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सच्ची साथी…

रोहित मिश्र
प्रयागराज(उत्तरप्रदेश)
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विश्व पुस्तक दिवस स्पर्धा विशेष……

इंसान का कोई सबसे अच्छा साथी है,तो वो है ‘पुस्तक।’ पुस्तक से बढ़कर शायद ही कोई सच्चा साथी हो इंसान का इस दुनिया में। पुस्तक वो है,जो बालपन को दिशा देती है,तरुणावस्था को आज्ञा देती है। यौवनावस्था को कार्यक्षमता देती है, प्रौढ़ावस्था को जिम्मेदारियों को दूसरे के सुपुर्द करने का निर्देश,तो वृद्धावस्था को परमेश्वर के वाक्यों का ज्ञान देती है।
किताब वो है,जो व्यक्ति के खालीपन को भरने का सबसे अच्छा माध्यम है। वह व्यक्ति के दोस्त की भूमिका सबसे बेहतर तरीके से निभाती है,क्योंकि उसमें किसी भी प्रकार का स्वार्थ निहित नहीं होता है।
आजकल बढ़ती तकनीकी के कारण किताबों की महत्ता कम होती जा रही है,पर अहमियत आज भी कम नहीं हुई है।
आज के संगणक (कम्प्यूटर)के युग में किताबों के इतिहास को संजोए रखना परम आवश्यक है।तकनीकी चाहे जितनी बढ़ जाए,वह किताबों का स्थान कभी नहीं ले सकती है।
बालपन में बच्चों का जो मानसिक विकास किताब कर सकती है,वो न चलायमान (मोबाइल) और न ही संगणक कर सकता है। ये भले ही अधिक भंडारण की क्षमता रखते हों,पर ये बिना लिए कुछ भी नहीं देते हैं। ये बच्चों को मानसिक तनाव देते हैं, कोमल आँखों को क्षति पहुँचाते हैं। पैसे तो ये बर्बाद करते ही हैं।
शायद ही ऐसा कोई समय आए कि,बच्चों का पूर्णत: विकास किताबों के बिना हो जाए। किताबों के बिना ज्ञान की कल्पना असंभव-सी प्रतीत होती है।
किताबें वो हैं,जो कर्ई संस्कृतियों को आदिकाल से अक्षुण बनाए हुए है। आज हमारी संस्कृति जो प्राचीन समय से सुरक्षित है,वह इनकी ही देन है। किताबों के इतिहास को बचाए रखना अति आवश्यक है,ताकि किताब संस्कृति से हमारा भविष्य भी परिचित हो सके।

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