कुल पृष्ठ दर्शन : 320

तुम अमृत-भीम विचारी हो

दुर्गेश कुमार मेघवाल ‘डी.कुमार ‘अजस्र’
बूंदी (राजस्थान)
******************************************************************

आम्बेडकर जयंती विशेष…………..
तुम शिव से हलाहल धारी हो,
तुम विष्णु से अवतारी हो।
समष्टि कुल में रहे अछूत तुम,
अमृत-भीम विचारी हो।
तुम शिव से हलाहल धारी हो…॥

वह विवशता से भरा बचपन,
भीड़ में भी था इक सूनापन।
छूत-अछूत के कुत्सित खेल में,
शिक्षा को दृढ़ संकल्पित मन।
चोट पर चोट पड़ी मन पर,
तुम यंत्रणा संभाली सारी हो।
तुम शिव से हलाहल धारी हो…॥

रहा बचपन में बच्चों से दूर,
रहा विलग,अपमान से चूर।
शिक्षा खातिर कई घृणा झेली,
कड़वे घूंटों से ही पाया नूर।
द्वार बैठ जूतों के बीच तुम,
माँ भीमा स्वप्न सजारी हो।
तुम शिव से हलाहल धारी हो…॥

बाधाएं तुमसे थी लोहा लेती,
मात वो खाकर,बलवती रहती।
मान में भी अपमान का विष दे,
बस,हर कदम झुंझलाहट देती।
झुंझलाते सब अपमान सहते भी,
हर बाधा पर रहे तुम भारी हो।
तुम शिव से हलाहल धारी हो…॥

शिक्षक जिसने पहली शिक्षा दी,
आम्बेडकर था उपनाम दिया।
रामजी के सकपाल भीम तुम,
न जीवन में नाम वो अलग किया।
गुरु-दक्षिणा में कृतज्ञता देकर,
एकलव्य-सा नाम प्रसारी हो।
तुम शिव से हलाहलधारी हो…॥

शिक्षा में सम्बल देकर जब,
महाराज बड़ौदा साथ दिया।
प्रतिदान कृतज्ञता का देकर के,
लेफ्टिनेंट का पद आप लिया।
सेवा पिता हित,पदराज को छोड़ा,
तुम पुत्र भारतीय संस्कारी हो।
तुम शिव से हलाहल धारी हो…॥

प्रतिभा से उच्च पदों पर आया,
फिर भी वो सम्मान ना पाया।
आँखों में आँसू दिल में तड़प थी,
फिर भी सबको गले लगाया।
कड़वे खारे पराग को लेकर,
तुम मीठा शहद निखारी हो।
तुम शिव से हलाहल धारी हो…॥

सर्व समाहित विषद स्वरूप,
समुदाय से ऊपर हो देश प्रारूप।
पंथ,जाति-वर्ग के बन्धन में,
राष्ट्रीय एकता बने कुरूप।
ऐसा व्यापक विचार लेकर तुम,
देश हितों के प्रचारी हो।
तुम शिव से हलाहल धारी हो…॥

गागर में सागर विषद महान,
मूढ़ों में विद्व नागर से तुम।
तुम विश्व लक्ष्यों से ऊपर थे,
अथाह ज्ञान के आगर से तुम।
मजबूत राष्ट्र इक उस समाज के,
तुम बने स्वयं पक्षधारी हो।
तुम शिव से हलाहल धारी हो…॥

वो उच्च आदर्शों का उच्च समाज,
फिर सोच में बसा क्यों बौनापन।
अस्पृश्यता रूपी कलंक सा देकर,
घाव करे उस अछूत के मन।
जुझारू,दबंग व्यक्तित्व विराट भीम,
तुम सूरज बढ़ अंगारी हो।
तुम शिव से हलाहल धारी हो…॥

वो उस व्यवहार पर आहत बोल,
बना महामानव-सा जीवन रोल।
भारत भाग्य संविधान बनाया,
सब बातों को मन में तोल।
राष्ट्रीय न्याय की बन मिसाल तुम,
उस पर जीवन न्यौछारी हो।
तुम शिव से हलाहल धारी हो…॥

पल-पल पग-पग दु:ख था झेला,
फिर भी मन तो रखा ना मैला।
दु:ख से कातर विलग हुए तुम,
हृदय अंग सा जीवन पहला।
धर्म की सीमा पार भी जाकर,
जीवन स्वधर्म हित होमगारी हो।
तुम शिव से हलाहल धारी हो…॥

शीश झुका आज नमन करे हैं,
सब श्रद्धा सुमन अर्पित करते।
दलित घृणित सम्मान ही पाते,
उन पदचिह्नों पर चलते।
बाबा भीम अमृत विचार बने हैं,
जग-जीवन मार्ग उजारी हो
तुम शिव से हलाहल धारी हो…॥

तुम विष्णु से अवतारी हो,
समष्टि कुल में रहे अछूत तुम।
अमृत-भीम विचारी हो,
तुम शिव से हलाहल धारी हो…॥

परिचय–आप लेखन क्षेत्र में डी.कुमार’अजस्र’ के नाम से पहचाने जाते हैं। दुर्गेश कुमार मेघवाल की जन्मतिथि-१७ मई १९७७ तथा जन्म स्थान-बूंदी (राजस्थान) है। आप राजस्थान के बूंदी शहर में इंद्रा कॉलोनी में बसे हुए हैं। हिन्दी में स्नातकोत्तर तक शिक्षा लेने के बाद शिक्षा को कार्यक्षेत्र बना रखा है। सामाजिक क्षेत्र में आप शिक्षक के रुप में जागरूकता फैलाते हैं। लेखन विधा-काव्य और आलेख है,और इसके ज़रिए ही सामाजिक मीडिया पर सक्रिय हैं।आपके लेखन का उद्देश्य-नागरी लिपि की सेवा,मन की सन्तुष्टि,यश प्राप्ति और हो सके तो अर्थ प्राप्ति भी है। २०१८ में श्री मेघवाल की रचना का प्रकाशन साझा काव्य संग्रह में हुआ है। आपकी लेखनी को बाबू बालमुकुंद गुप्त साहित्य सेवा सम्मान-२०१७ सहित अन्य से सम्मानित किया गया है|

Leave a Reply