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तुलसीदास और ‘राम राज्य’

अंशु प्रजापति
पौड़ी गढ़वाल(उत्तराखण्ड)
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महाकवि गोस्वामी तुलसीदास (२४ जुलाई) जयंती स्पर्धा विशेष

हमारी महान भारतीय संस्कृति का आधार दयालुता,समभाव,संतुलन, सहृदयता तथा समन्वय की भावना है। हम भारतीयों के आदर्श प्रभु श्री राम,भगवान श्री कृष्ण आदि हैं। इनके जीवन चरित्र की विभिन्न झांकियों में जहाँ हम जैसे साधारण मनुष्य जटिल से जटिल समस्याओं के हल ढूंढ लिया करते हैं,वहीं जब भी आदर्श समाज अथवा राष्ट्र की हम कल्पना करते हैं,तो एक ही आदर्श उदाहरण मस्तिष्क में उभर कर आता है,वह है ‘राम राज्य।’
यह शब्द एक आदर्श,सम्पूर्ण व सुखद राज्य का पर्यायवाची है और ऐसा उदाहरण हमारे समक्ष रखने में यदि किसी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई तो वह हैं ‘महाकवि गोस्वामी तुलसीदास।’
तुलसीदास जी एक इतने सम्पूर्ण राज्य की संकल्पना कर सके,तो उसके पीछे उनका उदार व समन्वयतावादी दृष्टिकोण ही है,जो उनके समकालीन कवियों में नहीं दिखाई देता। जितना इनके बारे में पढ़ा,उतना यही जाना कि तुलसीदास जी की भक्ति ज्ञान के साथ कर्म का भी सन्देश देती है। ‘राम चरित मानस’ इसका सर्वश्रेष्ठ व उत्कृष्ट उदाहरण है। तुलसीदास जी ने बड़े ही अनूठे ढंग से उस समय व्याप्त विभिन्न साम्प्रदायिक मतभेदों को दूर कर उनको एक सूत्र में पिरोने का काम किया। फिर चाहे वह शैव-वैष्णव भेद को दूर करने हेतु राम द्वारा रामेश्वरम पर शिव की पूजा का उदाहरण हो,या फिर आर्य- अनार्य भेदों को दूर करता शिव-पार्वती का मंगल विवाह हो।
किसी भी समाज अथवा राष्ट्र के निर्माण तथा संचालन में जो भी अवरोध होते हैं, उन्होंने राम चरित मानस के माध्यम से वे सब बड़ी ही सहजता से सुलझा दिए हैं..।
आज हम जिस समाज में रह रहे हैं, उसमें हर प्रकार के मतभेद व समस्याएं हैं,तुलसीदास की दूरगामी सोच ने शायद ये सब भांप लिया था। तभी उन्होंने विभक्त हिन्दू राष्ट्र को जोड़ने हेतु ही मानस में विभिन्न संवादों के माध्यम से समानता का संदेश दिया..राम-केवट संवाद,राम-शबरी भेंट,राम द्वारा हनुमान को मित्र बनाना,अहिल्या उद्धार आदि ऐसे अनेक उदाहरण मानस में वर्णित हैं।
जहां जैसी संस्कृति,वहाँ वैसे राम.. मतलब तुलसीदास जी ने दिखाया है कि किस प्रकार अपने धर्म के साथ दूसरों की संस्कृति का सम्मान भी एक राजा का कर्त्तव्य है। तब ही उन्होंने सुग्रीव का विवाह तारा से करवाया, वहीं भरत जब राम से मिलने आते हैं तो विभिन्न प्रकार के फल-फूलों के साथ,भील सम्प्रदाय के लिए उपहार स्वरुप मीन लाते हैं।
राज्य की कर व्यवस्था हो या न्याय व्यवस्था, पारिवारिक समस्या हो या सामाजिक समस्या हर एक प्रश्न का उत्तर तुलसीदास के रामराज्य में है।
तुलसीदास जी को पढ़कर ज्ञात हुआ कि उन्होंने कविवर मैथिलीशरण गुप्त की उक्ति को पूर्व में ही सर्वथा न्यायोचित ठहरा दिया है-“केवल मनोरंजन ही न कवि का कर्म होना चाहिए..उसमें उचित उद्देश्य का भी मर्म होना चाहिए।”
और यही कारण है महाकवि केशव ने तुलसीदास,सूरदास व कबीर के अतिरिक्त अन्य किसी को कवि माना ही नहीं,यथा-
‘तत्व तत्व तुलसी कहि सूरा कहि अनूठी
शेष बची कबीरा कहि और कहें सब झूठी।’

परिचय-अंशु प्रजापति का बसेरा वर्तमान में उत्तराखंड के कोटद्वार (जिला-पौड़ी गढ़वाल) में है। २५ मार्च १९८० को आगरा में जन्मी अंशु का स्थाई पता कोटद्वार ही है। हिंदी भाषा का ज्ञान रखने वाली अंशु ने बीएससी सहित बीटीसी और एम.ए.(हिंदी)की शिक्षा पाई है। आपका कार्यक्षेत्र-अध्यापन (नौकरी) है। लेखन विधा-लेख तथा कविता है। इनके लिए पसंदीदा हिन्दी लेखक-शिवानी व महादेवी वर्मा तो प्रेरणापुंज-शिवानी हैं। विशेषज्ञता-कविता रचने में है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“अपने देेश की संस्कृति व भाषा पर मुझे गर्व है।”

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