्य अभिविन्यास सम्मान सहित सर्वश्रेष्ठ कवियित्री सम्मान आदि भी मिले हैं। विशेष उपलब्धि-प्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई के शिष्य पंडित श्याम मोहन दुबे की शिष्या होना एवं आकाशवाणी(छिंदवाड़ा) से कविताओं का प्रसारण सहित कुछ कविताओं का विश्व की १२ भाषाओं में अनुवाद होना है। बड़ी बात यह है कि आरज़ू ७५ फीसदी दृष्टिबाधित होते हुए भी सक्रियता से सामान्य जीवन जी रही हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-अपने भावपूर्ण शब्दों से पाठकों में प्रेरणा का संचार करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महादेवी वर्मा तो प्रेरणा पुंज-माता-पिता हैं। सुख और दु:ख की मिश्रित अभिव्यक्ति इनके साहित्य सृजन की प्रेरणा है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-
हिंदी बिछा के सोऊँ,हिंदी ही ओढ़ती हूँ।
इस हिंदी के सहारे,मैं हिंद जोड़ती हूँ॥ 
आपकी दृष्टि में ‘मातृभाषा’ को ‘भाषा मात्र’ होने से बचाना है।

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