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समाज को जगाओ

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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समाज को जगाना है कुरीतियां भगाओ,
दहेज के नाम पर यूँ बलि न चढ़ाओ।

मारते हो कोख में ही अपनी बेटियों को,
भ्रूण हत्या करके तुम पाप न कमाओ।

संस्कार दो औलादों को कोई अच्छा काम करे,
बुरी आदतों में पड़ कर माँ-बाप को न बदनाम करें।

नयी चेतना नयी उमंगें लेकर के चलना होगा,
फैली हुई विसंगतियों की आग में भी जलना होगा।

आड़ धर्म की लेकर के ये ललनाओं को छलते हैं,
ये सारे ही ढोंगी,इनके पाप पेट में पलते हैं।

बलात्कार और हत्या इनके अपराध में शामिल हैं,
दुनिया में कहते फिरते-देखो हम कितने काबिल हैं।

क्यों दहेज़ के कारण ही बारातें मारी जाती हैं,
क्यों दौलत के कारण से जिंदा जलाई जाती हैं ?

ये दहेज का दानव सारी मानवता को लील गया,
जिसने दिया हृदय का टुकड़ा,क्यों उनका दिल छील गया ?

जो दहेज लेते देते मानवता के हत्यारे हैं ,
जिनके दिल में दया नहीं,वो सब लालच के मारे हैं।

जब तक हम इन कुरीतियों को हटा नहीं जो पाएंगे,
तब तक हम समाज-देश उत्थान नहीं कर पाएंगे।

सब मिलकर के मृत्युभोज का समग्र बहिष्कार करो,
बंद करा कर इसको तुम गरीबों का उद्धार करो।

ये समाज का कोढ़ हैं सारे खत्म इन्हें करना होगा,
घोर विरोधी बनने को अंगारों पर चलना होगाll

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है।

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