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दीप जलाऊँ

बोधन राम निषाद ‘राज’ 
कबीरधाम (छत्तीसगढ़)
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(रचना शिल्प:१६/१४)

दीप जलाकर इन हाथों से,
किरण जहां में फैलाऊँ।
चाँद सितारों को झुठलाकर,
दूर निशा तम हर जाऊँ॥

रात कालिमा जब भी आए,
उजियारा इनसे कर दूँ।
गहन तिमिर को चीर-चीर कर,
ज्योति पुंज इनमें भर दूँ॥
तन-मन को यह करे प्रकाशित,
खुशी-खुशी से दीप जलाऊँ।
चाँद सितारों को झुठलाकर…

मिट्टी का छोटा-सा दीपक,
बाती से कुछ कहता है।
स्वयं अँधेरे में रह करके,
कष्टों को वह सहता है॥
दीप हथेली लिए चलूँ मैं,
आशाओं से हर्षाऊँ।
चाँद सितारों को झुठलाकर…

छोटे-छोटे दीप जले जो,
करे प्रकाशित जग सारा।
इनसे ही रोशन है जीवन,
दूर होय जब अँधियारा॥
दीपक जैसे खुद भी जलकर,
औरों को भी सिखलाऊँ।

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