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प्यासा पंछी

   

सुलोचना परमार ‘उत्तरांचली
देहरादून( उत्तराखंड)
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उन्मुक्त गगन में उड़ता पंछी,

    दूर-दूर तक जाता है…

   अपनी प्यास बुझाने को,

    वो धरती पर ही आता है।

     जब भी आग लगती है वनों में,

     ये जल्दी से भाग नहीं पाते हैं…

     जल-भुन जाते आधे-अधूरे,

     और प्यासे ही मर जाते हैं।

     मन भी प्यासा पंछी यारों,

     कहाँ-कहाँ उड़ जाता है…

    अपनी प्यास बुझाने को वो,

    घर बाहर भटका करता है।

    प्रदूषण जब ज्यादा होता,

    पंछी बेचैन हो जाते हैं…

    अपनी प्यास बुझाने को,

    वो नदी किनारे आते हैं।

    साहित्यकार भी प्यासा पंछी,

    लिखकर प्यास बुझाता है…

    ज्ञान चक्षु भी ख़ुल जाते हैं,

    रिमझिम सावन जब आता है।

     हर कोई प्यासा पंछी है यहां,

     जब प्यास की आँधी आती है।

     किसी के होंठ सूखे रह जाते,

     किसी की प्यास बुझ जाती है॥

परिचय: सुलोचना परमार का साहित्यिक उपनाम ‘उत्तरांचली’ है,जिनका जन्म १२ दिसम्बर १९४६ में श्रीनगर गढ़वाल में हुआ है। आप सेवानिवृत प्रधानाचार्या हैं। उत्तराखंड राज्य के देहरादून की निवासी श्रीमती परमार की शिक्षा स्नातकोत्तर है। आपकी लेखन विधा कविता,गीत, कहानी और ग़ज़ल है। हिंदी से प्रेम रखने वाली `उत्तरांचली` गढ़वाली भाषा में भी सक्रिय लेखन करती हैं। आपकी उपलब्धि में वर्ष २००६ में शिक्षा के क्षेत्र में राष्ट्रीय सम्मान,राज्य स्तर पर सांस्कृतिक सम्मान,महिमा साहित्य रत्न-२०१६ सहित साहित्य भूषण सम्मान तथा विभिन्न श्रवण कैसेट्स में गीत संग्रहित होना है। आपकी रचनाएं कई पत्र-पत्रिकाओं में विविध विधा में प्रकाशित हुई हैं तो चैनल व आकाशवाणी से भी काव्य पाठ,वार्ता व साक्षात्कार प्रसारित हुए हैं। हिंदी एवं गढ़वाली में आपके ६ काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। साथ ही कवि सम्मेलनों में राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर शामिल होती रहती हैं। आपका कार्यक्षेत्र अब लेखन व सामाजिक सहभागिता हैL साथ ही सामाजिक गतिविधि में सेवी और साहित्यिक संस्थाओं के साथ जुड़कर कार्यरत हैं।

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