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हे मेरी बरसात प्रिये

सुलोचना परमार ‘उत्तरांचली
देहरादून( उत्तराखंड)
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रिम-झिम रिम-झिम जब आती हो,
तन-मन सबका झूमे है।
तुझसे मिलकर धरती ये,
तुझे बड़े प्यार से चूमे है।
आ गले लगा लूँ तुझको,
हे मेरी बरसात प्रिये...ll

तुमसे हसीं न कोई जग में,
प्रेमीजन तेरी बाट तकेंl
तेरा साथ देने को कोहरा,
छा जाता है अम्बर में।
मैं भी ऊँची उड़ान भरूँ संग,
हे मेरी बरसात प्रिये...ll

तेरे रूप के सज़दे किये हैं,
सभी कलमकारों ने यहां।
कितनी ही रचनाओं में तुम,
झूले में झूली सारा जहां।
इसी रूप पर मर मर जाऊं,
हे मेरी बरसात प्रिये...ll

प्यासी धरती तुझे निहारे,
लहराती बलखाती आ।
पड़ें बौछारें और फुहारें,
प्रीत के गीत तू गाये जा।
रिम-झिम रूप में गले मिलें,
हे मेरी बरसात प्रिये...ll

रूठ जाती हो भला क्यों तुम,
और रौद्र रूप धर लेती हो।
सभी जगह तुम क्रोध से अपने,
तहस-नहस कर देती हो।
सभी दुःखी हो जाते हैं तब,
हे मेरी बरसात प्रिये...ll

बादल फटते,फटती धरती,
मानव,मवेशी बह जाते हैं।
तेरे क्रोध की ज्वाला में तो,
त्राहि-त्राहि सब कर जाते हैं।
तू ही बता अब कैसे मनाऊं तुझे,
`हे मेरी बरसात प्रिये…ll

परिचय: सुलोचना परमार का साहित्यिक उपनाम ‘उत्तरांचली’ है,जिनका जन्म १२ दिसम्बर १९४६ में श्रीनगर गढ़वाल में हुआ है। आप सेवानिवृत प्रधानाचार्या हैं। उत्तराखंड राज्य के देहरादून की निवासी श्रीमती परमार की शिक्षा स्नातकोत्तर है। आपकी लेखन विधा कविता,गीत, कहानी और ग़ज़ल है। हिंदी से प्रेम रखने वाली `उत्तरांचली` गढ़वाली भाषा में भी सक्रिय लेखन करती हैं। आपकी उपलब्धि में वर्ष २००६ में शिक्षा के क्षेत्र में राष्ट्रीय सम्मान,राज्य स्तर पर सांस्कृतिक सम्मान,महिमा साहित्य रत्न-२०१६ सहित साहित्य भूषण सम्मान तथा विभिन्न श्रवण कैसेट्स में गीत संग्रहित होना है। आपकी रचनाएं कई पत्र-पत्रिकाओं में विविध विधा में प्रकाशित हुई हैं तो चैनल व आकाशवाणी से भी काव्य पाठ,वार्ता व साक्षात्कार प्रसारित हुए हैं। हिंदी एवं गढ़वाली में आपके ६ काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। साथ ही कवि सम्मेलनों में राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर शामिल होती रहती हैं। आपका कार्यक्षेत्र अब लेखन व सामाजिक सहभागिता हैL साथ ही सामाजिक गतिविधि में सेवी और साहित्यिक संस्थाओं के साथ जुड़कर कार्यरत हैं।

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